Reservation in Promotion : सुप्रीम कोर्ट का मानकों में हस्तक्षेप से इनकार, ...पहले आंकड़े जुटाना जरूरी, कोर्ट पैमाना तय नहीं करेगा

प्रमोशन में आरक्षण मामले पर आज, 28 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में सुनवाई हुई। सर्वोच्च न्यायालय ने सुनवाई के दौरान कहा, 'प्रमोशन में आरक्षण से पहले उच्च पदों पर प्रतिनिधित्व के आंकड़े जुटाना ज़रूरी है।

Newstrack :  Network
Published By :  aman
Update:2022-01-28 12:25 IST

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Reservation in Promotion : प्रमोशन में आरक्षण (Reservation in Promotion) मामले पर आज, 28 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में सुनवाई हुई। सर्वोच्च न्यायालय ने सुनवाई के दौरान कहा, 'प्रमोशन में आरक्षण से पहले उच्च पदों पर प्रतिनिधित्व (representation in high positions) के आंकड़े जुटाना ज़रूरी है। कोर्ट अपनी तरफ से इसके लिए कोई पैमाना तय नहीं करेगा। उच्च पदों में प्रतिनिधित्व का एक तय अवधि में मूल्यांकन होना चाहिए। यह समय अवधि क्या होगी, इसे केंद्र सरकार तय करे।'

सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए प्रमोशन में आरक्षण की शर्तों को कम करने से इनकार कर दिया है। शीर्ष अदालत ने कहा, कि राज्य सरकार अनुसूचित जाति व जनजाति के कर्मचारियों को पदोन्नति (Promotion) में आरक्षण (Reservation) देने से पहले मात्रात्मक डाटा एकत्र करने के लिए बाध्य है। प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता के आकलन के अलावा मात्रात्मक डेटा का संग्रह अनिवार्य है। साथ ही, उस डाटा का मूल्यांकन (Assessment) किया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा, कि केंद्र यह तय करे कि डेटा का मूल्यांकन एक तय अवधि में ही हो। यह समय अवधि क्या होगी यह केंद्र सरकार ही तय करे। 

पदोन्नति में आरक्षण की शर्तों को कम करने से इनकार

जानकार मानते हैं, कि कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि फिलहाल वर्ष 2006 के नागराज फैसले और 2018 के जरनैल सिंह फैसले में रखी गई शर्तों को सुप्रीम कोर्ट ने ढीला नहीं किया। केंद्र तथा राज्यों से जुड़े आरक्षण के मामलों में अधिक स्पष्टता के लिए 24 फरवरी 2022 से सुनवाई शुरू होगी। शीर्ष अदालत ने अनुसूचित जाति (scheduled caste) और अनुसूचित जनजाति (scheduled tribe) के लिए पदोन्नति में आरक्षण की शर्तों को कम करने से इनकार कर दिया। 

समीक्षा अवधि केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित हो 

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में आज कहा, कि 'केंद्र और राज्य इस बात का आंकलन करें, कि उनके पास कितने खाली पद हैं जिन पर अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों को आरक्षण दिया जा सकता है।' दरअसल, साल 2018 में जो फैसला आया था, उससे राज्यों को कुछ आवश्यक शर्तों को पूरा करने के बाद SC/ST को पदोन्नति में आरक्षण देने की अनुमति दी गई थी। लेकिन, उसके बाद भी राज्य फैसले में स्पष्टता के अभाव में आरक्षण लागू नहीं कर पा रहे। केंद्र ने कोर्ट से स्पष्टता और थोड़ी रियायत की गुजारिश की थी। 

'हम कोई मानदंड निर्धारित नहीं कर सकते'

आज मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस एल नागेश्वर राव (Justice L Nageswara Rao), जस्टिस संजीव खन्ना (Justice Sanjiv Khanna) और जस्टिस बीआर गवई (Justice BR Gavai) की बेंच ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा, कि 'हमने माना है कि हम प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता को निर्धारित करने के लिए कोई मानदंड निर्धारित नहीं कर सकते।' एक निश्चित अवधि के बाद प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता के आंकलन के अलावा मात्रात्मक डाटा (quantitative data) का संग्रह अनिवार्य है। यह समीक्षा अवधि केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित की जानी चाहिए। कोर्ट ने कहा, कि कैडर आधारित रिक्तियों के आधार पर आरक्षण पर डाटा एकत्र किया जाना चाहिए। राज्यों को आरक्षण प्रदान करने के उद्देश्य से समीक्षा होनी चाहिए और केंद्र सरकार समीक्षा की अवधि निर्धारित करेगी।

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