Mahatma Gandhi: जब बीड़ी के लिए गांधी ने चुराए नौकर के पैसे, जानें टीचर ने उन्हें बूट से क्यों मारा?

Mahatma Gandhi: गांधी ने अपनी आत्मकथा (Gandhi ki Atmakatha) में भी अपनी बुरी आदतों का जिक्र किया है। बचपन में गांधीजी को एक रिश्तेदार के साथ बीड़ी पीने की लत (bidi pine ki lat) लग गई थी।

Report :  aman
Published By :  Monika
Update:2021-10-02 11:04 IST

महात्मा गांधी (फोटो : सोशल मीडिया )

Gandhi Jayanti: महात्मा गांधी ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आंदोलन कर उनकी चूलें जरूर हिला दी थी। लेकिन आपको यह बिलकुल नहीं पता होगा कि गांधी को बचपन में बेहद डरपोक और बुद्धू माना जाता था। ऐसा हम नहीं कह रहे, यह उनके बचपन की कहानियों और नजदीकी लोगों की बातों से प्रतीत होता है। तो चलिए आज सुनाते हैं गांधी के बचपन का एक रोचक किस्सा।

बीड़ी के लिए नौकर के पैसे चुराए

गांधी ने अपनी आत्मकथा (Gandhi ki Atmakatha) में भी अपनी बुरी आदतों का जिक्र किया है। बचपन में गांधीजी को एक रिश्तेदार के साथ बीड़ी पीने की लत (bidi pine ki lat) लग गई थी। अब बालक मोहनदास बीड़ी कैसे पीये। तो काकाजी जो बीड़ी पीकर फेंकते थे, गांधी उसे चुपचाप उठाकर रख लेते। जैसे ही उन्हें एकांत मिलता, मौका पाते ही उसे रिश्तेदार के साथ पीने लगते। लेकिन जब जली बीड़ी नहीं मिलती तब गांधी अपने घरेलू नौकर की जेब से पैसे चुराते थे और उससे बीड़ी खरीदकर पीते थे।

..लेकिन बीड़ी जैसा संतोष नहीं मिला

लेकिन ये सब बालक मोहनदास (Balak Mohandas ) के लिए इतना आसान नहीं था। कभी-कभी खरीदी गई बीड़ी को छुपाना उनके लिए मुश्किल भरा हो जाता था। तब उनके दोस्त ने सलाह दी कि लौकी की सूखी टहनी का टुकड़ा जलाकर पीने से भी बीड़ी जैसा ही आनंद आता है। गांधी ने लौकी की टहनी वाला प्रयोग भी किया। मगर उन्हें बीड़ी जैसा संतोष प्राप्त नहीं हुआ।

बचपन में शर्मीले और शांत थे गांधी

मोहनदास करमचंद गांधी के बारे में कहा जाता है कि जब वो सात साल के थे, तब वह पिताजी के साथ पोरबंदर से राजकोट आ गए थे। उनका दाखिला राजकोट की ग्रामशाला में करवाया गया। गांधी पढ़ाई में औसत थे। यहीं से उन्होंने हाईस्कूल की पढ़ाई पूरी की। गांधी को स्कूल में किसी से बात करना पसंद नहीं था। इसलिए जैसे ही स्कूल की घंटी बजती, वह क्लास में प्रवेश करते और जैसे ही छुट्टी की घंटी बजती, सबसे पहले वही क्लास रूम से बाहर निकलते थे और सीधे घर पहुंच जाते। इसीलिए गांधी का कोई मित्र नहीं था। कहते हैं कि दोस्त नहीं बनाने के पीछे मुख्य वजह यही थी कि उन्हें लगता था कि कोई उनका मजाक उड़ायेगा। जो उन्हें अच्छा नहीं लगेगा।

भूतों से बहुत डरते थे गांधी

बालक मोहनदास गांधी बचपन में भूतों से बहुत डरा करते थे। रात के वक्त वह बाहर कदम तक नहीं रखते थे। उन्हें लगता था कि जैसे ही वह बाहर निकलेंगे, कोने में छिपा भूत उन पर चढ़ जाएगा। गांधी को एक दिन दूसरे कमरे में जाना था। लेकिन तब वहां घुप्प अंधेरा था। वह डर रहे थे। काफी समझाने-बुझाने पर वह निकले। लेकिन फिर वापस चले आए। तभी पास खड़ी रंभा दाई ने पूछा, क्या बात है? गांधी ने बताया, "मुझे बगल के कमरे में जाना है, मगर भूत से डर लग रहा है।" तब रंभा दाई ने उन्हें प्यार से समझाया, "बेटा राम का नाम लो, भूत भाग जाएगा।" गांधी जी राम नाम जपते गए और काम करके वापस आ गए। कहते हैं कि इसके बाद गांधीजी ने राम नाम को एक मंत्र मान लिया।

टीचर ने गांधी को बूट से क्यों ठोकर मारा?

गांधी जी की आत्मकथा में गांधी से जुड़ी कई कहानियों का जिक्र है। ऐसी ही कहानी में, एक बार गांधी के विद्यालय में शहर के शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर दौरे पर आए। उन्होंने छात्रों को अंग्रेजी के पांच शब्द लिखने को कहा। गांधी ने एक शब्द की स्पेलिंग गलत लिखी। तब टीचर ने गांधी को बूट की नोक मारते हुए इशारा किया कि वह बगल वाले का देखकर गलती सुधारें। लेकिन गांधी जी ने शिक्षक के इशारे का उल्टा अर्थ समझा। उन्हें लगा कि टीचर उन्हें बगल देखने से मना कर रहे हैं। इसका परिणाम यह हुआ कि कक्षा के सभी बच्चों के पांचों शब्द सही थे, गांधी को छोड़कर। तब उनके टीचर ने बस इतना कहा कि तुम बुद्धू हो।

श्रवण कुमार की पितृभक्ति ने किया प्रभावित

बचपन में गांधी जी को स्कूली पुस्तकें पढ़ना बिलकुल भी पसंद नहीं था। जब शिक्षक पुस्तक पढ़वाते तो वे बेमन से पढ़ते थे। लेकिन एक दिन पिताजी ने उन्हें एक पुस्तक दिखायी। इसमें श्रवण कुमार की पितृभक्ति को बताया गया था। यह कहानी उन्हें इतनी अच्छी लगी कि पूरी पुस्तक पढ़कर ही उठे। श्रवण कुमार के अपने माता-पिता को लेकर प्यार और भक्ति से गांधी बेहद प्रभावित हुए। उन्हीं दिनों गांधी जी को बायस्कोप में श्रवण कुमार की कहानी देखने को मिली। जिसमें उन्होंने देखा कि कैसे श्रवण कुमार अपने माता-पिता को कांवड़ में बैठाकर तीर्थयात्रा पर गए थे। मगर राजा दशरथ की तीर से उनकी मृत्यु हो जाती है। उनके माता-पिता के पुत्र वियोग को देखकर गांधी व्यथित हो गए थे।

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