चुनाव आयोग ने SC से कहा- पार्टियों की नीतियों को हम नहीं कर सकते नियंत्रित

मुफ्तखोरी पर सवाल: आयोग ने बताया कि मुफ्त सेवा के वादे की घोषणा करने वाले सियासी दलों पर कार्रवाई करने का अधिकार हमारे पास नहीं है।

Published By :  Shashi kant gautam
Update: 2022-04-09 10:32 GMT

चुनाव आयोग- सुप्रीम कोर्ट- Photo - Social Media

New Delhi: चुनाव के दौरान सियासी दलों द्वारा जनता से किए जाने वाले लुभावने वादों पर सवाल उठते रहे हैं। विशेषकर मुफ्त की चीजें बांटने को लेकर आर्थिक विशेषज्ञों द्वारा कई बार चेताया जा चुका है। सिविल सोसाइटी (civil society) में इस मुद्दे पर जारी बहस के बीच बीच अब ये मुद्दा सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) पहुंच चुका है। जहां पर शनिवार को हुई सुनवाई में चुनाव आयोग (election Commission) ने अपनी बात रखी है। आयोग ने बताया कि मुफ्त सेवा के वादे की घोषणा करने वाले सियासी दलों पर कार्रवाई करने का अधिकार हमारे पास नहीं है। इस मामले में अदालत दिशा–निर्देश तैयार कर सकता है।

SC के नोटिस पर ईसी का जवाब

सुप्रीम कोर्ट में मुफ्त सेवाओं का वादा (promise of free services) करने का ऐलान करने वाले सियासी दलों की मान्यता रद्द करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए 25 जनवरी 2022 को चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया था। जिसका शनिवार को जवाब देते हुए चुनाव आयोग ने कहा कि किसी सरकार की क्या नीति होगी, इसे चुनाव आय़ोग कंट्रोल नहीं कर सकता। ऐसी घोषणाओं से यदि किसी राज्य का आर्थिक रूप से नुकसान पहुंचता है तो इस पर राज्य की जनता ही सही निर्णय ले सकती है।

ईसी ने आगे कहा कि उसके पास किसी भी सियासी दल की मान्यता रद्द करने की शक्ति बहुत सीमित मामलों में है। वो तभी ये कार्रवाई कर सकती है जब उक्त पार्टी ने धोखे से मान्यता हासिल की हो या पार्टी द्वारा बनाए गए संविधान का पालन न कर रही हो। आयोग ने कहा कि वो सभी चुनाव के दौरान ये देखता है कि किसी सियासी दल का घोषणा पत्र आदर्श आचार सहिंता का उल्लंघन तो नहीं है। साथ ही चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को यह भी बताया कि उसने शक्ति विस्तार के लिए केंद्र सरकार को 2016 में ही एक प्रस्ताव भेजा था, जिसपर अभी तक जवाब नहीं आय़ा है।

बीजेपी (BJP) नेता ने कोर्ट में दायर की थी याचिका

दिल्ली बीजेपी के सीनियर नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर मुफ्तखोरी को बढ़ावा देनी वाली पार्टियों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की थी। याचिका में कहा गया है कि इस तरह की घोषणाएं एक तरह से वोटरों को रिश्वत देने के समान है। यह न केवल चुनावों में उम्मीदवारों को असमान स्थिति में खड़ा कर देती है बल्कि राज्यों के आर्थिक सेहत को भी बहुत नुकसान पहुंचता है। कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार को भी नोटिस जारी किया है। जिसका जवाब अभी तक नहीं दिया गया है।

भाजपा नेता और याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि वे इस मामले में अदालत से जल्द सुनवाई का आग्रह करेंगे। साथ ही यह भी मांग करेंगे की अदालत पांच पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों का एक पैनल बना कर उनसे इस मसले पर राय ले।

नौकरशाहों ने चेताया

हाल के वर्षों में सियासी दलों द्वारा सत्ता में वापसी के लिए चुनावों के दौरान त्वरित लाभ के लिए ऐसे लोकलुभावन और मुफ्त योजनाओं का ऐलान किया गया है जिसके औचित्य पर आर्थिक विशेषज्ञ सवाल उठाते रहे हैं। इसका नकरात्मक असर अब दिखने भी लगा है। देश के कई राज्य भयानक बजट घाटे (budget deficit) से गुजर रहे हैं। हाल ही में सीनियर नौकरशाहों की एक टीम ने एक बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चेताया था कि कुछ राज्यों की आर्थिक दशा बेहद खराब है। अगर जल्द सुधारात्मक कदम नहीं उठाए गए तो इनका भी हश्र श्रीलंका और ग्रीस जैसे देशों की तरह होगा।

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