Kishoridas Vajpayee: क्या आप इस पाणिनि को जानते हैं, जिसकी बदौलत हिन्दी राष्ट्रभाषा बनी

Kishoridas Vajpayee: इन्होंने हिन्दी को वह स्वरूप दिया जिसमें आज सभी कुछ काम किये जाते हैं। हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने में इनका योगदान अतुलनीय है। इनके योगदान को देखते हुए ही इन्हें हिन्दी का आचार्य और पाणिनि कहा जाता है।

Written By :  Ramkrishna Vajpei
Published By :  Monika
Update: 2021-08-11 07:04 GMT

आचार्य किशोरीदास वाजपेयी (फोटो : सोशल मीडिया ) 

Kishoridas Vajpayee: हिन्दी वालों। खासकर हिन्दी में काम करने वालों, हिन्दी में अध्यापन करने वालों, हिन्दी मीडिया से जुड़े लोगों और हिन्दी के छात्रों को आचार्य किशोरीदास वाजपेयी (Kishoridas Vajpayee) का नाम जानना चाहिए। इन्होंने हिन्दी को वह स्वरूप दिया जिसमें आज सभी कुछ काम किये जाते हैं। हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने में इनका योगदान अतुलनीय है। इनके योगदान को देखते हुए ही इन्हें हिन्दी का आचार्य और पाणिनि कहा जाता है। हिन्दी का व्याकरण जिसे अंग्रेजी में ग्रामर (Grammar) कहेंगे वह इनकी ही देन है और अभी तक इनका दिया हुआ व्याकरण सर्वमान्य है। आज इस मनीषि की पुण्यतिथि पर जानते हैं इनके बारे में खास बातें।

किशोरीदास वाजपेयी का जन्म ( Kishori Das Bajpai Birth) 1895 में 15 दिसंबर को कानपुर (kanpur) के बिठुर के पास ग्रांडट्रंक रोड जिसे जीटी रोड भी कहते हैं से लगे हुए गांव रामनगर में पंडित सत्तीदीन वाजपेयी के घर हुआ था। इनके माता पिता का दिया नाम गोविंद प्रसाद था। गोविंद जब लगभग दस-12 साल के हुए तो प्लेग में इनके माता पिता दोनों का निधन हो गया। अनाथ गोविंद दर दर भटकने लगा। जबकि इनके पिता बहुत ओजस्वी क्रांतिकारी थे। उनके साथ अपना घुड़सवार दस्ता चला करता था। उनकी शूरवीरता के चलते उन्हें आदर के साथ सत्ती सूरमा भाई कहा जाता था। वह अपने पुत्र की शिक्षा के प्रति संवेदनशील थे इसीलिए इनका दाखिला सरकारी स्कूल में कराया था। जहां से इस बालक ने तीसरी तक शिक्षा ग्रहण की थी।

जब दूर के चाचा ले आए कानपुर 

खैर अनाथ बालक ने गांव में भैंस चरायीं। निकटवर्ती स्टेशन मंधना जाकर चाट बेची और पुताई का काम भी किया इस बीच इनके दूर के चाचा इन्हें लेकर कानपुर आ गए और इन्हें मिल में नौकरी दिलवा दी। जबकि उनका खुद का लड़का पढ़ने जाता था। यह देख गोविंद को लगता ये मेरा भाई तो पढ़ जाएगा मै अनपढ़ रह जाऊंगा। इनका वेतन भी इनके चाचा जाकर ले लेते थे। एक बार किसी कारणवश वह इनका वेतन लेने नहीं पहुंचे। इन्हें पांच रुपये वेतन मिला। इसके साथ ही एक अवसर यह वहां भाग लिए और सीधे जो ट्रेन मिली उस में बैठ गए।

ऐसे पड़ा नाम किशोरीदास

कहते हैं व्यक्ति का भाग्य कर्म और ऊपर वाला मिलकर लिखते हैं। उस ट्रेन में साधुओं की मंडली जा रही थी। उन्होंने एक बच्चे को देखा प्रेम से बात की साथ भोजन कराया। इसके बाद जब मथुरा में साधुओं की मंडली उतरी तो ये भी साथ में उतर गए। साधुओं ने इनसे पूछा कहां जाओगे। इन्होंने कहा पता नहीं। गोविंद साधुओं के साथ रहने की इच्छा जताई तो उन्होंने कहा पढ़ना पड़ेगा। अंधे को क्या चाहिए दो आंखें। गोविंद ने तुरंत हां कह दी। गुरु ने जब इनका नाम पूछा तब तक ये किशोरी जी या राधा जी से बहुत प्रभावित हो चुके थे इसलिए गुरु से झूठ बोल दिया किशोरीदास। यहां से इनका यही नाम चला जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हुआ।

पंजाब यूनिवर्सिटी से पास की शास्त्री

किशोरीदास ने पढ़ाई करते हुए जब पंजाब यूनिवर्सिटी से शास्त्री की परीक्षा पास की तो तहलका मच गया। राहुल सांकृत्यायन ने लिखा जब शास्त्री का नतीजा आया तो मै तो चारों खाने चित था लेकिन पता चला एक संन्यासी ने टॉप किया है तब जानने की जिज्ञासा हुई तो पता चला कि ये अपने वाजपेयी जी हैं।

आचार्य वाजपेयी ने पढ़ाई संस्कृत में की लेकिन काम हिन्दी जगत के लिए किया। इन्होंने करीब 36 पुस्तकें लिखीं जिनमें बृजभाषा का व्याकरण, हिन्दी शब्दानुशासन, भाषा विज्ञान, अच्छी हिन्दी का नमून, हिन्दी की वर्तनी, शब्द मीमांसा आदि प्रमुख हैं। काव्यसंग्रह तरंगिणी इतनी क्रांतिकारी थी कि छपते ही जब्त कर ली गई। जिस पर महामना मदन मोहन मालवीय जी ने कहा वाजपेयी तुमने मिर्च का बघार कुछ ज्यादा ही तीखा लगा दिया। द्वापर की राजक्रांति नाम से नाटक भी लिखा।

आचार्य वाजपेयी हिन्दी जगत के दुर्वासा और परशुराम कहे जाते थे। इनका क्रोध प्रसिद्ध रहा। 11 अगस्त 1981 को कनखल हरिद्वार के रामकृष्ण मिशन अस्पताल में संक्षिप्त बीमारी के बाद इनका निधन हो गया।

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