First TestTube Baby: हर्षा या दुर्गा, कौन है इस तकनीक का जनक
First Tube Baby: 6 अगस्त का दिन मेडिकल साइंस के लिए खास है। खास इसलिए है कि इस दिन 1986 में देश की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म हुआ था जिसका नाम है हर्षा चावड़ा।
First Test Tube Baby: 6 अगस्त का दिन मेडिकल साइंस के लिए खास है। खास इसलिए है कि इस दिन 1986 में देश की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म हुआ था जिसका नाम है हर्षा चावड़ा। मुंबई के जसलोक अस्पताल में डॉक्टर इंदिरा हिन्दुजा ने हर्षा का जन्म करवाया था। हर्षा इस समय 35 साल की है। खास बात यह है कि 2016 में हर्षा ने भी 2 मार्च 2018 को एक बेटे का जन्म दिया। इस तरह भारत की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी अब मां बन चुकी है।
6 अगस्त 1986 देश में आईवीएफ तकनीक के जन्म का दिन है तब से अब तक हजारों लोग इस तकनीक से संतान सुख पा सके हैं। लेकिन इस तकनीक के आविष्कारक को अपनी जिंदगी में यश नहीं मिल पाया जिसके चलते 1981 में इस डॉक्टर ने आत्महत्या कर ली लेकिन ये बात अक्षरशः सच है कि 1978 में भारत में पहले टेस्ट ट्यूब बेबी पर सफल परीक्षण कर लिया गया था। यह खोज दुनिया के दूसरे और भारत के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी का सफल परीक्षण मानी जाती है। कोलकाता के डॉक्टर सुभाष मुखोपाध्याय ने पहली बार इस परीक्षण से लोगों को अवगत कराया था। सुभाष ने 1978 में इस बात को सबके सामने स्वीकारा था कि उनके द्वारा किया गया पहला टेस्ट ट्यूब बेबी का परीक्षण सफल रहा है।
डॉ सुभाष मुखोपाध्याय का जन्म 16 जनवरी 1931 को हजारी बाग में शहर के झंडा चौक स्थित सदर विधायक कार्यालय में हुआ था। यह परिसर उनके नाना अनुपम बाबू का था। बहुत कम लोगों को ये जानकारी है कि यह कार्यालय परिसर भारत के एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक के इतिहास से जुड़ा है। भारत के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी के जनक डॉ सुभाष मुखोपाध्याय अपने नाना अनुपम बाबू के घर पैदा हुए थे। अनुपम बाबू उस समय के जाने माने अधिवक्ता थे। वहीं विधायक कार्यालय परिसर में उनकी आदमकद तस्वीर लगाई गई है। सदर अस्पताल परिसर में उनकी प्रतिमा भी लगी है। डॉ सुभाष मुखोपाध्याय की पढ़ाई लिखाई कोलकाता और उसके बाद एडिनबर्ग में हुई थी। इनकी विट्रो फर्टिलाइजेशन तकनीक के जरिए भारत में पहली टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म तीन अक्तूबर 1978 को कोलकाता में हुआ था। डॉक्टर्स टीम के अगुवा डॉ सुभाष थे।
दुर्भाग्य से इनके काम पर राज्य सरकार ने शक किया और नाकाबिल लोगों की टीम ने इनके काम की जांच कर संदेह जाहिर किया। जिसके चलते सुभाष अपने काम को अंतर्राष्ट्रीय फलक पर नहीं रख पाए। मुखोपाध्याय को अपने काम को चिकित्सा वैज्ञानिकों के समक्ष अंतर्राष्ट्रीय फलक पर रखने के लिए टोक्यो जाना था। लेकिन संदेह जताते हुए उन्हें टोक्यो जाने से रोक दिया गया। इससे निराश होकर उन्होंने 19 जून 1981 को कोलकाता में सुसाइड कर लिया। लेकिन बाद में इनके काम को सही ठहराया गया और भारत के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी के जनक के रूप में मान्यता दी गई।
हालांकि शुरुआत में डॉ. टीसी आनंद कुमार को देश में पहले टेस्ट ट्यूब बेबी का जनक माना गया। डॉ. आनंद ने दुर्गा के जन्म के आठ वर्ष बाद एक टेस्ट ट्यूब बेबी हर्षा को पैदा कराया था। हर्षा को देश में तब तक पहली टेस्ट ट्यूब बेबी माना जाता रहा, जब तक डॉ. आनंद ने स्वयं देश में पहला टेस्ट ट्यूब बेबी पैदा कराने का श्रेय डाक्टर मुखोपाध्याय को नहीं दिया। लेकिन इस पूरे मामले में नया मोड़ तब आया जब मुखोपाध्याय की पत्नी ने उनकी डायरी और शोध कार्य से संबंधित दस्तावेज डाक्टर आनंद को उपलब्ध करा दिए। इन्हें देखने के बाद पूरी ईमानदार से डाक्टर आनंद ने स्वीकार कर लिया कि भारत में पहले टेस्ट ट्यूब बेबी को पैदा कराने वाले डॉ. मुखोपाध्याय ही थे। उन्होंने 1978 में जिस कन्या दुर्गा के जन्म कराने की बात कही थी। वह एकदम ठीक थी और इस लिए भारत में पहले टेस्ट ट्यूब बेबी को जन्म देने का श्रेय मुखोपाध्याय को मिलना चाहिए मुझे नहीं।