Punjab Assembly Election 2022: दोआबा में कड़ी टक्कर देगी बसपा, कांशीराम ने यहीं खड़ी की थी पार्टी

सत्तारूढ़ कांग्रेस, मुख्य विपक्षी दल आप और भाजपा के बीच दोआबा क्षेत्र में जबरदस्त प्रतिस्पर्धा होगी

Written By :  Neel Mani Lal
Published By :  Pallavi Srivastava
Update: 2021-06-15 09:25 GMT

Punjab News: पंजाब में 25 साल बाद इस बार कांग्रेस, भाजपा और आम आदमी पार्टी को दोआबा क्षेत्र में बहुत कड़े मुकाबले का सामना करना पड़ेगा। इसकी वजह है शिरोमणि अकाली दल और बसपा में हुआ चुनावी गठबंधन। पंजाब विधानसभा चुनाव के लिए अकाली दल और बसपा के समझौते के तहत बसपा 20 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारेगी। इन 20 सीटों में से 8 दोआबा क्षेत्र की हैं जहां बसपा निश्चित ही मजबूत समझी जा रही है। दोआबा में जालंधर, होशियारपुर, नवांशहर और कपूरथला जिले आते हैं और यहां कुल 23 विधानसभासीटें हैं।

ठोस वोट बैंक

दोआबा क्षेत्र बहुजन समाज पार्टी का पारंपरिक गढ़ रहा है क्योंकि यहां के मतदाता इस पार्टी के समर्पित वोट बैंक हैं। दोआबा की जनसंख्या में दलितों की हिस्सेदारी करीब 38 फीसदी है। बसपा के संस्थापक कांशीराम ने पार्टी के शुरुआती दिनों में इसी क्ष्रेत्र में काम किया था और पार्टी को पहचान दिलाई थी। दलित वोटों की बहुलता की वजह से हर चुनाव में सभी दल उनको अपनी ओर खींचने के जतन करते हैं। मानी हुई बात है कि जो यहां दलितों के वोट पायेगा, वही दोआबा को फतह कर पायेगा।

बसपा की प्लानिंग

अगले साल प्रस्तावित विधानसभाचुनाव में बसपा जालंधर और होशियारपुर जिलों में तीन-तीन सीट तथा नवांशहर और कपूरथला जिलों में एक-एक सीट पर प्रत्याशी उतरेगी। जालंधर जिले में बसपा के प्रत्याशी जालंधर उत्तरी, जालंधर पश्चिम और करतारपुर से खड़े होंगे। होशियारपुर जिले में होशियारपुर, टांडा और दसुया विधानसभा क्षेत्र, कपूरथला में फगवाड़ा तथा नवांशहर जिले में नवांशहर से पार्टी प्रत्याशी लड़ेंगे।

कांग्रेस को टक्कर

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि दोआबा की इन 8 सीटों पर कांग्रेस को कड़ी टक्कर का सामना करना पड़ेगा। 2019 में बसपा ने नवांशहर में 32480, करतारपुर में 31047 और फगवाड़ा में 29738 वोट हासिल करके अपनी शक्ति दिखा दी थी। इसके अलावा बसपा ने 5 अन्य सीटों पर करीब 57000 वोट पाए थे। 2019 के चुनाव में दोआबा के लगभग सभी विधानसभा क्षेत्रों में बसपा तीसरे स्थान पर रही थी। उस चुनाव में अकाली दल और भाजपा का गठबंधन था।

इस बार चूंकि समीकरण अलग हैं सो नतीजा भी अलग होगा। सत्तारूढ़ कांग्रेस को बसपा से अपनी जमीन बचाये रखने के लिए हिन्दू, वाल्मीकि और मजहबी सिख समुदाय के बीच रणनीति बदलनी होगी। इसकी वजह बसपा की रविदास समुदाय पर मजबूत पकड़ है। दोआबा के सभी दलित समुदायों में रविदास सबसे प्रभावशाली हैं। चूंकि इस वोट बैंक का खिसकना मुश्किलहै सो कांग्रेस को अन्य समुदाय रिझाने होंगे। भाजपा ने तो रविदास समुदाय के एक प्रमुख नेता विजय सांपला को अनुसूचित जाति राष्ट्रीय आयोग का अध्यक्ष बना कर अपनी रणनीति साफ कर दी है। चूंकि किसान समुदाय भाजपा के विरोध में खड़ा है सो ऐसे में पार्टी को भी अपनी रणनीति में बदलाव लाना होगा।

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