आदिवासियों के बनाये साबुन की मांग अब अमेरिका तक

आदिवासी महिलाओं ने अब अपनी मेहनत से बने साबुन को मेट्रो शहरों से लेकर अमरीका में भेज रही हैं...

Written By :  Akshita
Published By :  Ragini Sinha
Update: 2021-08-13 11:27 GMT

साबुन बनाती हुई आदिवासी महिलाएं (social media)

दिनभर खेतों में काम करने के बाद , रात में घर का काम करके साबुन बनाने का प्रशिक्षण लेना आसान है क्या? बार बार लग्न से मेहनत के बाद सफ़लता न मिलने पर भी निरंतर लगे रहना आसान है क्या? पर असफलता के बाद ही सफलता है।ऐसा लोग कहते हैं पर ये सच कर दिखाया है आदिवासी महिलाओं ने।अब वे अपनी मेहनत से बने साबुन को मेट्रो शहरों से लेकर अमरीका जैसे देशो में भेज रही हैं।इनके साबुनों की कीमत 250 से 350 है।

ये कहानी उन तीन सफल महिलाओं की हैं। जो मध्यप्रदेश के खंडवा जिले के पंधाना विधानसभा क्षेत्र के ठेठ आदिवासी गांव उदयपुर की निवासी हैं।इनके नाम क्रमशः रेखाबाई ,ताराबाई और कालीबाई कैलाश है।ये तीनो महिलाओं शहर की भागदौड़ भरी जिंदगी छोड़ कर आये ली से तीन साल पहले मिली। ली ने इन तीनो महिलाओं के साथ मिलकर साबुन बनाने के बारे में सोचा।अब ली इस छोटे से प्लांट को मैनेज करता है।

बकरी के दूध में जड़ी बूटियों को मिलाकर साबुन बनाती हैं

शुरुआत में ली ने इन महिलाओं को गाय के दूध से साबुन बनाने का प्रशिक्षण दिया।पर बहुत कोशिश के बाद भी वे असफल हुए।इसके बाद बकरी के दूध से कोशिश की जिसमे धीरे धीरे सफलता मिली। बकरी के दूध में जड़ी बूटियों को मिलाकर ये महिलाएं अब साबुन बना रही हैं। आयुर्वेदिक विधि से बनाये गए इस साबुनों की मांग अब दिल्ली ,मुम्बई जैसी मेट्रो सिटी में भी है।

परिवार वाले उनका मजाक उड़ाते थे

संघर्ष के दिनों को याद करते हुए महिलाएं बताती हैं कि शुरुआत में जब वे असफल हो रही थीं तो परिवार वाले ,गांव वाले सभी ने उनका मजाक उड़ाया था।जिस वजह से वे दिन के वक्त घर के काम और खेतों में काम के बाद रातों को साबुन बनाने की प्रक्रिया जारी रखती थी।अब जब काम चलना शुरू हो गया है।तो वे आज अपने घर की आर्थिक स्थिति सुधारने के काबिल हो गयी हैं।और अब वे तारीफ के पात्र बन गयी हैं।जो कभी हंसी की पात्र थीं।

33 साबुन बनाने की क्षमता रखती हैं

पर काम बढ़ने के साथ उनके पास संसाधनों की कमी हो गयी है। वे रोज 33 साबुन बनाने की क्षमता रखती हैं।पर इतने से ज्यादा साबुन बन भी जाएं तो उन्हें रखने के लिए उनके पास कोई और कमरे नही है।वे एक ही कमरे में काम कर रहीं हैं।ऐसे में अभी इन महिलाओं ने अपना काम रोक दिया है।अभी बने हुए साबुनों को पैक किया जा रहा है।

पर्यावरण को कोई नुकसान न पहुंचे इसका ध्यान रखें

साबुन में सुंगंध और फ्लेवर के लिए दार्जलिंग की चायपत्ती ,आम ,तरबूज आदि चीजें मिलाई जाती हैं।जिसकी वजह से इसका दाम थोड़ा ज्यादा है।साबुन को पैक बिल्कुल ईको फ्रेंडली तरीके से किया जाता है।जूट की थैलियों में इन्हें पैक किया जाता है। साबून के नीचे घास रखी जाती है। पर्यावरण को कोई नुकसान न पहुंचे इसका ध्यान भी रखा जा रहा है।हाल ही में अमरीका से ऑर्डर मिला है।जिसे पैक करके पते पर एक्सपोर्ट के माध्यम से विदेश भेजा जाना है।

महिलाएं अपने व्यवसाय को और बढ़ाने में सक्षम

इन महिलओं की उम्मीद बरकरार रखने के लिए पंधाना विधानसभा के विधायक राम दांगगोरे ने भवन की व्यवस्था कराने का वादा किया है। ताकि ये महिलाएं अपने व्यवसाय को और बढ़ाने में सक्षम बन सकें और काम किसी भी वजह से रुकने न पाये। आज इन महिलाओं से प्रेरित होकर अन्य महिलाएं भी ऐसी ही कामों में संलग्न होना चाहती हैं।ताकि वे भी घर की आर्थिक स्तिथि को सुधारने में मदद कर पाए।सरकारी तंत्र को आवश्यकता है कि इन जैसी महिलाओं को सम्बल प्रदान करे ताकि ये संसाधनों के लिए मोहताज़ न हों।

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