Corona Vaccine: पेटेंट मुक्त वैक्सीन की मुहिम को झटका, WTO में नहीं बनी सहमति
Patent Free Corona Vaccine: कोरोना वैक्सीनको पेटेंट की पाबंदियों से मुक्त करने पर विश्व व्यापार संगठन में कोई सहमित नहीं बन पाई है।
Patent Free Corona Vaccine: सबको कोरोना की वैक्सीन मिल सके इसके लिए प्रोडक्शन बढ़ाना बहुत जरूरी है। भारत, साउथ अफ्रीका समेत दर्जनों देश इस मुहिम में लगे थे कि कोरोना वैक्सीन (Corona Vaccine) को पेटेंट की पाबंदियों से मुक्त कर दिया जाना चाहिए ताकी सभी देश खुद वैक्सीन बना सकें। दुर्भाग्य से इस मुद्दे पर विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization) में कोई सहमित नहीं बन पाई है। इसका मतलब है कि विकासशील देशों की खुद ही वैक्सीन बनाने की कोशिश कामयाब नहीं हो पाएगी।
विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization) की 27 जुलाई को जेनेवा मुख्यालय (Geneva Headquarters) में हुई बैठक में भी कोरोना वैक्सीन के उत्पादन (Corona Vaccine Production) को पेटेंट मुक्त (Patent Free) करने की भारत और उसके सहयोगी देशों की कोशिशें नाकाम रहीं।
विश्व व्यापार संगठन के प्रवक्ता कीथ रॉकवेल (Keith Rockwell) ने पत्रकारों को बताया कि इस बेहद जज्बाती मुद्दे पर नौ महीने के विचार-विमर्श का कोई नतीजा नहीं निकला है। अब सदस्य देश सितंबर की शुरुआत में एक अनौपचारिक बैठक करेंगे जिसके बाद 13-14 अक्टूबर को औपचारिक बैठक होगी। कई घंटे तक चली बातचीत के बाद रॉकवेल ने कहा कि हम इस बातचीत को किसी सूरत में नहीं रोकने वाले हैं। यह बहुत जरूरी और बहुत जज्बाती मुद्दा है और इस पर बातचीत जारी रहेगी।
दवा कंपनियों और यूरोपीय देशों का विरोध
डब्ल्यूटीओ (WTO) के 164 सदस्य हैं और वहां सारे निर्णय सहमति से ही लिए जाते हैं। भारत और दक्षिण अफ्रीका ने पिछले साल अक्टूबर में डबल्यूटीओ के समक्ष यह प्रस्ताव रखा था कि कोरोना वैक्सीन के उत्पादन को बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) से मुक्त कर दिया जाए ताकि गरीब देश भी अपने यहां अपनी जरूरत की वैक्सीन का उत्पादन कर सकें।
इस प्रस्ताव के समर्थक देशों का कहना है कि पेटेंट मुक्त होने से विकासशील देशों में उत्पादन बढ़ेगा और ज्यादा से ज्यादा लोगों को जल्द से जल्द वैक्सीन लगाई जा सकेगी। कोरोना वायरस को रोकने के लिए ये बेहद जरूरी है। दुनिया की बड़ी दवा कंपनियां और उनके देश इस प्रस्ताव का तीखा विरोध कर रहे हैं। उनका तर्क है कि उत्पादन बढ़ाने में पेटेंट अधिकार कोई बाधा नहीं हैं।
इन कंपनियों का विचार है कि पेटेंट अधिकार से मुक्ति का नई खोजें करने की कोशिशों पर बुरा असर पड़ेगा। भारत और दक्षिण अफ्रीका के प्रस्ताव को अमेरिका और चीन समेत कई दर्जन देशों का समर्थन मिला है लेकिन यूरोपीय देश और जापान व कोरिया इस प्रस्ताव के तगड़े विरोधी हैं। रॉकवेल ने कहा कि देशों का एक समूह ऐसा भी है जो इस समस्या का व्यवहारिक हल चाहता है।
उत्पादन बढ़ाने पर सहमति
बताया गया है कि डब्लूटीओ के सदस्य देश तेजी से वैक्सीन उत्पादन बढ़ाने पर तो सहमत हुए हैं लेकिन यह लक्ष्य हासिल कैसे किया जाए, इसे लेकर कोई सहमति नहीं बन पाई है। सेनेगल, बांग्लादेश, भारत, दक्षिण अफ्रीका, थाईलैंड, मोरक्को और मिस्र में जरूरत से ज्यादा उत्पादन की क्षमता तो है लेकिन उन्हें वैक्सीन के उत्पादन के लिए जरूरी तकनीक और व्यवहारिक ज्ञान की जरूरत है जिसे मिलने में कई रुकावटें हैं।
जिन मुद्दों पर पेटेंट अधिकारों से मुक्ति का यह मामला अटका हुआ है, उनमें तकनीकी बातें ज्यादा हावी हैं। मसलन, पेटेंट से छूट कितने समय के लिए होगी और किन शर्तों पर होगी ये तय नहीं है। इसके अलावा बड़ा सवाल ये भी है कि पेटेंट अधिकारों की मुक्ति को लागू कैसे किया जाएगा और गोपनीय सूचनाओं को सुरक्षित कैसे रखा जाएगा। दवा कंपनियों को इन बातें पर गंभीर चिंता है।
बहरहाल, ये सभी मानते हैं कि ज्यादा से ज्यादा वैक्सीन बनाने और वैक्सीनेशन की जरूरत है लेकिन सप्लाई बढाने के लिए छूट देने पर बड़ी हिचकिचाहट है। इसकी एक वजह ये है कि कंपनियों द्वारा बहुत बड़ा निवेश वैक्सीन डेवलपमेंट में किया गया है और कोई अपने निवेश को यूं ही नहीं जाने देना चाहता है। कुल मिला कर बिजनेस का मसला स्वास्थ्य पर हावी है।
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