Farmer New Front : किसानों का नया मोर्चा सरकार से बातचीत को तैयार, नये कानूनों की वापसी की मांग छोड़ी

Farmer New Front : किसान निकाय कानूनों को निरस्त करने की मांग किए बिना सरकार से बात करने के लिए तैयार हैं।

Written By :  Ramkrishna Vajpei
Published By :  Shraddha
Update:2021-08-08 11:59 IST

किसानों का नया मोर्चा सरकार से बातचीत को तैयार (कॉन्सेप्ट फोटो - सोशल मीडिया)

Farmer New Front : दिल्ली में संयुक्ति किसान मोर्चा के बैनर तले चल रहे किसान आंदोलन (peasant movement) में पड़ी फूट अब सतह पर दिखाई देने लगी है। जिसके चलते गुरनाम सिंह चढूनी (Gurnam Singh Chaduni) अलग हो चुके हैं और एक नवगठित किसान संगठन राष्ट्रीय किसान मोर्चा ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) से तीन कृषि कानूनों में चार संशोधन करने की मांग की है, जिसे संसद के चल रहे मानसून सत्र के दौरान पारित करने को कहा है।

मोर्चा के संयोजक वीएम सिंह ने कहा है कि विरोध करने वाले किसान निकाय कानूनों को निरस्त करने की मांग किए बिना सरकार से बात करने के लिए तैयार हैं। इसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई है और संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम), जो कि 30 से अधिक किसान यूनियनों का एक संयुक्त किसान संगठन है, जो पिछले आठ महीनों से दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के विरोध का नेतृत्व कर रहा है उसने आंदोलन में वीएम सिंह के योगदान पर सवाल उठाया और कहा कि वे अपनी दो मांगों से पीछे नहीं हटेंगे। पहली कृषि कानूनों को निरस्त करना और दूसरी एमएसपी की गारंटी देने वाला एक नया कानून लाना।

संयुक्त किसान मोर्चा की सरकार के साथ वार्ता प्रक्रिया टूटने से पहले यूनियनों और केंद्र के बीच 11 दौर की बात हो चुकी है। आखिरी बार 22 जनवरी को दोनों पक्ष बैठे थे। 100 से अधिक किसान संगठनों का मोर्चा होने का दावा करने वाले नवगठित मोर्चा ने 5 अगस्त को मोदी को लिखे एक पत्र में कहा कि अगर सरकार इस मुद्दे को सुलझाना चाहती है और किसानों से बात करना चाहती है तो तीन कानूनों में चार संशोधन किये जाने चाहिए।


मोर्चा के संयोजक वीएम सिंह (फाइल फोटो - सोशल मीडिया)


पत्र के अनुसार पहला संशोधन यह किया जाए कि जो कंपनी किसान की जमीन पर काम करेगी, दी गई जमीन पर कोई कर्ज नहीं ले सकती। वीएम सिंह ने पत्र में कहा है कि इससे किसानों के मन से यह डर दूर हो जाएगा कि उनकी जमीन गिरवी रख दी जाएगी या कंपनी के भाग जाने पर उन्हें कर्ज चुकाना होगा। इसके अलावा एक और संशोधन यह किया जाना चाहिए कि किसानों को कंपनी के साथ कोई समस्या होने पर पहले दीवानी अदालत का दरवाजा खटखटाना चाहिए। उन्होंने कहा कि एक और संशोधन जोड़कर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे कोई खरीद नहीं की जाती है। साथ ही, किसानों को कानून में उल्लिखित तीन कार्य दिवसों के बजाय उनकी उपज का तत्काल भुगतान करना होगा।

वीएम सिंह ने यह भी मांग की कि जारी आंदोलन के दौरान मारे गए लोगों के परिवारों को 10-10 लाख रुपये दिए जाएं और किसानों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले वापस लिए जाएं। विरोध करने वाले किसानों और सरकार के बीच गतिरोध को समाप्त करने के तरीकों पर चर्चा करने के लिए नई दिल्ली में नवगठित मोर्चा की बैठक के एक दिन बाद पत्र भेजा गया और दावा किया गया था कि "20 राज्यों के 100 से अधिक किसान संगठनों" ने इसमें भाग लिया। बैठक में शामिल होने वाले लोग दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे विरोध का हिस्सा नहीं हैं, और मोर्चा ने दावा किया कि वे सभी अपने राज्यों में कृषि कानूनों का विरोध कर रहे थे।


 किसान मोर्चा ने PM मोदी से तीन कृषि कानूनों में संशोधन की मांग (फाइल फोटो - सोशल मीडिया)

इस पर भारतीय किसान यूनियन डकौंडा के महासचिव जगमोहन सिंह पटियाला, जो एआईकेएससीसी के कार्यकारी सदस्य भी हैं, ने कहा कि वीएम सिंह अब एआईकेएससीसी से जुड़े नहीं हैं। हमें ऐसी किसी भी बैठक की जानकारी नहीं है जो उनके तथाकथित नवगठित मोर्चा ने आयोजित की हो। उन्होंने एमएसपी का मुद्दा उठाया तो अच्छा है। हालांकि, हम तीनों कानूनों को निरस्त करने की मांग कर रहे हैं और हम इस पर अडिग हैं।

वीएम सिंह पहले अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) के संयोजक थे। किसानों ने पिछले साल नवंबर में दिल्ली के लिए अपना मार्च शुरू करने से पहले, उन्होंने दिल्ली पुलिस को रामलीला ग्राउंड में एक रैली की अनुमति मांगने के लिए पत्र लिखा था, जिसे अस्वीकार कर दिया गया था, तब उन्होंने एक वीडियो संदेश में किसानों से दिल्ली तक मार्च नहीं करने का आग्रह किया था। और बढ़ते कोविड मामलों का हवाला दिया था।

हालांकि, यह किसानों और उनकी यूनियनों को अच्छा नहीं लगा। बाद में एआईकेएससीसी के कार्यकारी सदस्यों ने वीएम सिंह को प्रभावी रूप से हटाते हुए संयोजक के पद को समाप्त कर दिया। किसानों के दिल्ली बॉर्डर पर पहुंचने के बाद वीएम सिंह ने भी गाजीपुर बॉर्डर पर समानांतर धरना शुरू कर दिया और दिल्ली में किसानों की ट्रैक्टर रैली के दौरान 26 जनवरी को हुई हिंसा के बाद उन्होंने धरना वापस ले लिया था।

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