SC की टिप्पणी के बीच हरियाणा में 100 किसानों पर देशद्रोह

सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार से पूछ रही है कि आज़ादी के 75 साल बाद राजद्रोह के क़ानून की जरूरत क्या है...

Written By :  Ramkrishna Vajpei
Published By :  Ragini Sinha
Update:2021-07-15 23:26 IST

SC की टिप्पणी के बीच हरियाणा में 100 किसानों पर देशद्रोह (सोशल मीडिया)


देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार से पूछ रही है कि आज़ादी के 75 साल बाद राजद्रोह के क़ानून की जरूरत क्या है, यह औपनिवेशिक कानून है जिसका इस्तेमाल स्वतंत्रता सेनानियों के खि़लाफ़ किया गया था। अदालत ने यह भी कहा कि हालात गंभीर हैं। अगर एक पक्ष को पसंद नहीं है कि दूसरा क्या कह रहा है, तो धारा 124-ए का इस्तेमाल कर दिया जाता है, यह व्यक्तियों और पार्टियों के कामकाज के लिए एक गंभीर ख़तरा है। अदालत ने कानूनों के दुरुपयोग को लेकर चिंता तो जताई ही साथ ही धारा 66-ए का उदाहरण देते हुए कहा कि रद किए जाने के बाद भी इसके अंतर्गत मामले दर्ज किए जा रहे थे।

100 किसानों के खिलाफ सिरसा पुलिस राजद्रोह का केस दर्ज

सवाल यही है कि एक तरफ अदालत सरकार से सवाल पूछ रही है दूसरी तरफ हरियाणा में विधानसभा के डिप्टी स्पीकर रणबीर गंगवा की कार पर हमले के आरोप में 100 किसानों के खिलाफ सिरसा पुलिस राजद्रोह का केस दर्ज कर देती है। गौरतलब है कि डिप्टी स्पीकर रणबीर गंगवा की कार पर कथित रूप से प्रदर्शनकारी किसानों ने रविवार को हमला कर दिया था और उसी दिन उन पर राजद्रोह की प्राथमिकी भी दर्ज की गई थी। दर्ज शिकायत में राजद्रोह के अलावा कई और आरोप शामिल हैं, जिनमें हत्या का प्रयास और लोक सेवक को सार्वजनिक कार्यों के निर्वहन में बाधा डालना आदि भी शामिल है।

'पथराव किया था उन्हें किसान नहीं कहा जा सकता'

इस मामले में धारा 124 (ए) (राजद्रोह) को एफआईआर में तब जोड़ा गया है जबकि डिप्टी स्पीकर गंगवा ने मंगलवार को खुद संवाददाताओं से कहा कि रविवार को जिन्होंने उनके वाहन पर पथराव किया था उन्हें किसान नहीं कहा जा सकता। उन्होंने कहा कि उन्हें किसान नहीं कहा जाना चाहिए। मैं कह सकता हूं कि जिन्होंने हमला किया था वे नशेड़ी लग रहे थे।

'हमारी चिंता क़ानून के दुरुपयोग और जवाबदेही की कमी को लेकर है'

ऐसे में उच्चतम न्यायालय का यह कहना सही है कि इन प्रावधानों का दुरुपयोग किया गया है, लेकिन कोई जवाबदेही नहीं है। हमारी चिंता क़ानून के दुरुपयोग और जवाबदेही की कमी को लेकर है। यह हमारी आज़ादी के 75 साल बाद भी क़ानून की किताब में क्यों है।ससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट अपने आदेश में कह चुका है कि उसके विचार में भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 124 ए, 153 ए और 505 के प्रावधानों के दायरे और मापदंडों की व्याख्या की आवश्यकता है। ख़ासकर इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के समाचार और सूचना पहुँचाने के सन्दर्भ में। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस व्याख्या का हिस्सा वे समाचार या सूचनायें भी होंगी जिनमे देश के किसी भी हिस्से में प्रचलित शासन की आलोचना की गई हो।


इतिहास बताता है कि 2019 में देश में राजद्रोह के 93 मामले दर्ज हुए और 96 लोगों को गिरफ़्तार किया गया। इन सभी आरोपियों में से केवल दो को अदालत ने दोषी ठहराया। इसी तरह 2018 में जिन 56 लोगों को राजद्रोह के आरोप में गिरफ़्तार किया गया उनमे से 46 के ख़िलाफ़ चार्जशीट दायर हुई और केवल 2 लोगों को ही अदालत ने दोषी माना। 2017 में जिन 228 लोगों को राजद्रोह के आरोप में गिरफ़्तार किया गया उनमें से 160 के ख़िलाफ़ चार्जशीट दायर हुई और उनमे से भी मात्र 4 लोगों को ही अदालत ने दोषी माना। 2016 में 48 लोगों को राजद्रोह के आरोप में गिरफ़्तार किया गया और उनमें से 26 के ख़िलाफ़ चार्जशीट दायर हुई और केवल 1 आरोपी को ही अदालत ने दोषी माना। यानी राजद्रोह के मामलों के दर्ज होने की रफ्तार के मुकाबले दोषसिद्ध होने की रफ्तार बहुत कम है। 

73 गिरफ़्तारियां हुईं और 13 के ख़िलाफ़ चार्जशीट दायर हुई 

वहीं, 2015 में इस क़ानून के तहत 73 गिरफ़्तारियां हुईं और 13 के ख़िलाफ़ चार्जशीट दायर हुई लेकिन इनमें से एक को भी अदालत में दोषी नहीं साबित किया जा सका। इसी तरह 2014 में 58 लोगों को राजद्रोह के आरोप में गिरफ़्तार किया गया लेकिन सिर्फ़ 16 के ख़िलाफ़ ही चार्जशीट दायर हुई और उनमें से भी केवल 1 को ही अदालत ने दोषी माना.

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