जम्मू-कश्मीर में नए समीकरण के संकेत, महबूबा की सोनिया से मुलाकात के क्या हैं सियासी मायने

Jammu Kashmir: जम्मू-कश्मीर में डिलिमिटेशन की प्रक्रिया का अंतिम चरण शुरू होने के बाद चुनाव की सुगबुगाहट भी दिखाई देने लगी है। महबूबा मुफ्ती और कांग्रेस दोनों को मजबूत सहयोगी दल की तलाश है।

Written By :  Anshuman Tiwari
Published By :  Vidushi Mishra
Update:2022-04-19 09:05 IST

महबूबा की सोनिया से मुलाकात (फोटो-सोशल मीडिया)

Jammu Kashmir: पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में झटका खाने के बाद कांग्रेस अब अपनी सियासी स्थिति मजबूत बनाने की कोशिश में जुटी हुई है। कांग्रेस की नजर जम्मू-कश्मीर पर भी है जहां पिछले चुनाव के दौरान कांग्रेस का नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ गठबंधन टूट गया था। इसी सिलसिले में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष और जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात को सियासी नजरिए से काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

जम्मू-कश्मीर में डिलिमिटेशन की प्रक्रिया का अंतिम चरण शुरू होने के बाद चुनाव की सुगबुगाहट भी दिखाई देने लगी है। महबूबा मुफ्ती और कांग्रेस दोनों को मजबूत सहयोगी दल की तलाश है और माना जा रहा है कि सोनिया से मुलाकात के दौरान महबूबा ने इस मुद्दे पर व्यापक चर्चा की है। हालांकि बातचीत के बाद दोनों नेताओं ने वार्ता के प्रमुख बिंदुओं का खुलासा नहीं किया है मगर इसे विधानसभा चुनाव में नए सियासी समीकरण और 2024 की सियासी जंग से जोड़कर देखा जा रहा है।

सोनिया से भेंट के बाद कांग्रेस की तारीफ

कांग्रेस से जुड़े सूत्रों का कहना है कि सोनिया के आमंत्रण पर ही महबूबा मुलाकात करने के लिए दिल्ली पहुंची थीं। उन्होंने सोनिया गांधी के आवास 10 जनपथ पर पहुंचकर कांग्रेस अध्यक्ष के साथ विभिन्न मुद्दों पर व्यापक चर्चा की है। चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर की कांग्रेस अध्यक्ष से मुलाकात के बाद हुई इस बातचीत को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

पीडीपी की ओर से इस मुलाकात को शिष्टाचार भेंट बताया गया है मगर जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव की सुगबुगाहट के बीच इस मुलाकात को राज्य की सियासत से जोड़कर देखा जा रहा है। सोनिया से मुलाकात के बाद महबूबा ने भाजपा पर हमला करने के साथ ही कांग्रेस की तारीफ भी की। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने हमेशा देश को सुरक्षित रखा।

जम्मू-कश्मीर के सियासी हालात बदले

जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को समाप्त किए जाने और विधानसभा सीटों के नए परिसीमन से सियासी हालात पूरी तरह बदल चुके हैं। जम्मू-कश्मीर में पहले कांग्रेस का नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ गठबंधन हुआ करता था मगर पिछले विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस ने गठबंधन तोड़ दिया था। इससे पहले दोनों दलों की गठबंधन सरकार उमर अब्दुल्ला की अगुवाई में करीब 6 साल तक चली थी। कांग्रेस के समर्थन वापस लेने के बाद उमर अब्दुल्ला ने मुख्यमंत्री पद छोड़ दिया था।

हाल के दिनों में उमर अब्दुल्ला के पिता फारूक अब्दुल्ला की भाजपा के साथ नजदीकी दिखाई दे रही है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में भी हिस्सा लिया था और परिसीमन आयोग की बैठक के दौरान भी वे भाजपा के रुख से सहमत दिखे थे। ऐसे में कांग्रेस महबूबा मुफ्ती के साथ मिलकर नए चुनावी गठजोड़ की संभावनाओं को तलाशने में जुटी हुई है।

भाजपा से बढ़ चुकी हैं दूरियां

जम्मू-कश्मीर में 2014 के विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा और पीडीपी की सरकार बनी थी। उस समय पीडीपी की कमान महबूबा के पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद के हाथों में थी। विधानसभा चुनाव में पीडीपी को 28 सीटों पर जीत हासिल हुई थी जबकि भाजपा भी 25 सीटें जीतने में कामयाब रही थी। भाजपा के समर्थन से मुफ्ती मोहम्मद सईद राज्य के मुख्यमंत्री बने थे और भाजपा के निर्मल सिंह को डिप्टी सीएम बनाया गया था।

2016 में मुफ्ती मोहम्मद सईद का निधन होने के बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था। राज्य में 88 दिनों तक का राष्ट्रपति शासन के बाद 4 अप्रैल 2016 को महबूबा मुफ्ती ने भाजपा के समर्थन से राज्य में सरकार बनाई थी। हालांकि दोनों दलों के बीच लंबे समय तक तालमेल नहीं बैठ सका।

भाजपा के समर्थन वापस लेने से महबूबा की सरकार गिर गई। राष्ट्रपति शासन लगाने के बाद राज्य की विधानसभा को भंग कर दिया गया था। अब महबूबा और भाजपा के बीच तालमेल की कोई संभावना नहीं बन रही है और ऐसे में महबूबा कांग्रेस से दोस्ती बढ़ाती दिख रही हैं।

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