Independence Day 2021: आजादी के जश्न में शामिल नहीं थे महात्मा गांधी, जानें क्या थी वजह

Independence Day 2021: 15 अगस्त 1947 को पूरा देश अंग्रेजी हुकूमत से आजादी का जश्न मना रहा था लेकिन मोहनदास करमचंद गांधी इस जश्न में मौजूद नहीं थे।

Written By :  Anshul Thakur
Published By :  Shreya
Update: 2021-08-14 15:32 GMT

महात्मा गांधी (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Independence Day 2021: 15 अगस्त 1947 को पूरा देश अंग्रेजी हुकूमत से आजादी का जश्न मना रहा था लेकिन भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाने वाले मोहनदास करमचंद गांधी (Mohandas Karamchand Gandhi) इस जश्न में मौजूद नहीं थे क्या आप जानते हैं कि ऐसा क्यों था अगर नहीं तो इस खबर को गौर से पढ़ें।

15 अगस्त 1947 कि सूरज की किरण अपने साथ देश की आजादी लेकर आई थी। आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू (Jawahar Lal Nehru) ने लाल किले से तिरंगा फराया। जनता सड़कों पर आजादी की पहली सुबह में झुम रही थी। चारों तरफ एक खुशी का माहौल था लेकिन अहिंसा के पुजारी और अजादी की लड़ाई के मुख्य नायक महात्मा गांधी दिल्ली से हजारों किलोमीटर दूर अनशन पर थे। 

 महात्मा गांधी (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

अनशन पर थे महात्मा गांधी

दरअसल, जिस वक्त देश को आजादी मिली उस वक्त महात्मा गांधी कोलकाता के हैदरी मस्जिद में रुके हुए थे। दिल्ली में जहां आजादी का जश्न मनाया जा रहा था। लेकिन गांधी जी को बंगाल में दंगों का डर सता रहा था। आजादी के साथ भारत को विभाजन का सांप भी मिला था। महात्मा गांधी इस बंटवारे के सख्त खिलाफ थे। लेकिन उसके बाद भी भारत देश का बंटवारा हुआ और हिंदू मुस्लिम के बीच दंगे हो गए।

इस निभाजन को देखते हुए महात्मा गांधी बंगाल में हिंदू-मुस्लिम दंगों को शांत रखने के लिए उपवास पर थे। महान समाजवादी नेता डॉ। राम मनोहर लोहिया की किताब 'भारत विभाजन के गुनहगार' के अनुसार महात्मा गांधी को बंटवारे और आजादी की सारी शर्तों के बारे में पूरी जानकारी नहीं दी गई थी और महात्मा गांधी इस पर भी नाराज थे।

जब देश आजाद हो रहा था तो पंडित जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल ने महात्मा गांधी को मनाने की बहुत कोशिश की उन्हें खत लिख कर दिल्ली वापस आने की गुजारिश भी की गई लेकिन महात्मा गांधी ने कहा कि बंगाल जल रहा है मैं कैसे इस की रोशनी लेकर दिल्ली आ जाऊं। गांधी ने आजादी की पहली सुबह गांधी के लिए उपवास के साथ शुरू हुई थी। उन्होंने चरखा कातते हुए कुछ पत्रों के जवाब लिखवाए और चरखा कातने को ही उत्सव का नाम दिया था। 

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