Allahabad University Fee: फीस वृद्धि वर्तमान समय की हैं मांग, बोलीं प्रोफेसर संगीता श्रीवास्तव

Allahabad University Fee Hike: यदि थोड़ी सी फीस बढ़ा दी जाती है तो इतना असंतोष हो जाता है, यह महसूस करना चाहिए कि इतनी कम फीस में ये संस्थान आने वाले समय में नष्ट हो जाएंगे।

Written By :  Durgesh Sharma
Update:2022-09-03 13:54 IST

Allahabad University Fee Hike (Social Media)

Allahabad University Fee Hike: किसी भी मानव के जीवन में शिक्षा ऐसी महत्वपूर्ण कारक की भूमिका निभाती है जो उसके जीवन की दिशा तय करती है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर संगीता श्रीवास्तव के कार्यभार संभालने के पश्चात विश्वविद्यालय में पुनर्निर्माण के कई कार्य हुए। कुलपति ने आते ही युद्ध स्तर पर विश्वविद्यालय की बेहतरी के लिए कई कार्य आरंभ किए। कई विभागों की हालत बहुत ही दयनीय थी। अधिकांश शिक्षक सेवानिवृत्त हो चुके थे तथा अतिथि प्रवक्ताओं के सहारे कक्षाओं का संचालन किया जा रहा था। गैर शैक्षणिक कर्मचारियों की तादाद भी निरंतर घटती जा रही थी।

कुलपति प्रोफेसर संगीता श्रीवास्तव ने विश्वविद्यालय में बड़े पैमाने पर शिक्षकों की नियुक्तियां आरंभ की। अबतक 14 से ज्यादा विभागों में करीब 200 शिक्षकों की नियुक्तियां पूरी हो चुकी है। बहुत शीघ्र ही गैर शैक्षणिक कर्मचारियों की नियुक्तियां भी आरंभ होने वाली हैं।

दूसरी ओर विश्वविद्यालय की अनेक इमारतों को नए सिरे से संवारा गया है। इन्ही कारणों से इलाहाबाद विश्वविद्यालय का कैंपस पिछले कई दशकों की तुलना में काफी हरा भरा और गुलजार नजर आता है ।

इन तमाम चीजों के साथ साथ हमें इस बात पर भी गौर करना होगा कि सरकार की तरफ से विश्वविद्यालयों को साफ तौर पर यह संदेश दिया जा चुका है कि उन्हें अपने स्तर पर फंड का इंतजाम करना होगा तथा सरकार पर निर्भरता कम करनी होगी।

कई अन्य संस्थाओं की तरह सरकार द्वारा इलाहाबाद विश्वविद्यालय के फंड में भी कटौती की गई है।

इन सारे हालातों के मद्देनजर विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा फीस वृद्धि का निर्णय लिया गया है। परंतु बिना सोचे समझे चंद छात्र नेताओं द्वारा इस फैसले का विरोध किया जा रहा है। वस्तुतः इस पूरे आंदोलन की आड़ में कुछ छात्र नेता राजनीति में अपना भविष्य तलाश रहे हैं।

हमें यह याद रखना चाहिए कि सन 1922 के बाद यह पहला अवसर है जब इलाहाबाद विश्वविद्यालय में फीस वृद्धि की जा रही है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में उसी अनुपात में फीस वृद्धि की गई है जिस अनुपात में अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालयों की फीस में वृद्धि हुई है।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय की फीस संरचना अभी भी कई केंद्रीय विश्वविद्यालयों से काफी कम है।

विश्वविद्यालय में फीस वृद्धि के बाद भी स्नातक स्तर पर विज्ञान के विद्यार्थी की सालाना फीस 4151 है,जो कई केंद्रीय विश्वविद्यालयों से काफी कम है। कॉमर्स और स्नातक स्तर के कई कोर्स की फीस तुलनात्मक रूप से अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालयों की तुलना में कम है।

सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि बढ़ी हुई फीस की दर नए छात्रों पर लागू होगी। जो आने वाले सत्र में नामांकन ले रहे हैं। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि विश्वविद्यालय द्वारा संचालित प्रोफेशनल कोर्सेज की फीस में कोई वृद्धि नहीं की गई है तथा वे पूर्ववत है।

कई बार यह तर्क दिया जा रहा है कि फीस वृद्धि करने से समाज के कमजोर तबके के छात्रों पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। पर हम बताना चाहेंगे कि सरकार की कई ऐसी योजनाएं हैं जिसके माध्यम से आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को वित्तीय मदद दी जाती है।

21वीं सदी में कई निजी संस्थान भी शिक्षा के क्षेत्र में काफी आगे निकल चुके हैं। निजी विश्वविद्यालयों का आगमन किसी से छुपी हुई बात नहीं है। स्मार्ट क्लासरूम और नई तकनीकों के साथ काम करने वाले विश्वविद्यालयों से हमें होड़ लेनी है।

निजी विश्वविद्यालय और केंद्रीय विश्वविद्यालय की तुलना करने पर कई तरह के फर्क सामने आते हैं।

स्नातक स्तर के 3 वर्षीय कोर्स के लिए इलाहाबाद विश्वविद्यालय में 4151 की राशि प्रस्तावित है वही ऐसे कोर्स के लिए निजी विश्वविद्यालय प्रतिवर्ष 1,00,000 तक फीस लेते हैं।

फीस वृद्धि के इस पूरे संरचना को समझे बगैर कुछ स्वार्थी और राजनैतिक तत्व सिर्फ अपने हितों के लिए न सिर्फ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं बल्कि विश्वविद्यालय को अशांत भी कर रहे हैं। अगर विश्वविद्यालय में आधारभूत संरचनाओं का विकास नहीं होगा तथा नव निर्माण के कार्य नहीं होंगे तो हम दुनिया के साथ कदम से कदम मिलाकर नहीं चल सकते हैं।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय इस बात के लिए पूर्ण रूप से प्रतिबद्ध है कि यहां शोध और शिक्षा के लिए उच्च स्तरीय सुविधाएं प्रदान की जाए।

110 वर्षों में प्रतिमाह हुई मात्र 12 रूपये की शुल्क वृद्धि– प्रो. संगीता श्रीवास्तव

पिछले 110 वर्षों से प्रति माह शुल्क 12 रुपये किया गया है। चालू बिजली बिलों का भुगतान करने और अन्य रखरखाव के लिए शुल्क बढ़ाया जाना ज़रूरी था। रखरखाव के अभाव में सभी उच्च शिक्षा संस्थान खराब हो रहे हैं। निजी संस्थान अब प्रमुख खिलाड़ी हैं। वे अत्यधिक शुल्क लेते हैं। यदि थोड़ी सी फीस बढ़ा दी जाती है तो हितधारकों के बीच इतना असंतोष हो जाता है, उन्हें यह महसूस करना चाहिए कि इतनी कम फीस में शिक्षा प्रदान करने वाले ये संस्थान आने वाले समय में नष्ट हो जाएंगे।

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