मुद्दा: मतदाताओं को 'रिझाने' और मुफ्त उपहार वाली याचिका पर SC का केंद्र और चुनाव आयोग को नोटिस, क्या है मामला?
राजनीतिक पार्टियों द्वारा मतदाताओं (voters) को रिझाने या आकर्षित करने के लिए सरकारी कोष से अतार्किक मुफ्त उपहारों के वादे के खिलाफ दायर एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
राजनीतिक पार्टियों (political parties) द्वारा मतदाताओं (voters) को रिझाने या आकर्षित करने के लिए सरकारी कोष (government fund) से अतार्किक मुफ्त उपहारों के वादे के खिलाफ दायर एक याचिका (petition) पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने केंद्र (Center) और निर्वाचन आयोग (Election Commission) को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
उच्चतम न्यायालय ने दायर एक जनहित याचिका (PIL) में ऐसे राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द (cancellation of registration) और उनके चुनाव चिन्ह (election symbol) जब्त (seize) करने की मांग की गई है, जो मतदाताओं को मुफ्त में सुविधाएं देने के वादे कर रहे हैं। गौरतलब है, कि आगामी पांच राज्यों के मौजूदा विधानसभा चुनावों में भी कई दलों ने आम मतदाताओं को बिजली सहित अन्य सुविधाएं मुफ्त का वादा किया है। साथ ही, किसान की कर्जमाफी तो हर चुनाव में एक बड़ा 'चुनावी आकर्षण' रहता है।
चार हफ़्तों में मांगा जवाब
चीफ जस्टिस एनवी रमन्ना (Chief Justice NV Ramanna) की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने बीजेपी नेता एवं वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय (ashwini kumar upadhyay) की ओर से दायर इस याचिका पर केंद्र सरकार और निर्वाचन आयोग को चार हफ्ते में जवाब दाखिल करने को कहा है। हालांकि, पीठ ने याचिका में चुनिंदा राज्यों तथा राजनीतिक दलों का जिक्र करने पर आपत्ति जताई।
कई राज्य पहले ही कर्ज में डूबे हैं
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की तरफ से वरिष्ठ वकील विकास सिंह (Vikas Singh) पेश हुए। उन्होंने कहा, कि सभी राजनीतिक दल चुनाव से पहले मतदाताओं को लुभाने के लिए कई तरह के मुफ्त उपहार देने का वादा करते हैं। उन्होंने कहा, कि 'इन वादों का बोझ आखिरकार आम आदमी को ही उठाना पड़ता है। सिंह ने ये भी कहा, कि कुछ राज्य पहले से ही भारी कर्ज में डूबी हैं, ऐसे में इस तरह के वादों पर लगाम लगाना जरूरी है।'
इन प्रलोभनों ने निष्पक्ष चुनाव की जड़ें हिला दी
इस जनहित याचिका में कहा गया है, कि राजनीतिक पार्टियों द्वारा चुनाव के समय 'गिफ्ट' की घोषणा से वोटर्स को अनुचित रूप से प्रभावित किया जाता है। इससे चुनाव प्रक्रिया की शुद्धता प्रभावित होती है। इस तरह के 'प्रलोभन' ने निष्पक्ष चुनाव की जड़ों को हिलाकर रख दिया है।
संविधान में क्या?
इस याचिका में दलों के ऐसे फैसलों को संविधान के अनुच्छेद-14, 162, 266 (3) और 282 का उल्लंघन बताया गया है। साथ ही, चुनाव आयोग को ऐसे राजनीतिक दलों के चुनाव चिन्ह जब्त करने तथा रजिस्ट्रेशन रद्द करने के भी निर्देश देने की मांग की गई है। खासकर, जिन्होंने सार्वजनिक धन से तर्कहीन मुफ्त 'उपहार' देने का वादा किया था। साथ ही, याचिका में दावा किया गया है, कि पॉलिटिकल पार्टियां गलत लाभ के लिए मनमाने तरीके से या तर्कहीन 'उपहार' का वादा करते हैं। मतदाताओं को अपने पक्ष में लुभाते हैं। यह रिश्वत और अनुचित प्रभाव के समान है।
'हम आपको खाना बनाकर खिलाएंगे'
इस याचिका में याचिकाकर्ता ने कहा है, कि अब वह समय दूर नहीं, जब एक राजनीतिक दल कहेगा कि 'हम आपके आवास में आपके लिए खाना बनाएंगे'। जबकि, दूसरा यह कहेगा कि 'हम न केवल खाना बनाएंगे, बल्कि आपको खिलाएंगे भी।' सभी दल लोकलुभावन वादों के जरिए दूसरे दलों से आगे निकलने की जुगत में हैं।