स्पूतनिक वैक्सीन बनाना आसान नहीं, सप्लाई में आ रही ये दिक्कत
एक खबर के अनुसार रूस में इस वैक्सीन का निर्माण बहुत कठिन है और फिलहाल प्रोडक्शन बढ़ने के कोई आसार नहीं हैं।
लखनऊ: रूस की स्पूतनिक वैक्सीन का ट्रायल रोलआउट भारत में शुरू हो गया। इसे डॉ रेड्डीज लैब भारत में बना रही हैं। स्पूतनिक वैक्सीन का रूस में क्या स्थिति ये जानना भी दिलचस्प है। रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन ने स्पूतनिक वैक्सीन के बारे में इस साल मार्च में कहा था कि रूस ने इसकी 70 करोड़ खुराकों के उत्पादन के लिए अन्य देशों में करार किये हैं। लेकिन रूस बीते 12 मई तक मात्र 3 करोड़ 30 लाख वैक्सीनें ही बना पाया है और सिर्फ डेढ़ करोड़ वैक्सीनें एक्सपोर्ट की जा सकी हैं। फाइजर और आस्ट्रा जेनका की तुलना में ये बेहद कम है।
रायटर की एक खबर के अनुसार रूस में इस वैक्सीन का निर्माण बहुत कठिन है और फिलहाल प्रोडक्शन बढ़ने के कोई आसार नहीं हैं। स्पूतनिक 5 के साथ जुड़ी समस्याएं भारत समेत अन्य विदेशी पार्टनर्स के लिए चेतावनी हैं। क्योंकि ये पार्टनर देश वैक्सीन के बड़ी मात्रा में उत्पादन की योजना बनाये हुए हैं। इसके अलावा जो देश रूसी वैक्सीन के सहारे अपना वैक्सीनेशन प्रोग्राम बनाये हुए हैं उनके लिए भी संकट की बात है। रूस ने 50 से ज्यादा देशों को स्पूतनिक देने की पेशकश की थी लेकिन सप्लाई ही नहीं कर पाया।
स्पूतनिक वैक्सीन की मार्केटिंग की जिम्मेदारी रशियन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट फण्ड (आरडीआईएफ) की है। उसका कहना है कि स्पूतनिक वैक्सीन की उत्पादन क्षमता बढ़ रही है और नए निर्माता उसके साथ जुड़ रहे हैं। आरडीआईएफ का कहना है कि उसकी योजना इतनी वैक्सीन बनाने की है ताकि इस साल 80 करोड़ लोगों के वैक्सीन लग सके। उसने कहा कि वह यूरोपियन यूनियन को 5 करोड़ खुराकें देने के प्रस्ताव पर अडिग है। रूस को उम्मीद है कि स्पूतनिक को यूरोपियन मेडिसिन एजेंसी से स्वीकृति मिल जाएगी।
रूस में स्पूतनिक वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों में मास्को स्थित आर फार्म नामक बायोटेक कम्पनी शामिल है। इस कम्पनी की फैक्टरी में 200 से ज्यादा बायो रिएक्टर हैं जिनमें वैक्सीन में काम आने वाले सेल्स 'उगाए' जाते हैं।
इस कम्पनी के सीईओ अलेक्सेई रेपिक ने रायटर को बताया कि बायोरिएक्टर को ऑपरेट करना टेढ़ी खीर है। इसमें आउटपुट सही होगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है। वैक्सीन की हर सीरीज के प्रोडक्शन में एक से डेढ़ महीने का समय लगता है। इसके बाद रिफरेन्स सैंपल से आउटपुट का मिलान किया जाता है कि वैक्सीन सही बनी है कि नहीं। अगर किस्मत सही रही तो सैंपल और निर्मित बैच का मिलान हो जाएगा। नहीं तो पूरे प्रोडक्ट को फेंकना पड़ता है।
आर-फार्म की शुरुआती तैयारी महीने में एक करोड़ डोज़ बनाने की थी लेकिन उपकरण और कच्चे माल की कमी के चलते वह अब तक दस लाख डोज़ भी नहीं बना पाया है। कंपनी ने सेल उगाने के प्रोसेस नवम्बर में शुरू कर दिए थे।
मुश्किल है निर्माण
वैक्सीन निर्माताओं का कहना है कि स्पूतनिक वैक्सीन एडीनोवायरस के इस्तेमाल से बनती है और इसका निर्माण बहुत मुश्किल है। वैक्सीन में इस्तेमाल किया गया वायरस इंसानों में सामान्य सर्दी जुखाम उत्पन्न करने वाला वायरस है। ये शरीर में जेनेटिक जानकारी ले जाता है जिससे इम्यूनिटी बनाने का काम शुरू हो जाता है।
अन्य वैक्सीनों की तुलना में अलग
एडीनोवायरस वाली अन्य वैक्सीनों की तुलना में स्पूतनिक अलग तरह की है। इसकी पहली और दूसरी खुराक में अलग अलग वायरस का प्रयोग किया जाता है। निर्माताओं के अनुसार दूसरी डोज़ ज्यादा मुश्किल काम है। इस समस्या से निपटने के लिए रूस ने आस्ट्रा जेनका का सहयोग लिया है। चूंकि आस्ट्रा जेनका की वैक्सीन में अलग तरह का एडीनोवायरस प्रयोग किया जाता है इसलिए दोनों वैक्सीनों की एक एक डोज़ देने के ह्यूमन ट्रायल कई देशों में किये जा रहे हैं।