गांवों में सिर्फ 8 फीसदी बच्चे शामिल हो सके ऑनलाइन पढ़ाई में

कोरोना काल में स्कूल-कॉलेज बंद रहने के बीच पूरी पढ़ाई इंटरनेट के भरोसे हो गयी।

Report :  Neel Mani Lal
Published By :  Raghvendra Prasad Mishra
Update: 2021-09-10 15:49 GMT

ऑनलाइन पढ़ाई की फाइल तस्वीर (फोटो साभार-सोशल मीडिया)

नई दिल्ली: कोरोना काल में स्कूल-कॉलेज बंद रहने के बीच पूरी पढ़ाई इंटरनेट के भरोसे हो गयी। लेकिन ग्रामीण इलाकों में ऑनलाइन पढ़ाई तक बच्चों की पहुंच बन ही नहीं सकी। एक नए सर्वे के अनुसार ग्रामीण इलाकों में सिर्फ आठ फीसदी बच्चे ऑनलाइन पढ़ सके हैं। शहरी इलाकों में यह संख्या सिर्फ 24 प्रतिशत पाई गई है। यानी शहरों में भी हर 100 में से 76 बच्चे नियमित रूप से ऑनलाइन पढ़ाई नहीं कर सके। ग्रामीण इलाकों में 37 प्रतिशत बच्चों की पढ़ाई तो ठप ही हो गई है। अब भले ही कई राज्यों में स्कूल खुल गए हैं। लेकिन जो नुकसान होना था वह हो चुका है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि ऑनलाइन पढ़ाई ने बच्चों को बहुत पीछे कर दिया है।

15 राज्यों में किया गया सर्वे

प्रख्यात अर्थशास्त्री ज्याँ द्रेज और रितिका खेड़ा के संचालन में ये सर्वे 15 राज्यों (असम, बिहार, चंडीगढ़, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल) और केंद्र शासित प्रदेशों में पहली से आठवीं कक्षा तक में पढ़ने वाले बच्चों और उनके अभिभावकों पर किया गया था। सर्वे में शामिल किये गए परिवारों में से करीब 60 प्रतिशत ग्रामीण इलाकों में रहते हैं जबकि लगभग 60 प्रतिशत परिवार दलित या आदिवासी समुदायों से संबंध रखते हैं।

स्मार्टफोन की कमी

ऑनलाइन शिक्षा का दायरा इतना सीमित होने की मुख्य वजह कई परिवारों में स्मार्टफोन का न होना है। ग्रामीण इलाकों में तो पाया गया कि करीब 50 प्रतिशत परिवारों में स्मार्टफोन नहीं थे। जहां स्मार्टफोन थे उन ग्रामीण इलाकों में भी सिर्फ 15 प्रतिशत बच्चे नियमित ऑनलाइन पढ़ाई कर पाए क्योंकि उन फोनों का इस्तेमाल घर के बड़े करते हैं। सर्वे में एक बात यह भी निकल कर आई है कि जो परिवार अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ा रहे थे, उनमें से एक चौथाई से भी ज्यादा परिवारों ने अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में डाल दिया। इसकी एक वजह पैसे की कमी बताई गयी है। शहरी इलाकों में जिन घरों में स्मार्टफोन थे वहां भी बच्चे उसका इस्तेमाल पढ़ाई के लिए नहीं कर पाए। शहरों में इसकी संख्या 31 प्रतिशत पाई गई।

पढ़ाई बाधित होने का असर बच्चों की लिखने और पढ़ने की क्षमता पर भी पड़ा है। शहरी इलाकों में 65 प्रतिशत और ग्रामीण इलाकों में 70 प्रतिशत अभिभावकों को लगता है कि इस अवधि में उनके बच्चों की लिखने और पढ़ने की क्षमता में गिरावट आई है।

दिक्कतों से ऐसे निपट रहा है पूर्वोत्तर

जहाँ तमाम राज्यों में बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई से वंचित हैं वहीं पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों ने इस दिशा में अभिनव प्रयोग किये हैं।

मिसाल के तौर पर सिक्किम में शिक्षक अपने घर पर बच्चों को पढ़ा रहे हैं या गांवों में जाकर एक साथ कई बच्चों को पढ़ा रहे हैं। त्रिपुरा ने 'नेबरहूड क्लास' यानी पड़ोस की कक्षा नामक एक योजना शुरू की थी जिसमें बच्चों को खुले में पढ़ाया जा रहा था। राज्य में करीब एक लाख बच्चे इन कक्षाओं में पढ़ रहे थे। नागालैंड में इंटरनेट की समस्या को ध्यान में रखते हुए शिक्षा विभाग ग्रामीण इलाकों के बच्चों में पेन ड्राइव बांट रहा है। पेन ड्राइव में पूरा पाठ्यक्रम, होम वर्क और दूसरी चीजों पहले से लोड हैं।

पूर्वोत्तर में इन्टरनेट

2018 के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, पूर्वोत्तर राज्यों में सिर्फ 35 प्रतिशत आबादी की ही इंटरनेट तक पहुंच है। करीब 8,600 गांवों तक अब तक इंटरनेट नहीं पहुंच सका है। असम में स्थिति कुछ बेहतर जरूर है। लेकिन बाकी राज्यों की स्थिति एक जैसी है। दूरसंचार विभाग के वर्ष 2019 के आंकड़ों के मुताबिक पूर्वोत्तर में इंटरनेट के करीब 61 लाख उपभोक्ता थे यानी प्रति सौ में से सिर्फ 2.75 लोगों तक ही इसकी पहुंच थी।

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