कोरोना मरीजों के लिए कैसे जानलेवा बन रही ब्लड क्लॉटिंग, विशेषज्ञों ने किया बड़ा खुलासा
यूनिवर्सिटी आफ एडिनबर्ग के वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोना मरीजों में खून का थक्का जमने के लक्षण भी नजर आ रहे हैं।
नई दिल्ली: कोरोना की दूसरी लहर के दौरान देश के विभिन्न अस्पतालों में तबीयत में सुधार के बावजूद मरीजों की अचानक मौत के तमाम मामले सामने आ रहे हैं। मेडिकल एक्सपर्ट कोरोना की वजह से शरीर में खून के थक्के जमने को भी इसका बड़ा कारण मान रहे हैं। उनका कहना है कि फेफड़ों में खून के थक्के जमने की यह प्रक्रिया काफी तेजी से होती है और यह श्वसन तंत्र को बुरी तरह जाम कर देती है।
श्वसन तंत्र के जाम होने से मरीजों की सांस उखड़ने लगती है। इसका नतीजा कुछ ही मिनटों में मौत के रूप में सामने आता है। ऐसा लगता है कि मरीज की मौत हार्टअटैक की वजह से हुई है मगर सच्चाई यह है कि खून के थक्के मरीजों के लिए जानलेवा साबित हो रहे हैं।
कोरोना की वजह से हो रही क्लॉटिंग
दुनिया भर में कोरोना का प्रकोप बढ़ने के बाद इस बाबत तरह-तरह के अध्ययन किए जा रहे हैं और इन अध्ययनों में नई जानकारियां भी सामने आ रही हैं। मेडिकल जर्नल रेडियोलॉजी में भी एक नए अध्ययन की रिपोर्ट प्रकाशित की गई है।
इस रिपोर्ट में बताया गया है कि कोरोना वायरस और खून के थक्के जमने का जरूर कोई संबंध हो सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक बड़ी संख्या में ऐसे कोरोना मरीज पाए गए हैं जिनमें खून का थक्का जमने की शिकायत मिली है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कोरोना की वजह से होने वाली मौतों के पीछे खून का थक्का जमना भी एक बड़ा कारण हो सकता है।
शोध में हुआ बड़ा खुलासा
वैश्विक स्तर पर किए गए एक शोध के मुताबिक कोरोना के 14 से 28 फ़ीसदी मरीजों में खून का थक्का जमने की बात सामने आई है। मेडिकल टर्म में इसे डीप वेन थ्रोम्बोसिस (डीवीटी) के नाम से जाना जाता है। कोरोना के दो से पांच फीसदी रोगियों में आर्टेरियल थ्रोम्बोसिस के मामलों का पता चला है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह संक्रमण फेफड़े के साथ ही ब्लड सेल्स से भी जुड़ा हुआ है।
अस्पतालों में रोज आ रहे नए मामले
दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल के एंजियोग्राफी सर्जन डॉक्टर अंबरीश सात्विक का कहना है कि औसतन हम हर हफ्ते इस तरह के कई मामले देख रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस हफ्ते तो इस तरह का कोई न कोई मामला रोज सामने आ रहा है।
दिल्ली के ही आकाश हेल्थकेयर में हृदय रोग विभाग के डॉक्टर अमरीश कुमार का कहना है कि कोरोना के ऐसे मरीजों में खून के थक्के जमने के मामले सामने आ रहे हैं जिनमें टाइप टू डायबिटीज मिलेटस है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि अभी इस बारे में कोई निश्चित धारणा बनाना जल्दबाजी होगी।
डीवीटी मरीजों के लिए गंभीर स्थिति
डॉक्टर सात्विक ने इस बाबत ट्वीट कर कोरोना मरीजों में खून का थक्का बनने की तरफ हर किसी का ध्यान आकर्षित किया था। इस बाबत किए गए एक ट्वीट में उन्होंने कोरोना एक मरीज के अंग की धमनी में बने खून के थक्के की तस्वीर भी पोस्ट की थी।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक डीवीटी एक गंभीर स्थिति है जिसमें शरीर के अंदर स्थित नाड़ियों में खून का थक्का जम जाता है। आर्टेरियल थ्रोम्बोसिस धमनी में थक्का जमने से ही जुड़ा हुआ मामला है।
मरीज की उम्र और बीमारियां भी बड़ा कारण
मेडिकल जर्नल रेडियोलॉजी में प्रकाशित अध्ययन में कोविड-19 का शिकार होने वाले मरीजों में निमोनिया, सांस का रुकना और इस कारण शरीर के महत्वपूर्ण अंगों का काम बंद कर देना मौत के कारण माने गए हैं। इन अध्ययनों के मुताबिक इसमें मरीज की उम्र और उसकी पहले की बीमारियां भी बड़ी भूमिका निभाती हैं। इसके साथ ही अध्ययन में कोरोना से संक्रमित मरीजों की मौत के पीछे एक खून के थक्के जमने को भी बड़ा कारण बताया गया है।
आखिर क्या है ब्लड क्लॉटिंग
खून के थक्के जमने की प्रक्रिया को डॉक्टरी भाषा में ब्लड क्लॉटिंग कहा जाता है। खून का थक्का बनना अच्छा माना जाता है क्योंकि किसी भी व्यक्ति को चोट लगने पर इसकी वजह से ही खून के का बहना रुकता है। जब यही थक्के शरीर के अंदर बनने लगते हैं और उन्हें बाहर निकलने की जगह नहीं मिलती तो यह जानलेवा साबित हो सकता है क्योंकि इससे शरीर में रक्त का प्रवाह बाधित होता है।
आखिर क्या होते हैं क्लॉटिंग के कारण
इस बाबत डॉक्टर आयुष पांडे का कहना है कि शरीर में मौजूद एक विशेष प्रकार के प्रोटीन के कारण खून जमता या रुकता है। कभी-कभी इसके पीछे वंशानुगत कारण भी जिम्मेदार होते हैं। ब्लड क्लॉटिंग की स्थिति में शरीर में कई तरह की समस्याएं पैदा हो सकती हैं और इससे हार्ट अटैक के साथ ही पैरालिसिस होने का खतरा भी बढ़ जाता है।
मरीजों के लिए समस्या क्यों बनी जानलेवा
यूनिवर्सिटी आफ एडिनबर्ग के वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोना मरीजों में खून का थक्का जमने के लक्षण भी नजर आ रहे हैं और ऐसी स्थिति में इलाज मुश्किल साबित होगा। वैज्ञानिकों का मानना है कि खून के जरिए यह ब्लड क्लॉट्स फेफड़ों तक जा सकते हैं और ऐसी स्थिति में मरीज के लिए जानलेवा साबित हो सकते हैं।
हालांकि वैज्ञानिकों का कहना है कि अभी यह शुरुआती रिपोर्ट है और कुछ ही मरीजों पर इस बाबत अध्ययन किया गया है। वैज्ञानिकों ने डॉक्टरों को सलाह दी है कि यदि किसी मरीज में खून के थक्के जमने की आशंका नजर आए तो समय रहते उसका इलाज करना जरूरी है नहीं तो यह उसके लिए जानलेवा साबित हो सकता है।