लखीमपुर हिंसा मामला : अजय मिश्रा को हटाने की मुहिम में विपक्ष कहां खा रहा गच्चा, आखिर क्यों बर्खास्त नहीं कर रही मोदी सरकार

लखीमपुर खीरी (Lakhimpur kheri violence ) मामले पर मंगलवार को एसआईटी (SIT) रिपोर्ट आने के बाद से विपक्षी पार्टियां केंद्र की मोदी और उत्तर प्रदेश की योगी सरकार पर हमलावर है।

Written By :  aman
Update: 2021-12-16 09:14 GMT

Lakhimpur kheri violence : लखीमपुर खीरी (Lakhimpur kheri violence ) मामले पर मंगलवार को एसआईटी (SIT) रिपोर्ट आने के बाद से विपक्षी पार्टियां केंद्र की मोदी और उत्तर प्रदेश की योगी सरकार पर हमलावर है। खासकर, कांग्रेस पार्टी और उसके नेता जिनमें राहुल गांधी और प्रियंका गांधी प्रमुखता से मोर्चा संभाले हुए हैं। कांग्रेस पार्टी इस मुद्दे पर मोदी सरकार को घुटने टेकने को मजबूर करना चाहती है। इसलिए वो सड़क से संसद तक इसके खिलाफ धरना-प्रदर्शन तक किए जा रही है।   

राहुल-प्रियंका सहित विपक्षी पार्टियां केंद्र सरकार से गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी (Ajay mishra) का इस्तीफा मांग रही है। लेकिन, सरकार उनके शोर-शराबे को दरकिनार करते हुए बिलकुल शांत बनी हुई है। मोदी सरकार अजय मिश्रा के इस्तीफे के मूड में बिलकुल नहीं दिख रही। इसके पीछे एक ठोस वजह है और वो ये है कि लखीमपुर हिंसा मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही है। तो बीजेपी थिंक टैंक का ये मानना है कि जब मामला कोर्ट के अधीन है। सुनवाई जारी है। एसआईटी का गठन सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हुआ है। जांच टीम में सदस्यों की नियुक्ति सर्वोच्च अदालत के अनुसार हुई है, तो फैसले का इंतजार क्यों नहीं। विपक्ष की इस बेसब्री के पीछे सिर्फ राजनीति है, कोई तर्क नहीं।   

एक तर्क ये भी दिया जा रहा है कि बेटे की गलती की सजा बाप को क्यों मिले? इसे आप भावनात्मक नहीं बल्कि सैद्धांतिक तौर पर भी देखें तो, जो मामला सुप्रीम कोर्ट में है तो उसके फैसले या किसी आदेश आने तक तो रुका ही जा सकता है। गौरतलब है, कि लखीमपुर में किसानों पर आंदोलन के दौरान गाड़ी चढ़ाने के मामले में अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा का नाम सामने आया था। फिलहाल आशीष मिश्रा जेल में हैं।

भारतीय जनता पार्टी शीर्ष नेतृत्व का यह मानना है कि एसआईटी की रिपोर्ट अंतिम नहीं है। अदालत में भी मामले की सुनवाई जारी है। तो फिर अगर बेटे ने गुनाह किया भी है तो उसकी सजा पिता को तो नहीं दी जा सकती। दरअसल, ये शोर यूं ही नहीं है। याद करें, जब देश में 'मी टू' (Mee Too) मामला चल रहा था। तब तत्कालीन विदेश राज्य मंत्री एम.जे.अकबर का नाम आया था। तब भी ऐसा ही बवाल मचा था। आखिरकार, उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था। विपक्ष उस 'स्वाद' को चख चुकी है। इसलिए इस मामले में भी उसी की पुनरावृति चाहती है। लेकिन इसके पीछे तर्क होना चाहिए, जो कहीं नहीं दिख रहा।

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