वीर सावरकरः इकलौते क्रांतिकारी जिन्हें दो कालापानी व दो आजन्म कारावास की सजा हुई

स्वतंत्रता सेनानी विनायक दामोदर सावरकर ( Savarkar) की आज जयंती है। सावरकर का जन्म महाराष्ट्र में नासिक के निकट भागुर गांव में 28 मई 1883 को हुआ था।

Written By :  Ramkrishna Vajpei
Published By :  Shweta
Update: 2021-05-28 05:28 GMT

वीर सावरकर (फोटोःसोशल मीडिया)

Veer Savarkar: स्वतंत्रता सेनानी विनायक दामोदर सावरकर ( Savarkar)  की आज जयंती है। सावरकर का जन्म महाराष्ट्र में नासिक के निकट भागुर गांव में 28 मई 1883 को हुआ था। देश उन्हें वीर सावरकर (Veer Savarkar) के नाम से संबोधित करता है। सावरकर भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन की अग्रिम पंक्ति के सेनानी थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  (Narendra Modi) व केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) सहित तमाम नेताओं ने सावरकर की जयंती पर उन्हें नमन किया है।

देश के आजाद होने पर सावरकर ने कहा था मुझे स्वराज्य प्राप्ति की खुशी है, परन्तु वह खण्डित है, इसका दु:ख है। उन्होंने यह भी कहा कि राज्य की सीमायें नदी तथा पहाड़ों या संधि-पत्रों से निर्धारित नहीं होतीं, वे देश के नवयुवकों के शौर्य, धैर्य, त्याग एवं पराक्रम से निर्धारित होती हैं। उन्होंने देश के आजाद होने पर दो ध्वजा रोहण किये थे पहला तिरंगा और दूसरा भगवा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया है, आजादी की लड़ाई के महान सेनानी और प्रखर राष्ट्रभक्त वीर सावरकर को उनकी जयंती पर कोटि-कोटि नमन।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आज ट्वीटर कर कहा है कि कालापानी की सजा में अंग्रेजों की असंख्य क्रूर यातनाएं भी वीर सावरकर जी के भारत की स्वाधीनता के संकल्प को डिगा नहीं पाई। मातृभूमि के लिए उनकी जीवन तपस्या, त्याग व समर्पण देश की आने वाली पीढ़ियों के लिए एक धरोहर है। आजादी के ऐसे महानायक 'वीर सावरकर' की जयंती पर उनके चरणों में नमन।

एक दूसरे ट्वीट में अमित शाह ने कहा स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख स्तंभ स्वातंत्र्य वीर सावरकर भारत की अखंडता व संस्कृति के प्रखर समर्थक और जातिवाद के धुर विरोधी थे। सावरकर जी ने अपने अविरल संघर्ष, ओजस्वी वाणी और कालजयी विचारों से जन-जन को स्वाधीनता आंदोलन से जुड़ने के लिए प्रेरित किया। उनका संकल्प व साहस अद्भुत था।

विनायक सावरकर का जन्म महाराष्ट्र (उस समय, 'बॉम्बे प्रेसिडेन्सी') में नासिक के निकट भागुर गाँव में हुआ था। उनकी माता जी का नाम राधाबाई तथा पिता जी का नाम दामोदर पन्त सावरकर था। इनके दो भाई गणेश (बाबाराव) व नारायण दामोदर सावरकर तथा एक बहन नैनाबाई थीं। जब वे केवल नौ वर्ष के थे तभी हैजे की महामारी में उनकी माता जी का देहान्त हो गया। इसके सात वर्ष बाद सन् 1899 में प्लेग की महामारी में उनके पिता जी भी स्वर्ग सिधारे।

विनायक के बड़े भाई गणेश ने परिवार के पालन-पोषण का कार्य सँभाला। दुःख और कठिनाई की इस घड़ी में गणेश के व्यक्तित्व का विनायक पर गहरा प्रभाव पड़ा। विनायक ने शिवाजी हाईस्कूल नासिक से 1901 में मैट्रिक की परीक्षा पास की। बचपन से ही वह पढ़ने में तेज थे। उन दिनों उन्होंने कुछ कविताएँ भी लिखी थीं।

आर्थिक संकट के बावजूद बाबाराव ने विनायक की उच्च शिक्षा की इच्छा का समर्थन किया। इस अवधि में विनायक ने स्थानीय नवयुवकों को संगठित करके मित्र मेलों का आयोजन किया। शीघ्र ही इन नवयुवकों में राष्ट्रीयता की भावना के साथ क्रान्ति की ज्वाला जाग उठी।

सन् 1901 में रामचन्द्र त्रयम्बक चिपलूणकर की पुत्री यमुनाबाई के साथ उनका विवाह हुआ। उनके ससुर जी ने उनकी विश्वविद्यालय की शिक्षा का भार उठाया। 1902 में मैट्रिक की पढाई पूरी करके उन्होने पुणे के फर्ग्युसन कालेज से बी॰ए॰ किया। इनके पुत्र विश्वास सावरकर एवं पुत्री प्रभात चिपलूनकर थी।

सावरकर देश के इकलौते ऐसे क्रांतिकारी रहे जिन्हें दो कालापानी की सजा सुनाई गई। यह सजा अंग्रेज अधिकारी जैक्सन की हत्या और अंग्रेजी शासन के खिलाफ विद्रोह के आरोप में सुनाई गई थी। यानी उन्हें कुल 50 साल अंडमान की जेल में रहना था।

इसी तरह सावरकर को दो आजन्म कारावास की सजा हुई। 24 दिसम्बर 1910 को उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गयी। इसके बाद 31 जनवरी 1911 को इन्हें दोबारा आजीवन कारावास दिया गया। इस प्रकार सावरकर को ब्रिटिश सरकार ने क्रान्ति कार्यों के लिए दो-दो आजन्म कारावास व कालापानी की सजा दी, जो विश्व के इतिहास में अनोखी घटना रही।

5 फरवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या के उपरान्त उन्हें प्रिवेन्टिव डिटेन्शन एक्ट धारा के अन्तर्गत गिरफ्तार किया गया लेकिन उन पर कोई आरोप साबित नहीं हुई। 8 नवम्बर 1963 को इनकी पत्नी यमुनाबाई चल बसीं। सितम्बर, 1965 से उन्हें तेज ज्वर ने आ घेरा, जिसके बाद इनका स्वास्थ्य गिरने लगा। 1 फरवरी 1966 को उन्होंने मृत्युपर्यन्त उपवास करने का निर्णय लिया। 26 फरवरी 1966 को बम्बई में भारतीय समयानुसार प्रातः 10 बजे उन्होंने पार्थिव शरीर छोड़कर परमधाम को प्रस्थान किया।

सावरकर क्रान्तिकारी, चिन्तक, लेखक, कवि, ओजस्वी वक्ता और दूरदर्शी राजनेता थे। अंग्रेज उन पर रखते थे नजर रखते थे। बेहद कम लोग जानते हैं कि अंग्रेज सरकार ने उन्हें मिली स्नामतक की डिग्री को इसलिए वापस ले लिया था क्यों कि उन्होंने  स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया था।

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