Economy अब भी वहां नहीं पहुंच पाई जहां दो साल पहले थी

Economy: भारत की जीडीपी की विकास दर में 20 प्रतिशत का उछाल आने की बात कही गयी है। यह बात सही है कि जीडीपी की ग्रोथ दर में बढ़ोतरी हुई है।

Written By :  Neel Mani Lal
Published By :  Shweta
Update:2021-09-01 18:23 IST

कॉन्सेप्ट फोटो ( फोटो सौजन्य से सोशल मीडिया)

Economy: भारत की जीडीपी की विकास दर में 20 प्रतिशत का उछाल आने की बात कही गयी है। यह बात सही है कि जीडीपी की ग्रोथ दर में बढ़ोतरी हुई है। लेकिन कोरोना काल से पहले की स्थिति से तुलना करें तो स्थिति अब भी चिंताजनक ही बनी हुई है। देश की अर्थव्यवस्था दो साल पहले के लेवल तक भी अभी पहुंच नहीं पाई है। भारत सरकार के सांख्यिकी मंत्रालय ने आंकड़े जारी करके वित्त वर्ष 2021-22 की पहली तिमाही यानी अप्रैल से जून तक की स्थिति की जानकारी दी है। आंकड़े दिखा रहे हैं कि इस दौरान भारत की जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद में पिछले साल इसी अवधि के आंकड़ों के मुकाबले 20.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। पहली नजर में यह हैरतंगेज बात लगती है कि कोरोना के कारण फ़ैली मंदी में ये अचानक उछाल कैसे आ गया? पिछले वित्त वर्ष की इसी तिमाही में जीडीपी में 24.4 प्रतिशत की गिरावट आई थी।

ध्यान से देखने पर पता चलता है कि अर्थव्यवस्था में रिकवरी तो हुई है । लेकिन वह रिकवरी लॉकडाउन के दौर की तुलना में हुई है। जब पिछले साल कोरोना महामारी के चलते पूरे देश में लॉकडाउन लगाया गया था तब देश में समस्त आर्थिक गतिविधियां लगभग ठप हो गयी थीं। इस वजह से जीडीपी का बेस यानी आधार ही बहुत नीचे चला गया, जिसे करीब 24 प्रतिशत की गिरावट के तौर पर नापा गया। जब बेस बहुत नीचे चला जाता है तो हलकी सी उछाल भी बड़े सुधार का भ्रम पैदा कर देती है। जबकि असलियत में हालात में उतना सुधार नहीं आया होता है। अगर जीडीपी पिछले साल 24 प्रतिशत गिर गई थी और अब 20 प्रतिशत ऊपर आई है तो क्या जीडीपी ने पहले 24 फीसदी की गिरावट को कवर किया और फिर 20 फीसदी की उछाल दर्ज की यानी क्या 44 फीसदी रिकवरी हुई है? शायद नहीं। इसे यूं समझा जा सकता जा सकता है कि अगर पिछले साल देश की जीडीपी 100 रुपए थी जो कोरोना लॉकडाउन के कारण 24 फीसदी नीचे चली गयी यानी गिरावट आने के बाद जीडीपी 76 रुपये पर आ गयी। अब अगर उसमें 20 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है तो वो 76 रुपये का 20 फीसदी बढी है। यानी 15 रुपये बढ़ी। यानी वह 91 रुपये के लेवल तक पहुँच पाई है। 100 रुपये का लेवल पाने में अब भी वह 9 रुपये कम है। अगर ताजा आंकड़ों को इसके ठीक पहले की तिमाही यानी जनवरी 2121 से मार्च 2021 के आंकड़ों से तुलना करें तो पाएंगे की जीडीपी में करीब 17 प्रतिशत की गिरावट आई है। कई अर्थशास्त्रियों का कहना है कि अगर देश की अर्थव्यवस्था के मौजूदा स्वास्थ्य का सही अंदाजा लगाना है तो उसकी तुलना महामारी के पहले के हालात यानी वित्त वर्ष 2019-20 के आंकड़ों से करनी चाहिए।

भारत सरकार के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु ने एक ट्वीट में बताया कि अप्रैल-जून 2019 के मुकाबले जीडीपी की ताजा विकास दर माइनस 9.2 है, यानी उसमें 9.2 की गिरावट आई है। जीडीपी के आँकड़े की सरकारी विज्ञप्ति में ही बताया गया है कि पिछले साल अप्रैल से जून के बीच देश की जीडीपी 26.95 लाख करोड़ रुपए थी जो इस साल अप्रैल से जून की तिमाही में बीस फीसदी बढ़कर 32.38 लाख करोड़ हो गई है। लेकिन असलियत में पिछले साल इस तिमाही की जीडीपी उसके पिछले साल के मुक़ाबले 24.4 फीसदी कम थी। यानी 2019 में अप्रैल से जून के बीच भारत की जीडीपी थी 35.85 लाख करोड़ रुपए। इन तीन आँकड़ों को साथ रखकर देखें तब तस्वीर साफ़ होती है कि अभी देश की अर्थव्यवस्था वहाँ भी नहीं पहुँच पाई है, जहाँ अब से दो साल पहले थी।

रुकी हुई है खपत

अर्थव्यवस्था में करीब 55 प्रतिशत हिस्सा खपत के स्तर से बनता है । इसे आर्थिक प्रगति का एक बड़ा सूचक माना जाता है। खपत पिछली कई तिमाही से गिरी ही हुई है । ताजा आंकड़ों में तो नजर आ रहा है कि यह गिर कर 2017-18 के स्तर के आस पास पहुंच चुकी है। यानी आम लोग अपनी खपत या खर्च बढ़ा नहीं रहे हैं। लोगों के पास जब पैसा होगा तो वे अधिकाधिक उपभोग करेंगे और उससे खपत बढ़ती है। खपत का न बढ़ना दिखाता है कि लोग टाइट पोजीशन में हैं। जब तक खपत नहीं बढ़ेगी तब तक अर्थव्यवस्था में निवेश भी नहीं होगा।

क्या है जीडीपी

जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद एक नियत समय सीमा के भीतर किसी देश में उत्पादित सभी परिष्कृत वस्तुओं और सेवाओं का कुल मौद्रिक या बाजार मूल्य है। समग्र घरलू उत्पादन की एक व्यापक माप के रूप में यह देश की आर्थिक सेहत के एक व्यापक स्कोरकार्ड के रूप में काम करता है। वैसे तो जीडीपी की गणना आम तौर पर वार्षिक आधार पर की जाती है लेकिन कभी-कभी इसकी गणना त्रैमासिक आधार पर भी की जाती है। इस रिपोर्ट में शामिल इंडीविजुअल डेटा सेट वास्तविक अर्थों में दिए जाते हैं, इसलिए डेटा को कीमत परिवर्तनों और शुद्ध मुद्रास्फीति के लिए समायोजित किया जाता है।

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