Delhi Riot: दंगों की जांच को लेकर अदालत ने दिल्ली पुलिस पर की सख्त टिप्पणी, कही ये बात

दिल्ली की एक अदालत ने कहा है कि 2020 में उत्तर पूर्व में हुए दंगे के बहुत सारे मामलों में जांच का मापदंड 'बहुत घटिया' रहा है।

Newstrack :  Network
Published By :  Deepak Raj
Update: 2021-08-29 14:17 GMT
सांकेतिक तस्वीर (सोर्स-सोशल मीडिया)

पिछले साल दिल्ली दंगों में कई लोगों की जान चली गई थी। दंगों के दौरान लोगों के छोटे बच्चों की जान जाने कि खबर भी आई थी। कोई बाहर से सामान खरीदने गया और वो घर हीं नहीं लौटा था। दंगे का दृश्य अति भयावह और हृद्यविदारक थी, तस्वीरें देखकर लोगों के रुह कांप जा रहे थें। लोग घरों में बम बनाकर रखे हुए थें। कई लोगों ने तो तेजाब का भी इस्तेमाल किया था। इस दंगे में कई लोगों की जान जाने की खबर आई थी। 


दिल्ली दंगा फाइल फोटो (सोर्स-सोशल मीडिया)


आपको बते दें कि दिल्ली की एक अदालत ने कहा है कि 2020 में उत्तर पूर्व में हुए दंगे के बहुत सारे मामलों में जांच का मापदंड 'बहुत घटिया' रहा है। दिल्ली दंगों की जांच का ऐसा हाल देखकर दिल्ली पुलिस आयुक्त के दखल की जरूरत है। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (एएसजे) विनोद यादव ने यह ​टिप्पणी अशरफ अली नामक एक व्यक्ति के मामले को लेकर की है। अशरफ अली पर 25 फरवरी 2020 को सांप्रदायिक दंगे के दौरान पुलिस अधिकारियों पर कथित रूप से तेजाब, कांच की बोतलें और ईंटे फेंकने का आरोप है।


 दंगे के बहुत सारे मामलों में जांच का मापदंड बहुत घटिया- एएसजे

एएसजे ने कहा, 'यह कहते हुए पीड़ा होती है कि दंगे के बहुत सारे मामलों में जांच का मापदंड बहुत घटिया है। ' उन्होंने कहा कि ज्यादातर मामलों में जांच अधिकारी अदालत में पेश नहीं हो रहे हैं। न्यायाधीश ने कहा कि पुलिस आधे-अधूरे आरोपपत्र दायर करने के बाद जांच को तार्किक परिणति तक ले जाने की बमुश्किल ही परवाह करती है, जिस वजह से कई आरोपों में नामजद आरोपी सलाखों के पीछे बने हुए हैं।

जांच अधिकारी ने चोट की प्रकृति को लेकर राय भी लेने की जहमत नहीं उठाई है

एएसजे ने 28 अगस्त को अपने आदेश में कहा, ' यह मामला इसका जीता-जागता उदाहरण है, जहां पीड़ित स्वयं ही पुलिसकर्मी हैं, लेकिन जांच अधिकारी को तेजाब का नमूना इकट्ठा करने और उसका रासायनिक विश्लेषण कराने की परवाह नहीं है। जांच अधिकारी ने चोट की प्रकृति को लेकर राय भी लेने की जहमत नहीं उठाई है।' अदालत ने कहा कि इसके अलावा मामले के जांच अधिकारी इन आरोपों पर बहस के लिए अभियोजकों को ब्रीफ नहीं कर रहे हैं और वे सुनवाई की सुबह उन्हें बस आरोपपत्र की पीडीएफ प्रति मेल कर दे रहे हैं।


एएसजे यादव ने इस मामले में इस आदेश की प्रति दिल्ली पुलिस के आयुक्त के पास 'उनके सदंर्भ एवं सुधार के कदम उठाने के वास्ते (उनके द्वारा) जरूरी निर्देश देने के लिए' भेजे जाने का भी निर्देश दिया। अदालत ने कहा, ' वे इस संबंध में विशेषज्ञों की राय लेने के लिए स्वतंत्र हैं, अन्यथा इन मामलों में शामिल लोगों के साथ नाइंसाफी होने की संभावना है।'फरवरी 2020 में उत्तरपूर्व दिल्ली में संशोधित नागरिकता कानून के समर्थकों एवं विरोधियों के बीच हिंसा के बाद सांप्रदायिक दंगा भड़क गया था, जिसमें कम से कम 53 लोगों की जान चली गई थी और 700 से अधिक घायल हुए थे।

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