इस सरकारी स्कूल के बच्चे खेल-खेल में सांप सीढ़ी से ऐसे करते हैं पढ़ाई

Update:2018-11-25 16:36 IST

बिलासपुर: जब किसी सरकारी स्कूल में अच्छी तरह की पढ़ाई को सुनकर हर किसी को हैरानी लगती है। लेकिन छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल गांव मढ़ना के सरकारी प्राथमिक स्कूल ने बच्चों को अंग्रेजी और गणित सिखाने का रोचक तरीका ढूंढ निकाला है।

बिलासपुर जिले के गौरेला ब्लॉक स्थित इस गांव में प्राथमिक स्कूल के शिक्षकों ने कक्षा में फर्स पर विशेष सांप-सीढ़ी गेम की पेंटिंग बनाई है। स्कूली बच्चे इस पर उकेरे गए अंकों और अक्षरों के जरिये बच्चे जोड़-घटाना-गुणा-भाग तो सीख ही रहे हैं। इससे बच्चे अंग्रेजी के शब्द और वाक्य भी बना रहे हैं। वे स्कूल में अंग्रेजी में ही बात करने का अभ्यास भी करने लगे हैं। बता दें कि प्रधान इस आइडिया को राधेश्याम चतुर्वेदी ने दिया है।

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गौरतलब है कि सरकारी शिक्षा व्यवस्था में ढ़लकर इस स्कूल के बच्चे खेल-खेल में पढ़ाई करते हैं। सबसे बड़ी बात कि उनमें शिक्षा को लेकर रुचि उत्पन्न हो गई है। कक्षा में फर्श पर बनाई गई सांप-सीढ़ी देखने में जितनी आकर्षक है, इस पर पढ़ाई का तरीका उतना ही मजेदार।

बच्चे इस पर कैसे करते हैं पढ़ाई

स्कूल में कक्षा एक से पांच तक की पढ़ाई होती है। अधिकांश बच्चे गरीब परिवारों से हैं। एक-एक कर बच्चों को सांप-सीढ़ी पर उतारा जाता है। इसके जरिए पहाड़ा, अंकों का जोड़ना-घटाना, अंग्रेजी में शब्द-वाक्य रचना आदि सीखना बच्चों को बहुत पसंद आता है। सभी अपनी बारी का इंतजार करते हैं। सभी बच्चों को 20 तक का पहाड़ा कंठस्थ है। स्कूल परिसर में सभी अंग्रेजी में बात करने का प्रयास करते हैं।

इस प्रक्रिया के बाद से बढ़ने लगी है छात्रों की संख्या

बहरहाल इस स्कूल में छात्रों की संख्या फिलहाल 25 ही है, लेकिन अब यह धीरे-धीरे बढ़ रही है। पहाड़ों व जंगलों के बीच आदिवासी इलाके में स्थित इस स्कूल में बच्चों के शिक्षा पर विशेष ध्यान रखा जा रहा है।

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परिसर में बच्चों के नाम पर लगाये गए हैं पौधे

परिसर में सभी बच्चों के नाम से पौधे लगाए गए हैं। बच्चे अपने नाम के पौधों में पानी देते हैं। सूचना पटल पर शिक्षकों की योग्यता और उनके फोन नंबर अंकित हैं। सुबह प्रार्थना के साथ व्यायाम और योगाभ्यास कराया जाता है। बच्चों को गणित और अंग्रेजी में निपुण बनाने के अलावा सामान्य ज्ञान पर भी शिक्षक जोर दे रहे हैं। ऐसे में देश के अन्य विद्यालयों के जिममेदारों को भी ऐसे स्कूलों से प्रेरणा लेनी चाहिए।

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