Delhi Riots: फेसबुक जैसे मंचों पर किए गए पोस्ट समाज को बांटने का काम कर सकती है, जानें SC ने क्यों कहा ऐसा?
Delhi Riots: सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा की शांति समिति द्वारा जारी किए गए समन के खिलाफ फेसबुक इंडिया के वाइस प्रेसीडेंट वीपी अजीत मोहन की याचिका खारिज कर दी।
Delhi Riots: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने विधानसभा की शांति और सद्भाव समिति द्वारा जारी किए गए समन (Summons) के खिलाफ फेसबुक इंडिया ( Facebook India) के वाइस प्रेसीडेंट वीपी अजीत मोहन (V.P. Ajit Mohan)की याचिका खारिज कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने फेसबुक इंडिया के वाइस प्रेसीडेंट वीपी अजीत मोहन (Facebook India Vice President VP Ajit Mohan) की याचिका को प्री-मैच्योर बताया और कहा कि विधानसभा के पैनल के समक्ष उनके खिलाफ कुछ नहीं हुआ है।
गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट सख्त लब्जों में कहा कि फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म (Social Media Platform) लोगों को प्रभावित करने की ताकत रखता है। इन पर किए गए पोस्ट और बहस समाज को बांटने का काम कर सकती है, क्योंकि समाज में रहने वाले कई सदस्यों और सोशल मीडिया यूजर्स के पास इसकी सच्चाई पता लगाने का साधन नहीं होता है।
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा, "फरवरी 2020 में दिल्ली में किए गए सांप्रदायिक दंगों की पुनरावृत्ति को कोर्ट कतई बर्दाश्त नहीं कर सकती। इसलिए इस मामले में फेसबुक की क्या भूमिका रही है, उसकी जांच की जानी चाहिए।"
जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने कहा, "भारत में फेसबुक के 27 करोड़ यूजर्स हैं। यहां बोलने की पूर्ण आजादी है। ऐसे में उसे जवाबदेह होना ही होगा। सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म हर आवाज को लोगों तक पहुंचाने के लिए एक जगह दी है, लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि वे विध्वंसकारक संदेशों और विचारधारों को भी जगह दें। उसे ऐसे मामलों को अनदेखा नहीं करना चाहिए।"
कोर्ट ने आगे कहा, "दिल्ली में हुए दंगों के मामले में आपराधिक कार्रवाई पहले से ही ट्रायल कोर्ट के पास पेडिंग पड़ी हुई है। कोर्ट का यह फैसला फेसबुक के वाइस प्रेसिडेंट वीपी अजित मोहन के द्वारा दायर किए गए एक रिट याचिका पर सामने आया है, जिसमें दिल्ली दंगों की जांच कर रहे विधानसभा के पैनल के समक्ष अजित मोहन की उपस्थिति की मांग की गई थी और कथित नफरत फैलाने वाले भाषणों को फैलाने में फेसबुक की भूमिका थी।"
बताते चलें कि दिल्ली विधानसभा की शांति समिति (Peace Committee of Delhi Assembly) द्वारा पिछले साल 10 और 18 सितंबर को जारी नोटिस को चुनौती दी थी, जिसमें इन लोगों को दिल्ली में हुए दंगों के संबंध में गवाह के तौर पर पेश न होने के कारण समन जारी किए थे।