Jagannath Rath Yatra: जानिए रथ यात्रा का क्या है इतिहास और महत्व, कैसे विदेशों तक पहुंची यह परंपरा

भगवान श्रीकृष्ण के अवतार जगन्नाथ जी की रथयात्रा का पुण्य सौ यज्ञों के समान होता है। इसकी तैयारी अक्षय तृतीया के दिन श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा के रथों के निर्माण के साथ शुरू हो जाती है।

Written By :  Rahul Singh Rajpoot
Newstrack :  Network
Update:2021-07-05 15:56 IST

भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा, फाइल, सोशल मीडिया

भारत में देवी-देवाओं की पूजा के लिए अलग-अलग पर्व और त्योहार आते हैं, इसमें भक्त मान्यताओं के अनुसार अपने आराध्य की उपासना करते हैं। ऐसे ही एक पर्व ओडिशा में भगवान जगन्नाथ पुरी का होता है। जिसमें रथ यात्रा निकाली जाती है जो देश ही दुनिया में भी काफी लोकप्रिय है, लेकिन इस साल कोरोना के कारण जगन्नाथ पुरी की यात्रा में भक्त नहीं शामिल हो पाएंगे। ऐसा 285 वर्षों में पहली बार होगा। हालांकि पिछले साल भी कोरोना संक्रमण की वजह से सांकेतिक रूप से यह यात्रा निकाली गई थी। तो चलिए आपको बताते हैं क्यों निकलती है ये रथ यात्रा और इसका देश-विदेश में क्या महत्व है।

रथ यात्रा क्या है महत्व

वैष्णव धर्म की मान्यता है कि राधा और श्रीकृष्ण की युगल मूर्ति के प्रतीक स्वयं श्री जगन्नाथ जी हैं। इसी प्रतीक के रूप श्री जगन्नाथ से सम्पूर्ण जगत का उद्भव हुआ है। श्री जगन्नाथ जी पूर्ण परात्पर भगवान है और श्रीकृष्ण उनकी कला का एक रूप है। ऐसी मान्यता श्री चैतन्य महाप्रभु के शिष्य पंच सखाओं की है। भगवान श्री जगन्नाथ जी की रथयात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को जगन्नाथपुरी में आरम्भ होती है। यह रथयात्रा पुरी का प्रधान पर्व भी है। इसमें भाग लेने के लिए, इसके दर्शन लाभ के लिए हज़ारों, लाखों की संख्या में बाल, वृद्ध, युवा, नारी देश-विदेश से पहुंचते हैं।

कहां से शुरू हुई ये परंपरा

कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्णर के अवतार जगन्नाहथजी की रथयात्रा का पुण्यल सौ यज्ञों के समान होता है। इसकी तैयारी अक्षय तृतीया के दिन श्रीकृष्णा, बलराम और सुभद्रा के रथों के निर्माण के साथ शुरू हो जाती है। रथयात्रा के प्रारंभ को लेकर कथा मिलती है कि राजा इंद्रद्यूम अपने पूरे परिवार के साथ नीलांचल सागर (उड़ीसा) के पास रहते थे। एक बार उन्हें समुद्र में एक विशालकाय काष्ठ दिखा। तब उन्होंाने उससे विष्णु मूर्ति का निर्माण कराने का निश्चय किया। उसी समय उन्हें एक वृद्ध बढ़ई भी दिखाई दिया जो कोई और नहीं बल्कि स्वंयं विश्वकर्मा जी थे। ये कैसी शर्त लगा ली बढ़ई ने राजा से बढ़ई बने भगवान विश्वकर्मा ने राजा से कहा कि वह मूर्ति तो बना देंगे। लेकिन उनकी एक शर्त है। राजा ने पूछा कैसी शर्त? तब उन्होंसने कहा कि मैं जिस घर में मूर्ति बनाऊंगा उसमें मूर्ति के पूर्ण रूप से बन जाने तक कोई भी नहीं आएगा। राजा ने इस सहर्ष स्वीैकार कर लिया। कहा जाता है कि वर्तमान में जहां श्रीजगन्नाथजी का मंदिर है उसी के पास एक घर के अंदर वे मूर्ति निर्माण में लग गए। राजा के परिवारीजनों को बढ़ई की शर्त के बारे में पता नहीं था।

पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर, सोशल मीडिया

शर्तकथा के अनुसार रानी ने सोचा कि कई दिन से द्वार बंद है और बढ़ई भी भूखा-प्याढसा होगा। कहीं उसे कुछ हो न गया हो। यही सोचकर रानी ने राजा से कहा कि कृपा करके द्वार खुलवाएं और वृद्ध बढ़ई को जलपान कराएं। रानी के यह बात सुनकर राजा भी अपनी शर्त भूल गए और उन्होंाने द्वार खोलने का आदेश दिया। कहते हैं कि द्वार खुलने पर वह वृद्ध बढ़ई कहीं नहीं मिला। लेकिन वहां उन्हेंर अर्द्धनिर्मित श्रीजगन्नाथ, सुभद्रा तथा बलराम की काष्ठ मूर्तियां मिलीं। तब से निकाली जाती है रथ यात्रा। कथा के अनुसार अधूरी पड़ी प्रतिमाओं को देखकर राजा और रानी को अत्यं त दु:ख हुआ। लेकिन उसी समय दोनों ने आकाशवाणी सुनी,व्यर्थ दु:खी मत हो, हम इसी रूप में रहना चाहते हैं इसलिए मूर्तियों को द्रव्य आदि से पवित्र कर स्थापित करवा दो। आज भी वे अपूर्ण और अस्पष्ट मूर्तियां पुरुषोत्तम पुरी की रथयात्रा और मंदिर में सुशोभित व प्रतिष्ठित हैं। मान्य।ता है कि श्रीकृष्ण व बलराम ने माता सुभद्रा की द्वारिका भ्रमण की इच्छा पूर्ण करने के उद्देश्य से अलग रथों में बैठकर रथयात्रा निकाली थी। तब से ही माता सुभद्रा की नगर भ्रमण की स्मृति में यह रथयात्रा पुरी में हर वर्ष आयोजित की जाती है।

कहां-कहां निकलती है रथ यात्रा

देश की बात करें तो उत्तर प्रदेश के लखनऊ, कानपुर, वाराणसी, मथुरा के अवाला गुजरात, असम, जम्मू , दिल्लीे, आंध्र प्रदेश, अमृतसर, भोपाल समेत तमाम शहरों निकाली जाती है। इसके अलावा बांग्लावदेश, अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को और लंदन में भी रथ यात्रा निकाली जाती है।

अमेरिका में 1967 से निकलती है रथ यात्रा

भगवान श्री कृष्ण भक्तों को रथ यात्राओं के साथ जोड़े रखने के लिए 20वीं शताब्दी में महान संत एवं इस्कॉन के संस्थापक आचार्य श्रील प्रभुपाद ने अथक प्रयास शुरू किये। उनकी ये पहल रंग लाई और 9 जुलाई 1967 को अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को की धरती पर जगन्नाथ रथयात्रा का आयोजन कर पहली बार भगवान श्री कृष्ण का नाम विदेशी धरती पर फैलाना शुरू किया गया। तब से लेकर आज तक सान फ्रांसिस्को में इस दिन को राष्ट्रीय अवकाश के रूप में मनाया जाता है।

इस्कॉन के संस्थापक आचार्य श्रील प्रभुपाद, सोशल मीडिया

ब्रिटेन में लाखों लोग होते हैं शामिल

इस्कॉन ऐसे ही उत्सव विश्व के सौ से भी अधिक शहरों में आयोजित करता है। ब्रिटेन की हिन्दू काउंसिल की ओर से हर साल भगवान जगन्नाथ पुरी की रथ यात्रा निकाली जाती है। भारत के बाहर हिन्दुओं का यह सबसे बड़ा वार्षिक जुलूस होता है। इस्कान के संस्थापक भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद ने 1968 में इस उत्सव को लंदन में आयोजित कराया था। अब यह हर साल होता है और इसमें हजारों लोग शामिल होते हैं।

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