SC का बड़ा फैसला: पिता की संपत्ति में बेटियों के हक का बढ़ा दायरा, इन मामलों में भी हकदार होंगी बेटियां

सर्वोच्च न्यायालय ने बेटियों के अधिकार का दायरा और बढ़ा दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए यह फैसला सुनाया।

Written By :  Anshuman Tiwari
Published By :  Vidushi Mishra
Update:2022-01-21 11:26 IST

बेटियों का अधिकार (फोटो-सोशल मीडिया)

 

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने पिता की संपत्ति पर बेटियों के अधिकार के संबंध में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। इस महत्वपूर्ण फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने बेटियों के अधिकार का दायरा और बढ़ा दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए यह फैसला सुनाया।

जस्टिस अब्दुल नजीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी की बेंच ने तमिलनाडु से जुड़े एक मामले का निस्तारण करते हुए अपने फैसले में कहा कि संपत्ति से जुड़े उत्तराधिकार के 1956 से पहले के मामलों में भी बेटियों को बेटों के बराबर ही अधिकार हासिल होगा और बेटियों को उनके अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।

समान रूप से बटेगी संपत्ति

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि अगर किसी जमीन-जायदाद के मालिक का निधन वसीयत लिखने से पहले ही हो गया हो तो उसकी खुद से अर्जित की गई संपत्ति उत्तराधिकार के सिद्धांत के तहत उसकी सभी संतानों को मिलेगी। उसकी संपत्ति बेटे और बेटियों में समान रूप से विभाजित की जाएगी।

बेटियों को इस मामले में उनके अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। ऐसी संपत्ति को मृतक के भाइयों या अन्य सगे संबंधियों को हस्तांतरित नहीं किया जा सकता। यदि मृतक अपने जीवनकाल में संयुक्त परिवार का सदस्य रहा हो तो भी ऐसा नहीं किया जा सकता।

फैसले में प्राचीन ग्रंथों का किया उल्लेख

सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला मरप्पा गोंदर की जायदाद से जुड़े मामले का निस्तारण करते हुए सुनाया। मरप्पा का निधन 1949 में हो गया था और उन्होंने अपनी जायदाद के संबंध में कोई वसीयत भी नहीं लिखी थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में उनकी बेटी कुपाई अम्मल को संपत्ति सौंपने का निर्देश दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में दिए गए मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को भी पलट दिया।

जस्टिस कृष्ण मुरारी ने यह महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए भारत के प्राचीन ग्रंथों में की गई टिप्पणियों का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि हमारी स्मृतियों, टीकाओं और अन्य प्राचीन ग्रंथों में महिलाओं को बराबर का उत्तराधिकारी मानने का उल्लेख मिलता है।

तमाम ऐसे उदाहरण मिलते हैं जिनमें पत्नियों और बेटियों को उत्तराधिकार दिया गया। सुप्रीम कोर्ट और अन्य अदालतों के फैसलों में भी कई बार बेटियों को बराबर का हकदार माना गया है। उन्होंने संत ज्ञानेश्वर द्वारा लिखी गई मिताक्षरा टीका का विशेष रूप से उल्लेख किया। इसके साथ ही उन्होंने याज्ञवल्क्य स्मृति पर लिखी गई टीका का भी उल्लेख किया।

बेटियों के हक में महत्वपूर्ण फैसला

देश में 1956 में हिंदू उत्तराधिकार कानून लागू किया गया था जिसके तहत व्यवस्था की गई थी कि पिता की खुद से अर्जित की गई संपत्ति में बेटे और बेटियों को समान अधिकार हासिल होगा। 2005 में इस कानून में संशोधन किया गया था और यह प्रावधान किया गया था कि संयुक्त परिवार में रह रहे पिता की संपत्ति में भी बेटे और बेटियों को समान रूप से अधिकार हासिल होगा।

2020 में सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में 1956 में हिंदू उत्तराधिकार कानून के लागू होने के बाद से ही बेटियों को बाप और दादा की संपत्ति में बराबर का हकदार माना गया था। अब सुप्रीम कोर्ट का यह महत्वपूर्ण फैसला आया है जिसमें 1956 से पहले भी पिता की स्व अर्जित संपत्ति में बेटियों को बराबर का हकदार माना गया है।

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