Happy Vijayadashami 2021: देशभर में आज विजयादशमी की धूम, अपने 'अंदर के रावण " को खत्म करने की करें कोशिश
आज देशभर में विजयादशमी के पर्व को धूमधाम से मनाया जा रहा है। हर साल आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को 'दशहरा' मनाया जाता है। दशमी तिथि को ही देशभर में रावण दहन का कार्यक्रम भी होता है। हालांकि इस बार कोरोना महामारी के गाइडलाइन्स को ध्यान में रखकर ही सभी तैयारियां की गई हैं।
Lucknow: शारदीय नवरात्रि और शक्ति उपासना का पर्व विजयादशमी आज यानि शुक्रवार 15 अक्टूबर, 2021 को देशभर में धूमधाम से मनाया जा रहा है। हर साल आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को 'दशहरा' मनाया जाता है। दशमी तिथि को ही देशभर में रावण दहन का कार्यक्रम भी होता है। हालांकि इस बार कोरोना महामारी के गाइडलाइन्स को ध्यान में रखकर ही सभी तैयारियां की गई हैं। दिल्ली, लखनऊ, पटना, रायपुर, रांची, कानपुर और अयोध्या सहित देश के विभिन्न शहरों में दशहरा धूमधाम से मनाया जा रहा है। विजया दशमी का त्योहार हमें असत्य पर सत्य की जीत और अपने 'अंदर के रावण' को खत्म करने की सीख देता है।
हर साल देश के अलग-अलग हिस्सों में रावण दहन होते हैं। इस दौरान रावण की 100-125 फीट ऊंचे पुतले को जलाया जाता रहा है। लेकिन इस बार कोरोना महामारी के मद्देनजर यह कार्यक्रम थोड़ा फीका रहेगा। कई हिस्सों में अब तक जहां रावण के विशाल पुतले का दहन होता था, वहां इस बार अपेक्षाकृत छोटे पुतलों के निर्माण की अनुमति मिली है। इसी तरह पुतला दहन से पूर्व प्रभु राम के चल समारोह को प्रतीकात्मक रूप से निकलने की अनुमति मिली है। साथ ही अन्य आयोजनों के लिए स्थानीय प्रशासन ने सख्त नियम लगा रखे हैं, लेकिन इस पर्व को मनाने से पहले यह जानना जरूरी है कि दशहरा मनाया क्यों जाता है? इसके पीछे क्या पौराणिक कथा है?
श्रीराम ने की थी मां दुर्गा की आराधना
पौराणिक कथानुसार, शारदीय नवरात्रि की शुरुआत भगवान श्रीराम ने की थी। आश्विन मास में श्रीराम ने मां दुर्गा के सभी नौ रूपों की आराधना की थी। हम सभी जानते हैं, कि रावण ने प्रभु श्री राम के 14 वर्षों के वनवास के दौरान माता सीता का हरण कर लिया था। तब श्रीराम ने मां सीता को अधर्मी रावण से बचाने के लिए उसका नाश किया था। राम और रावण के बीच कई दिनों तक युद्ध चला था। रावण के साथ चले इस युद्ध के दौरान प्रभु श्रीराम ने आश्विन मास के शारदीय नवरात्रि के दिनों में लगातार नौ दिनों तक मां दुर्गा की आराधना की थी। फलस्वरूप, मां दुर्गा के आशीर्वाद से भगवान श्रीराम ने शारदीय नवरात्रि के दसवें दिन दुष्ट रावण का वध किया था। इसी परंपरा को हर साल मनाया जाता है और दशहरा के दिन रावण, मेघनाथ और कुंभकर्ण को बुराई का प्रतीक मानकर उसके पुतले जलाए जाते हैं।
मां दुर्गा ने किया महिषासुर का संहार
रावण वध कथा के अलावा एक अन्य पौराणिक कथा प्रचलित है। जिसके अनुसार असुर महिषासुर और उसकी सेना लगातार देवताओं को परेशान कर रही थी। तब देवताओं ने मां दुर्गा से इस असुर के अंत की याचना की। इस वजह से मां दुर्गा ने लगातार नौ दिनों तक महिषासुर और उसकी सेना से युद्ध किया। इस युद्ध के दसवें दिन मां दुर्गा ने महिषासुर का संहार कर विजय प्राप्त की थी। इसी वजह से इसे विजयादशमी कहा जाता है। बता दें कि शारदीय नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि के दिन किए गए कलश स्थापना, मां की मूर्तियां और बोए हुए ज्वारों का विसर्जन भी इसी दिन किया जाता है।
उल्लेखनीय है, कि हिन्दू धर्म में जितने भी त्योहार मनाए जाते हैं, वह कोई न कोई संदेश जरूर देता है। इसी तरह दशहरा का संदेश है, 'बुराई पर अच्छाई की जीत'। तो, आइए आज हम आपको बताते हैं, देश के ऐसे पांच दशहरा मेलों के बारे में जो दुनियाभर में मशहूर हैं।
मदिकेरी: तीन महीने पहले से तैयारी
कर्नाटक के मदिकेरी शहर में देश के बाकी हिस्सों की तरह ही दस दिन दशहरा की धूम रहती है। इन 10 दिनों तक शहर के चार बड़े अलग-अलग मंदिरों में विशेष आयोजन होता है। इन आयोजनों की तैयारी तीन महीने पहले से ही शुरू हो जाती है। दशहरे के दिन से एक विशेष उत्सव 'मरियम्मा' की शुरुआत होती है। वहां मान्यता है कि इस शहर के लोगों को एक खास तरह की बीमारी ने घेर रखा था, जिसे दूर करने के लिए मदिकेरी के राजा ने देवी मरियम्मा को प्रसन्न करने के लिए इस उत्सव की शुरुआत की थी।
मैसूर: पहली बार मेला 1610 में
आपको पता है, दशहरा को कर्नाटक का 'प्रादेशिक त्योहार' माना जाता है। मैसूर का दशहरा विश्व प्रसिद्ध है। यहां का दशहरा देखने के लिए लोग दुनियाभर से आते हैं। बता दें कि यहां पर दशहरा मेला नवरात्रि से ही प्रारंभ हो जाता है। जिसमें लाखों लोग शिरकत करते हैं। जानकारों की मानें, तो मैसूर में दशहरा मेले का आयोजन सबसे पहले वर्ष 1610 में किया गया था। कहा तो यह भी जाता है कि मैसूर नाम 'महिषासुर' के नाम पर ही रखा गया था। विजयादशमी के दिन मैसूर महल को भव्य तौर पर सजाया जाता है। गायन-वादन के साथ शोभायात्रा निकाली जाती है। हालांकि इस बार कोरोना महामारी के मद्देनजर कई तरह के आयोजनों पर रोक है, तो कुछ प्रतीकात्मक ही होंगे।
कोटा: 25 दिनों तक आयोजन
राजस्थान के कोटा शहर में दशहरे का आयोजन 25 दिनों तक होता है। इस मेले की शुरुआत 125 वर्ष पूर्व महाराजा भीम सिंह, द्वितीय ने की थी। उनके द्वारा शुरू की गई परंपरा आज तक निभाई जा रही है। विजयादशमी को यहां रावण, मेघनाद और कुम्भकर्ण का पुतला दहन होता है। इसके अलावा भजन-कीर्तन तथा कई प्रकार की प्रतियोगिताएं भी आयोजित होती हैं। इन्हीं कारणों से यहां का मेला देशभर में प्रसिद्ध है।
बस्तर: यहां नहीं होता रावण दहन
छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाका बस्तर जिले के दंडकारण्य में भगवान राम अपने चौदह वर्ष के वनवास के दौरान रहे थे। इसी जगह के जगदलपुर में मां दंतेश्वरी मंदिर है। जहां हर वर्ष दशहरा के मौके पर वन क्षेत्र के हजारों आदिवासी आते हैं। कहा जाता है, बस्तर के लोग 600 सालों से यहां यह त्योहार मनाते रहे हैं। यहां रावण दहन नहीं होता है। दरअसल, यहां के आदिवासियों और राजा के बीच अच्छा मेलजोल था। राजा पुरुषोत्तम ने यहां पर रथ चलाने की प्रथा शुरू की थी, इसी कारण से यहां पर रावण दहन नहीं बल्कि दशहरे के दिन रथ चलाया जाता है।
कुल्लू
हिमाचल प्रदेश के कुल्लू के ढालपुर मैदान में मनाया जाने वाला दशहरा भी विश्व प्रसिद्ध है। हिमाचल के कुल्लू में दशहरे को 'अंतरराष्ट्रीय त्योहार' घोषित किया गया है। यहां होने वाले आयोजन को देखने के लिए लोग बड़ी तादाद में आते हैं। यहां दशहरे का आयोजन 17वीं शताब्दी में शुरू हुआ था। यहां विशेष तौर पर लोग अलग-अलग भगवानों की मूर्ति सिर पर रखकर भगवान राम से मिलने जाते हैं। यह उत्सव यहां सात दिनों तक मनाया जाता है।
ये तो रही बात देश के उन चुनिंदा दशहरा आयोजनों की जिसकी ख्याति दुनियाभर में है। लेकिन, कोविड- 19 महामारी की वजह से बीते दो सालों में सभी तरह के आयोजनों और पूजा पंडालों पर एक तरह से सख्ती है। गाइडलाइन्स के हिसाब से ही स्थानीय प्रशासन आयोजनों की मंजूरी देता है। जैसे, आज रावण दहन को लेकर भी विशेष व्यवस्था की गई है। दिल्ली, पटना, लखनऊ, रांची सहित कई शहरों में दशहरे की धूम है, जबकि मुंबई में इस बार कोई बड़ा कार्यक्रम आयोजित नहीं किया गया है।
दिल्ली में अबकी बार 50 फीट का ही रावण
इस बार दिल्ली के रामलीला मैदान में आयोजित कार्यक्रम में रावण के पुतले की ऊंचाई कम कर दी गई है। पहले यहां 150 फीट ऊंचा रावण बनाया जाता था, तो अबकी बार इसकी लंबाई को कम कर दिया गया है। इस बार उसे सिर्फ 50 फीट का ही बनाया गया है। इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल होंगे। यह आयोजन लव-कुश रामलीला समिति की तरफ से किया गया है। यहां शाम 6 बजे रावण दहन का आयोजन किया गया है।
लखनऊ में रात 8 बजे होगा रावण दहन
इसी प्रकार उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में रावण दहन का समय रात 8 बजे सुनिश्चित किया गया है। यह कार्यक्रम ऐशबाग रामलीला मैदान में आयोजित होगा। यहां रावण के पुतले की ऊंचाई इस बार 80 फीट रखी गई है। मुख्य अतिथि के तौर पर उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा को आमंत्रित किया गया है। जिस दशहरा समिति ने इसका आयोजन किया है उसका नाम राम लीला समिति, ऐशबाग है।
कानपुर में 90 फीट का रावण
इसी तरह उत्तर प्रदेश के व्यावसायिक शहर कानपुर में रावण दहन का समय रात 9 से 9:30 बजे तय किया गया है। यहां यह कार्यक्रम परेड रामलीला ग्राउंड में होगा। रावण के पुतले की ऊंचाई 90 फीट रखी गई है। मुख्य अतिथि के रूप में बीजेपी सांसद सत्यदेव पचौरी को आमंत्रित किया गया है। यहां जिस दशहरा समिति ने कार्यक्रम का आयोजन किया है उसका नाम श्री रामलीला सोसाइटी परेड है।
अयोध्या में रावण दहन शाम 5.30 बजे
इसके अलावा रामनगरी अयोध्या में रावण दहन का समय शाम 5.30 बजे सुनिश्चित किया गया है। यह कार्यक्रम लक्ष्मण किला में आयोजित किया गया है। जिसे दशहरा समिति 'अयोध्या की रामलीला' द्वारा आयोजित किया गया है।
पटना में कुम्भकर्ण के साथ कोरोना का भी पुतला दहन
इसी तरह बिहार की राजधानी पटना में रावण दहन कार्यक्रम का आयोजन स्थल कालिदास रंगालय रखा गया है। यहां इस बार विशेष तौर पर कुम्भकर्ण के साथ कोरोना का पुतला भी जलाया जाएगा। रावण वध का समय शाम 4: 30 से 5:30 बजे के बीच रखा गया है। पटना में आयोजित रावण दहन के लिए पुतले की ऊंचाई मात्र 15 फीट रखी गई है। पहले यह 50 फीट ऊंचा हुआ करता था। इसे श्री दशहरा कमेटी ट्रस्ट द्वारा आयोजित किया गया है।