Vijayadashami 2021: नेपाल में धूमधाम से मनाया जाता है 'दशाइन', जानें गोरखा के लिए क्यों है यह अहम

Vijayadashami 2021: नेपाल में दशहरा भी दशईं के रूप में मनाया जाता है। ये हिंदू लूनी-सौर कैलेंडर के आश्विन महीने के दसवें दिन मनाया जाता है।

Report :  aman
Published By :  Monika
Update:2021-10-15 11:51 IST

विजयादशमी (फोटो : सोशल मीडिया )

Vijayadashami 2021: हिन्दू धर्म को मानने वाले दुनिया में जहां भी हैं, वहां विजयादशमी का त्योहार (Vijayadashami 2021) धूमधाम से मनाया जाता है। चूंकि नेपाल भी हिन्दू राष्ट्र (Nepal Hindu Rashtra) है , तो यह त्योहार वहां भी हर्षोल्लास से मनाया जाता है। नेपाल में दशहरा (Nepal Me Dussehra) की आहट से ही हर घर में चहल-पहल शुरू हो जाती है। नेपाली दशमी (Nepali Dashmi)  के आगमन का आभास नागपंचमी (Nagpanchami) से ही हो जाता है। वहां दशमी ऐसे ही नहीं आती। मान्यता है कि नागपंचमी से लेकर और भी कई त्योहार उसे पास खींच लाते हैं।

नेपाल में दशहरा भी दशईं (Dashain) के रूप में मनाया जाता है। ये हिंदू लूनी-सौर कैलेंडर के आश्विन महीने के दसवें दिन मनाया जाता है। यह आमतौर पर ग्रेगोरियन कैलेंडर के सितंबर और अक्टूबर महीनों में पड़ता है। इस बार यह भारत की ही तरह 15 अक्टूबर को मनाया जा रहा है।

गोरखा समाज हर्षोल्लास से मनाते हैं 

विजयादशमी का पर्व संसार के विभिन्न देशों में अलग-अलग जातियों और समुदायों द्वारा अपने-अपने तरीके से मनाया जाता है। इस दिन को अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक माना जाता है, जिसका आरंभ माता दुर्गा द्वारा महिषासुर के संहार से हुआ था। हालांकि प्रभु श्रीराम की रावण पर विजय को दशहरे का रूप दिया गया है। नेपाल में इस पर्व को मुख्यत: क्षत्रिय पर्व ही माना जाता है। इसी कारण गोरखा (Gorkha Samaj) या नेपाली समाज (Nepali Samaj) इसे हर्षोल्लास से मनाया जाता है।

विजयादशमी का त्योहार (फोटो सोशल मीडिया ) 

मां काली और मां दुर्गा की पूजा (Maa Kali Maa Durga Puja)

विजयादशमी नेपाल में बहुत बड़े स्तर पर मनाया जाता है। यहां यह वर्ष का सबसे बड़ा त्योहार होता है। दशमी के स्वागत की तैयारी बहुत धूमधाम से होती है। नेपाल की गोरखा सेनाएं इस पर्व को बहुत ही अद्भुत ढंग से मनाती हैं। नवरात्रि के नौ दिनों तक मां काली तथा मां दुर्गा की पूजा की जाती है। विजयादशमी वाले दिन राज दरबार में राजा प्रजा को अबीर, चावल, दही का टीका लगाते हैं।

त्योहारों का राजा विजयादशमी (Vijayadashami 2021)

हिन्दू राष्ट्र होने के नाते होली का भी नेपाली जनजीवन में बहुत महत्व है। लेकिन विजयादशमी को त्योहारों का राजा (Vijayadashami tyoharo ka Raja) कहा जाता है। अन्य त्योहारों को इसका दरबारी कहा जाता है। साल भर अन्य त्योहार सामान्य तरीके से मनाए जाते हैं। उन अवसरों पर कोई विशेष तैयारी नहीं होती। लेकिन दशमी को बुलाया जाता है। इसके स्वागत की तैयारी धूमधाम से होती है। गरीब सीमित ढंग से और अमीर व्यापक तरीके से इसे मनाते हैं। इसे सबका त्योहार कहा जाता है। इस अवसर पर मदिरा का भोग लगाना जरूरी होता है। साथ ही, इस दिन बलि भी दी जाती है। घर में आने वालों को 'भुट्नबजी' (भुना हुआ गोश्त, चिवड़ा) के साथ चावल का 'ऐला' (ठर्रा) पेश करने की परंपरा है।

विजयादशमी का त्योहार (फोटो : सोशल मीडिया ) 

महिषासुर के प्रतीक एक हट्टे-कट्टे भैंसे की बलि

नेपाल या गोरखा सेनाएं अद्भुत ढंग से दशहरा मनाती हैं। वहां मां काली तथा माता दुर्गा की पूजा नौ दिनों तक की जाती है। नवरात्रि के प्रथम दिन विशाल मैदान में विशेष रूप से निर्मित पूजा-गृह में जौ की बिजाई के पश्चात मां दुर्गा की मूर्ति के सामने पांच फलों, जिनमें पेठा विशेष होता है, की बलि दी जाती है। इसके आठवें दिन कालरात्रि का आयोजन होता है। मध्य रात्रि में बारह बजे बैंड, शंख, नगाड़े आदि कालरात्रि के आगमन की सूचना देते हैं, जो पशु-बलि के लिए निर्धारित समय के द्योतक हैं। कालरात्रि को पांच फलों की बलि के पश्चात पशु बलि दी जाती है। शांति के संदेश के लिए कबूतरों को आकाश में भी छोड़ा जाता है। महिषासुर के प्रतीक एक हट्टे-कट्टे भैंसे की बलि के साथ यह समारोह चरम तक पहुंचता है। इस प्रकार विजयादशमी शस्त्र पूजा या महा बलिदान के रूप में मनाई जाती है।

एकरूपता पर्व

नेपाल में ही नहीं, नेपाली या गोरखे दुनिया में जहां भी हों, दशहरा समान रूप से मनाते हैं। नेपाल में राजकीय समारोहों के कारण ख़ासकर काठमांडू में इसका रूप भव्य हो जाता है। जनता में लोकप्रिय होने के लिए शाह वंश के राजाओं ने काठमांडु की कई धार्मिक परंपराओं को अपना लिया है। ये परंपरा जनजीवन, देश की सांस्कृतिक धरोहर का मुख्य अंग बन गई हैं। जैसे कुमारी जात्रा, खडग पूजन, कोतबलि, टीका आदि। वहां पर किसी धार्मिक समारोह में वह राजा नहीं रह जाता। रहेगा भी तो कुछ दिन, कुछ मास या कुछ साल। स्थायी नहीं रह सकता। कुमारी देवी का टीका राजगद्दी का नवीनीकरण है। हर वर्ष करना ही होगा।

नेपाल में विजयादशमी के आगमन पर एक पारंपरिक गीत (traditional song ) सुनाई पड़ने लगता है।

'दशैं आयो, खाऊंला-पिऊंला।

कहां वाट ल्याऊंला? चोरेर ल्याऊंला।

धत पाजी, पर जा!'

इसका मतलब है दशमी आ गई। खाऊंगा-पिऊंगा पर कहां से लाऊंगा? कहीं से चोरी कर ले आऊंगा। धत पाजी, तू दूर जा यानी चोरी करना पाप है। अंतिम पंक्ति नेपाली लोगों की ईमानदारी को बताता है। यह पंक्ति किसी भूखे को चोरी करने से रोकती है।

बच्चों का गीत

नेपाल में दशमी आने के पहले माताएं-दादियां बच्चों को गोद में बैठाकर उनकी छोटी-छोटी उंगलियों को अपने हाथों में लेती हैं, फिर एक-एक उंगली पकड़कर यह गीत सिखाती हैं। पहले कानी उंगली मतलब सबसे छोटी उंगली पकड़कर कहती हैं- दशैं आयो। फिर उसके बाद वाली (अनामिका) उंगली पर खाउँला-पिऊंला, मध्यमा अंगुली पर कहां बाट ल्याऊंला? उसके बाद तर्जनी उंगली कहेगी- चोरेर ल्याऊँला। इस पर अंगूठा दूर हटता हुआ कहेगा - धत पाजी, पर जा।

मुख्य बातें:

-नेपाल में भी दशहरा का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है, इसे वहां दशाइन के नाम से जानते हैं।

-दस दिनों तक चलने वाले इस उत्सव में नेपाली लोग भैरव देवता की पूजा करते हैं।

-नेपाली दशहरे की ख़ास बात होती है कि वहां इस मौके पर पशुओं की बलि चढ़ाई जाती है। इसके चलते बकरे, भैंसे, बत्तखों की खूब बिक्री होती है।

-नेपाल में इस मौके पर स्थानीय नेवार समुदाय के लोग नृत्य करके जश्न मनाते हैं।

-अलग-अलग देवी देवताओं के मास्क पहनकर सामुदायिक तौर पर उत्सव में शरीक होते हैं।

-ऐसे नृत्यों को देखना बेहद दिलचस्प होता है।

-इस मौके पर शक्ति की देवी काली की भी पूजा होती है।

-इस उत्सव के दौरान कलाकार कई तरह के मास्क बना कर उसे बेचते हैं।

-परंपरागत तौर पर ऐसे मास्क नेपाली लोगों में खूब लोकप्रिय हैं।

-नेपाल के दशहरे में धार्मिक गुरु या पुजारी भी विभिन्न तरह से पूजा-अर्चना में शामिल होते हैं। यहां भी इस पर्व को बुराई पर अच्छाई के विजय के रूप में देखा जाता है।

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