Graduation New Rule: चार साल का ग्रेजुएशन करने की तैयारी

Graduation New Rule: विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने हाल ही में इन नए प्रस्तावों को स्वीकार किया है और जल्दी ही सार्वजनिक चर्चा शुरू कराए जाने की संभावना है।

Written By :  Neel Mani Lal
Published By :  Monika
Update:2022-03-21 14:10 IST

चार साल का ग्रेजुएशन (फोटो : सोशल मीडिया ) 

Graduation New Rule: स्नातक की पढ़ाई में व्यापक बदलाव की ओर कदम बढ़ाते हुए यूजीसी ने चार साल की स्नातक डिग्री के कोर्सों की अनुमति दे दी है। कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में स्नातक डिग्री के कोर्स तीन की जगह चार साल के हो जाएंगे।

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने हाल ही में इन नए प्रस्तावों को स्वीकार किया है और इन पर जल्दी ही सार्वजनिक चर्चा शुरू कराए जाने की संभावना है। हालांकि चूंकि नए प्रस्ताव नई शिक्षा नीति 2020 के अनुकूल हैं, कई विश्वविद्यालयों ने इन्हें लागू करना का फैसला भी ले लिया है।

चार साल के कोर्स में 160 क्रेडिट उपलब्ध होंगे। एक क्रेडिट के लिए 15 घंटों की क्लास में पढ़ाई अनिवार्य होगी। छात्र चाहे जिस कोर्स में विशेषग्यता हासिल करना चाहें, उन्हें पहले तीन सेमेस्टरों में कुछ साझा और आरंभिक कोर्स भी पढ़ने पड़ेंगे।

कई विषयों का विकल्प

ये कोर्स प्राकृतिक विज्ञान के विषयों, ह्यूमैनिटीज या मानविकी के विषयों और सामाजिक विज्ञान के विषयों में होंगे। इनमें शामिल होंगे अंग्रेजी भाषा, कोई एक प्रांतीय भाषा, भारत को समझना, पर्यावरण विज्ञान, स्वास्थ्य, योग, खेल कूद, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, बिग डाटा एनालिसिस आदि विषय।

तीन सेमेस्टरों के अंत में छात्रों को एक "मेजर" विषय चुनना होगा जिसे वो विस्तार से पढ़ेंगे। प्रस्ताव के अनुसार "छात्र का मनपसंद विषय देने में उसकी रुचि और पहले तीन सेमेस्टरों में उसके प्रदर्शन को देखा जाएगा।" मेजर विषय के लिए भी खगोल शास्त्र से लेकर राजनीतिक विज्ञान जैसे विकल्प मौजूद होंगे। इसके अलावा छात्र अगर चाहें तो वो दो और "माइनर" विषय भी चुन सकते हैं, जो उनके मेजर विषय से अलग क्षेत्र से भी हो सकते हैं। सातवें सेमेस्टर की शुरुआत में छात्रों को एक शोध प्रोजेक्ट पूरा करना होगा जो उनके मेजर विषय से जुड़ा होगा। आठवें सेमेस्टर में उन्हें अपना पूरा ध्यान इसी प्रोजेक्ट पर लगाना होगा।

इस पूरे कोर्स में छात्रों के पास दाखिला लेने के और छोड़ देने के कई विकल्प होंगे। पहले साल के बाद कोर्स छोड़ देने वालों को सर्टिफिकेट मिलेगा, दो साल के बाद छोड़ने पर डिप्लोमा, तीन पर स्नातक की डिग्री और चार पर ऑनर्स के साथ स्नातक की डिग्री।

नियुक्ति पर विवाद

दिलचस्प बात है दिल्ली विश्वविद्यालय कुछ साल पहले ही इसी तरह के चार साल के स्नातक कोर्स का प्रयोग कर चुका है, जो यूपीए सरकार के कार्यकाल में शुरू किए गए थे। एनडीए सरकार बनने के बाद यूजीसी ने ही दिल्ली विश्वविद्यालय को चार साल के कोर्स को रद्द कर फिर से तीन साल के कोर्स को शुरू करने का आदेश दिया था। लेकिन वही यूजीसी एक बार फिर चार साल के कोर्स की तरफ वापस लौट रही है। बहरहाल, नए प्रस्तावों में स्नातक कोर्सों के अलावा कुछ और भी प्रस्ताव जिनमें से एक पर विवाद खड़ा हो गया है।

प्रोफेसर ऑफ़ प्रैक्टिस

शिक्षकों की नियुक्ति के लिए प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस का एक प्रस्ताव लाया जा रहा है जिसके तहत शिक्षकों के कुछ विशेष पदों पर नियुक्ति के लिए औद्योगिक क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों को नियुक्त किया जाएगा। इन नियुक्तियों के लिए मौजूदा नियमों की तरह पीएचडी की योग्यता अनिवार्य नहीं होगी। यूजीसी का मानना है कि इसकी मदद से छात्रों को उद्योग जगत में उच्च पदों पर काम कर रहे लोगों के तजुर्बे और ज्ञान का सीधा फायदा मिल सकेगा। लेकिन आलोचकों का कहना है कि कहीं इस प्रावधान का इस्तेमाल कर नियमों की अनदेखी कर सरकार मनमाने ढंग से नियुक्ति न करने लगे। उम्मीद की जा रही है कि इन सभी प्रस्तावों को जल्द ही सार्वजनिक किया जाएगा और तब इन पर बेहतर बहस हो सकेगी. देखना होगा कि यूजीसी इन्हें कब जारी करता है।

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