UP में खाकी पर कब तक होंगे हमले?, बदमाशों ने मारी कांस्‍टेबल को गोली

Update:2016-03-01 13:36 IST

आगरा: यूपी में इन दिनों वर्दी खुद असुरक्षित महसूस कर रही है। खाकी पर लगातार हमले हो रहे हैं। कभी ये बदमाशों से पिटती है तो कभी आम जनता के आक्रोश का शिकार होती है। ताजा मामला आगरा का है देर रात थाना सदर इलाके में गस्त कर रहे कांस्‍टेबल को कार सवार बदमाशों ने गोली मार दी। गोली लगने से घायल कांस्‍टेबल को निजी हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया है।

क्‍या है पूरा मामला

-देर रात कमिश्नर आवास के पास गश्त कर रही पुलिस को एक संदिग्ध कार दिखी।

-कार में तकरीबन 5-6 बदमाश सवार थे।

-पुलिस ने बदमाशों को रोकने की कोशिश की।

वारदात के बाद फरार हुए बदमाश

-खुद को घिरता देख एक बदमाश ने फायर कर दी।

-गोली कांस्‍टेबल दिनेश की जांघ में लगी।

-पुलिस वाले गाड़ी रोक पाते इससे पहले कार सवार बदमाश फरार हो गए।

-शहर भर में देर रात तक चेकिंग की गई, लेकिन बदमाशों का कोई सुराग नहीं मिला।

राज्य की कानून-व्यवस्था ध्वस्त

-हाल ही में विधानसभा में पेश एक रिपोर्ट ने राज्य की कानून-व्यवस्था की खस्ताहाल स्थिति उजागर हुई थी।

-रिपोर्ट के मुताबिक, सपा सरकार के चार साल के कार्यकाल में पुलिस पर 1,044 हमले हुए।

-वहीं, मायावती के पांच साल के कार्यकाल में पुलिस को 547 बार पिटना पड़ा।

आजम ने क्‍या कहा

-विधान सभा में बीजेपी के विधायक डॉ. राधा मोहन अग्रवाल के पूछे गए एक सवाल के जवाब में संसदीय कार्य मंत्री आजम खान ने बताया कि बसपा के शासनकाल में पुलिस -कुल 547 बार पिटी, जबकि सपा सरकार के सरकारी आंकड़ों में यह संख्या 1,044 हैं।

बसपा शासनकाल में पुलिस की पिटाई का ब्यौरा:

-साल 2007-08 में पुलिस पर 75 हमले हुए।

-साल 2008-09 में यह आंकड़ा 101 हो गया।

-साल 2009-10 में पुलिस पर 103 हमले हुए।

-साल 2010-11 में पुलिस पर 124 हमले हुए।

-साल 2011-12 में पुलिस पर 144 हमले हुए।

सपा शासनकाल मे पुलिस की पिटाई का ब्यौरा:

-साल 2012-13 में पुलिस पर 202 हमले हुए।

-साल 2013-14 में पुलिस पर 264 हमले हुए।

-साल 2014-15 में पुलिस पर 300 हमले हुए।

-साल 2015-16 में पुलिस पर 278 हमले हुए।

आंकड़े देखने के बाद बीजेपी नेता ने चुटकी लेते हुए कहा कि आंकड़े बता रहे हैं कि सैयां भये कोतवाल.. जैसा मामला लग रहा था। इस पर आजम खान ने भी तंज कसते हुए कहा कि हमारे माननीय सदस्य जिस समय की बात करे रहे हैं उस समय तो मुकदमे दर्ज ही नहीं होते थे। अब मुकदमें दर्ज हो रहे हैं तो यह आंकड़े नज़र आ रहे हैं।

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