देश के मुस्लिम बहुल इलाकों में घट रही है प्रजनन की दर, तो कौन बढ़ा रहा है देश की जनसंख्या?

population control bill: तमाम छद्म धर्मनिरपेक्ष ताकतों का कहना है कि मुसलमानों की प्रजनन दर तो घट रही है फिर ऐसे में इस विधेयक को लाने का उद्देश्य सिर्फ हिन्दू मतों का पोलराइजेशन करना है। जबकि सचाई इसके विपरीत है।

Written By :  Ramkrishna Vajpei
Published By :  Monika
Update:2021-07-14 10:21 IST

बच्चों के साथ जाती महिला (फोटो : सोशल मीडिया )

population control bill: योगी आदित्यनाथ सरकार (Yogi government) के जनसंख्या नियंत्रण बिल (population control bill) पेश करने के बाद एक बार फिर यह चर्चा शुरू हो गई है कि चुनावी वर्ष में क्या यह बिल मुसलमानों की बढ़ती आबादी (increasing population of muslims) को निशाना बनाने के लिए लाया गया। तमाम छद्म धर्मनिरपेक्ष ताकतों का कहना है कि मुसलमानों की प्रजनन दर तो घट रही है फिर ऐसे में इस विधेयक को लाने का उद्देश्य सिर्फ हिन्दू मतों का पोलराइजेशन करना है। जबकि सचाई इसके विपरीत है।

अगर देखा जाए तो मुसलमान क्या हिन्दू क्या सभी की प्रजनन दर लगातार घट रही है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण का भी मुस्लिम मुल्ला मौलवियों के आबादी बढ़ाने के दावों के विपरीत यह मानना है मुसलमानों की नई पीढ़ी परिवार नियोजन के दिशा में काम कर रही हैं लेकिन मुस्लिम आबादी की वृद्धि के आंकड़े अब भी हिन्दुओं से ज्यादा हैं।

बात अगर योगी की करें तो वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) की नीतियों का अनुसरण कर रहे हैं। प्रधानमंत्री पहले ही कह चुके हैं कि जिन्होंने अपने परिवार को छोटा रखा है, वो सम्मान के हकदार हैं और उनकी ये कोशिश देशभक्ति है।

बढ़ती जनसंख्या (फोटो : सोशल मीडिया )

क्या कहता है WHO?

विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि 'टोटल फर्टिलिटी रेट' का आंकलन बताता है, भारत में सभी समुदायों में टीएफआर घटा है, हिन्दू मुसलमानों में भी ये अंतर समय के साथ घट रहा है।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की रिपोर्ट के मुताबिक भी मुस्लिम महिलाओं की प्रजनन दर (1992-93) 4.4 थी जो 1998-99 में गिरकर 3.6 रह गई। 2005-06 में घटकर 3.6 रह गई और अब 2015-16 में 2.6 है। इस बात को ऐसे समझा जा सकता है कि 1992-93 में हिन्दू और मुसलमानों में प्रजनन दर में 1.1 बच्चे का अंतर था। यानी एक मुसलमान महिला एक हिन्दू के मुकाबले 33 फीसदी ज्यादा बच्चे पैदा कर रही थी। लेकिन 2015-16 में ये अंतर घटकर .5 रह गया। यानी अब एक हिन्दू महिला के मुकाबले एक मुसलमान महिला 23.8 फीसदी ज्यादा बच्चे पैदा करती है।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के मुताबिक कई देशों में मां बनने की उम्र बढ़ाकर और दो बच्चों के बीच अंतर को बढ़ाकर प्रजनन दर को नीचे लाया गया है। भारत में भी ये प्रयोग सफल रहा है।

जहां 1992-93 में हिन्दुओं में मां बनने की औसत आयु 19.4 साल थी, तो मुसलमान लड़कियां 18.7 साल की उम्र में ही मां बन जाती थीं। 2015-16 में हिन्दुओं की औसत उम्र 21 तक पहुंच गई तो मुसलमान भी पीछे नहीं रहे उनकी लड़कियां भी अब औसतन 20.6 साल की उम्र में मां बन रही हैं।

मुस्लिम महिलाएं (फोटो : सोशल मीडिया )

मुसलमानों को ही निशाना क्यों

पिछले दिनों पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एसवाई कुरैशी की एक किताब आयी जिसने यह बहस छेड़ी कि आबादी को लेकर आखिर मुसलमानों को ही निशाना क्यों बनाया जाता है। परिवार नियोजन पर लिखी इस किताब में कुरैशी ने कहा है कि मुस्लिमों को एक खलनायक के रूप में पेश किया गया है। 'द पॉप्युलेशन मिथ: इस्लाम, फैमिली प्लानिंग एंड पॉलिटिक्स इन इंडिया' शीर्षक की पुस्तक में कहा गया कि "मुसलमानों ने जनसंख्या के मामले में हिंदुओं से आगे निकलने के लिए कोई संगठित षडयंत्र नहीं रचा है और उनकी संख्या देश में हिंदुओं की संख्या को कभी चुनौती नहीं दे सकती।"

सरकार के स्वास्थ्य डेटा के मुताबिक, 22 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 19 ऐसे हैं, जहां औसतन महिलाएं दो से कम बच्चे को जन्म दे रही हैं। भारत की गिरती प्रजनन दर की बात करें, तो साल 1992-93 में 3. 4 फीसदी से गिरकर वर्तमान में यह 2.2 फीसदी पर आ गई है।

लेकिन यह बात माननी पड़ेगी या सचाई यही है कि यूपी की प्रजनन दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2015-16 के अनुसार, यूपी में कुल प्रजनन दर (टीएफआर) 2.74 शिशु प्रति महिला थी, यह राष्ट्रीय दर 2.2 शिशु प्रति महिला से अधिक थी और बिहार की 3.41 टीएफआर के बाद दूसरे नंबर पर थी। यानी बिहार में हिन्दू मुसलमान दोनों समुदायों में प्रजनन दर सबसे अधिक रही।

महिलाओं की गोद में बच्चे (फोटो : सोशल मीडिया )

मुस्लिमों की आबादी हिंदुओं के मुकाबले तेजी से बढ़ रही

कुरैशी का कहना है कि अक्सर ये दावा किया जाता है कि मुस्लिमों की आबादी हिंदुओं के मुकाबले बहुत तेजी से बढ़ रही है। साल 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश की कुल जनसंख्या 19,98,12,341 थी, जिसमें 15,93,12,654 हिंदू और 3,84,83,967 मुस्लिम थे, जो कि कुल आबादी का 19.26% हैं। जबकि उससे दस साल पहले 2001 में हुई जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश में 80.61 फीसदी हिंदू थे और 18.50 फीसदी मुसलमान थे। यानी 2011 में हिंदुओं की आबादी घटकर 79.73% और मुस्लिमों की आबादी बढ़कर 19.26% हो गई। जनगणना विभाग का भी मानना है कि उत्तर प्रदेश के 70 में से 57 जिलों में हिंदुओं की आबादी मुस्लिमों के मुकाबले धीमी गति से बढ़ रही है। 2011 की जनगणना कहती है कि मुजफ्फरनगर में जहां हिंदू 3.20% घट गए तो मुस्लिम आबादी में 3.22% का इजाफा हो गया। कैराना, बिजनौर, रामपुर और मुरादाबाद उत्तर प्रदेश के ये वो जिले हैं, जहां पर ऐसा ही ट्रेंड देखने को मिला। यानी मुस्लिम आबादी बढ़ने की गति तेज है।

इस पर कथित धर्मनिरपेक्ष आंकड़ों से खेलते हुए दावा करते हैं कि साल 2005-06 के नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे- तीन में हिंदुओं की प्रजनन दर 2.59% थी, जो 2015-16 में 0.46% की गिरावट के साथ 2.13% हो गई। जबकि इस दौरान मुस्लिमों की प्रजनन दर में सबसे ज्यादा 0.79% की कमी देखी गई. वहीं ईसाइयों में साल 2005-06 से 2015-16 के बीच प्रजनन दर 0.35% गिर गई. सिखों की प्रजनन दर में गिरावट 0.37 फीसदी रही. तो इन आंकड़ों के मुताबिक देश में प्रजनन दर हर धर्म के लोगों के बीच घट रही है।

सवाल यही है कि प्रजनन दर हर धर्म के लोगों की घट रही है लेकिन इसमें भी किसकी प्रजनन दर अब भी सबसे ज्यादा है। देखने की बात यह है। और धर्म के नाम पर आबादी बढ़ाने का ये खेल देश के लिए तो खतरनाक है ही साथ ही संसाधनों के समान वितरण के लिए भी खतरनाक है। इसलिए जनसंख्या नियंत्रण के उपायों पर अमल का रास्ता सही है।

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