FMG के नए ड्राफ्ट से विदेश में मेडिकल की पढ़ाई कर रहे छात्रों में आक्रोश
विदेश में मेडिकल की पढ़ाई कर रहे छात्रों में और उनके परिवार के लोगों में एफ.एम.जी. ड्राफ़्ट को लेकर आक्रोश है।
नई दिल्ली: विदेश में मेडिकल की पढ़ाई कर रहे छात्रों में और उनके परिवार के लोगों में एफ.एम.जी. ड्राफ़्ट को लेकर आक्रोश है। नेशनल मेडिकल कमिशन ने 23/ 04/ 2021 को अपने वेबसाइट पर एफएमजी फॉरेन मेडिकल ग्रैजूएट ड्राफ़्ट को पब्लिक कमेंट के लिए अपने वेबसाइट पर रखा है। छात्रों का कहना है कि इस ड्राफ़्ट का बहुत सारे धारा और उपधारा उनके साथ विभेद कर रहा है।
ड्राफ़्ट के अनुसार विदेश में पढ़ाई करने के लिए योग्यता से लेकर लाइसेन्स के लिए नेक्स्ट इग्ज़ाम तक की बात कही गई है। यह वही एग्जाम है जिसको पास करने के बाद भारत में पढ़ रहे मेडिकल के छात्र या विदेश में पढ़ रहे मेडिकल छात्र पास कर के अपना स्टेट मेडिकल काउंसिल या एमसीआई से प्रैक्टिस केलिए लाइसेन्स ले सकेंगे।
एफएमजी ड्राफ्ट के अनुसार जिस पर छात्रों का विवाद खड़ा हो गया है उसमें से मुख्य यह है जिस देश में मेडिकल की पढ़ाई 4 साल का होता है उसके लिए ग्रैजूएशन पास करके पढ़ना होगा। जो कि अभी तक ऐसा नहीं था अभी तक का नियम यह था कि प्लस टू के बाद उस देश के एलिजिबिलिटी के हिसाब से वहां बीएस या प्रीमेड़ करके 4 साल के मेडिकल एजुकेशन कर सकते हैं लेकिन अगर ड्राफ़्ट बिल बनता है तब ऐसा सम्भव नहीं हो सकता है।
ड्राफ़्ट का दूसरा नियम जिस पर विवाद हो रहा है वह यह कि छात्र जिस कॉलेज में नामांकन लेते हैं वहीं से अपना प्राइमरी मेडिकल की पढ़ाई और 12 महीने का इंटर्नशिप आपको निश्चित रूप से करना पड़ेगा।अर्थात् छात्र एक कॉलेज से दूसरे कॉलेज में ट्रान्स्फ़र नहीं सकते हैं।
इस ड्राफ़्ट से पहले भी इस तरह के नियम समय-समय पर एमसीआई ने भी पहले बनाया था लेकिन हर बार देश के उच्च न्यायालयों ने उच्चतम न्यायालय ने नहीं माना और मेडिकल छात्रों को एक कॉलेज से दूसरे कॉलेज में ट्रान्स्फ़र को वैध बताया है फिर इस तरह के नियम ड्राफ़्ट में क्यूँ?
अभी तक जो बच्चे विदेश से अपनी मेडिकल की पढ़ाई करके भारत में इंटर्नशिप करना चाहते थे उनके लिए यह व्यवस्था दी गयी है कि भारत में आने के बाद स्क्रीन टेस्ट पास करने के बाद कर सकते हैं।
तीसरी जो विवादित पहलू ड्राफ्ट में है छात्र जिस देश में मेडिकल का पढ़ाई करने जाते हैं वहां पर आप का 10 साल का रजिस्ट्रेशन होना चाहिए। छात्रों का मानना है जब भारत में जो विदेशी छात्र मेडिकल की पढ़ाई करने आते हैं तो उनको सिर्फ इंटर्नशिप करने के लिए 1 साल का आस्था ईरजिस्ट्रेशन मिलता है। फिर दूसरे देशों में 10 साल के रजिस्ट्रेशन कैसे होगा और यह किस तरह का बेतुका नियम बनाने की प्रक्रिया में एनएमसी आगे बढ़ रही है।
इस एफ़एमजी ड्राफ्ट के अनुसार जिस देश में आप मेडिकल की पढ़ाई करना चाहते हैं वहां का पाठ्यक्रम एनएमसी के अनुरूप हो इसपर छात्रों का कहना है कि किसी भी देश के मेडिकल शिक्षा का पाठ्यक्रम उस देश के और डब्ल्यूएचओ के अनुसार होता है। ऐसे में कैसे संभव है कि वहां का पाठ्यक्रम नेशनल मेडिकल कमीशन के अनुरूप हो,यह सरासर गलत और बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है।
ड्राफ्ट आगे यह भी प्रावधान करता है विदेश से पढ़ के आने वाले छात्रों को एक अलग से प्रीमेडिकल और पारा क्लिनिकल का एग्जाम देने पड़ेंगे और जिस दिन से वह अपनी प्राइमरी मेडिकल डिग्री पास होने के साल से 2 साल के अंदर ही उनको नेक्स्ट पास करना होगा ।अभी। जो विदेश मेडिकल की पढ़ाई करके। आने के बाद स्क्रीनिंग टेस्ट देने होते हैं। यह साल में दो बार होता है नेक्स्ट का अभी तक कोई उस तरह से नोटिफिकेशन नहीं आया है किनेक्स्ट एग्जाम साल में कितने बार होगा। छात्रों और उनके परिवार जनों का इस पर बहुत आपत्ति है उनका कहना है एनएमसी बिल 2019 में एक देश एक परीक्षा की बात कही गई है फिर विदेश से पढ़ कर आने वाले छात्रों के साथ 2 साल का पाबंदी और अलग से एग्जाम लेने की जरूरत क्यों पड़ी? यह विदेश में पढ़ रहे बच्चों के साथ भेदभाव है, जब की सुप्रीम कोर्टने एमसीआई के इस तरह के नियम को अवैध बता चुका है।
अगर इस तरह से मसौदा को पास किया गया तो अभी तो कोविद को ध्यान में रखते हुए सोशल मीडिया और ईमेल से प्रोटेस्ट जारी है जरूरत पड़ी तो हम एनएमसी स्वास्थ्य मंत्रालय पीएमओ सभी जगह प्रदर्शन करेंगे। अभी तक एनएमसी और हेल्थ मिनिस्ट्री पीएमओ के पास तकरीबन 15000 से अधिक विदेश से मेडिकल की पढ़ाई कर रहे छात्रों और अभिभावकों ने उन्होंने इमेल टि्वटर उनके फेसबुक पेज और नमो एप पर अपनी अपनी जो बातें हैं पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं की किस तरह से यह ड्राफ्ट गलत है।
यहां पर जानना जरूरी यह है कि 2002 में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने स्क्रीनिंग टेस्ट रेग्युलेशन पास किया था उस समय भी इस तरह के प्रावधान था कि आप तीन बार से ज़्यादा इग्ज़ाम नहीं दे सकते हैं, लेकिन बाद में देश के उच्चतम न्यायालय ने उस प्रावधान को अवैध क़रार दिया था। स्क्रीनिंग टेस्ट को अनलिमिटेड कर दिया था।
दीपेंद्र चौबे होप कंसलटेंट के फाउंडर हैं विदेश में मेडिकल पढ़ने वाले छात्रों का मार्गदर्शन और परामर्श पिछले 15 सालों से देती आ रहे हैं उनका कहना है कि जब पूरी दुनिया आज करोना से जूझ रही है और डॉक्टरों की कमी को महसूस कर रही है वैसी परिस्थिति में एनएमसी के द्वारा जो ड्राफ्ट लाया जा रहा है यह सचमुच चौंकाने वाला है। जिस तरह के प्रावधान एनएमसी अपने ड्राफ्ट में कर रहा है एनएमसी को यह आने वाले दिन में विवादित होगा। इस तरह की चीजों से एनएमसी को बचना चाहिए।
एनएमसी बिल का मकसद था मेडिकल एजुकेशन में सुधार करना एक देश एक परीक्षा की बात हुई थी जिसके तहत छात्र विदेश में भी नीट एग्जाम पास करके जाते है फिर वहां से आने के बाद भी भारतीय बच्चों की तरह नेक्स्ट इग्ज़ाम क्यूँ नहीं देंगे। एनएमसी को जबाब देना होगा।
आपको पता होगा कि भारत में प्राइवेट और डीम्ड यूनिवर्सिटी का मेडिकल फ़ी कितना है यह किसी छुपा नहीं है। ऐसे स्थिती में मध्यवर्गीय और कम इनकम वाले मेधावी छात्र मेडिकल की पढ़ाई करना चाहते है, उनके लिए एक विदेश से मेडिकल की पढ़ाई करना एक बेहतरीन रास्ता है, लेकिन इस तरह से अगर सरकार नियम बनाएगी तो उन बच्चों के भविष्य पर बहुत बुरा असर पड़ेगा। मैं तो नेशनल मेडिकल कमिशन हेल्थ मिनिस्ट्री आग्रह करूंगा इस तरह के ड्राफ्ट को तुरंत हटाया जाए बच्चों के भविष्य को देखते हुए यह बच्चों के लिए कतई कारगर नहीं है।