BBAU Lucknow: पोषण माह पर आयोजित हुआ लेक्चर सीरीज

BBAU Lucknow: वक्त के साथ बढ़ती मानव गतिविधियों और जनसंख्या ने पर्यावरण को क्षति पहुँचाई है, जिसके कारण पानी का संकट भी गहरा गया है।

Written By :  Durgesh Sharma
Update: 2022-09-09 14:41 GMT

Lecture series organized on nutrition month in bbau Lucknow (Social Media)

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BBAU Lucknow: राष्ट्रीय पोषण माह के अवसर पर बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय (बीबीएयू) के गृह विज्ञान विभाग द्वारा व्याख्यान श्रृंखला का आयोजन किया गया। इस अवसर पर गृह विज्ञान संकाय की डीन प्रो.सुनीता मिश्र तथा पृथ्वी एवं पर्यावरण संकाय के डीन प्रो.नवीन कुमार अरोरा ने वक्तव्य दिया। प्रो.नवीन अरोरा ने जल संरक्षण एवं प्रबंधन विषय पर चर्चा करते हुए कहा कि धरती पर पानी के कारण ही जीवन संभव हुआ है। लेकिन सिर्फ 3 प्रतिशत पानी ही पीने योग्य है। वक्त के साथ बढ़ती मानव गतिविधियों और जनसंख्या ने पर्यावरण को क्षति पहुँचाई है, जिसके कारण पानी का संकट भी गहरा गया है।


जल संरक्षण भविष्य के लिए है जरूरी - प्रो.नवीन कुमार

उन्होनें कहा कि बढ़ती जनसंख्या और औद्योगिकीकरण ने सम्पूर्ण पृथ्वी के लिए पर्यावरणीय समस्या खड़ी कर दी है। बढ़ते खाद्यानों की मांग से कृषि की ज़रूरत बढ़ी है। कृषि के लिये हम उसी 3 प्रतिशत जल पर निर्भर हैं। बढ़ते उद्योगों, खत्म होते जंगलों, ग्रीन हाउस गैस, बढ़ती जनसंख्या और बढ़ते कार्बन उत्सर्जन के कारण पर्यावरण पूरी तरह खराब हो चुका है। इससे तापमान में अप्रत्याशित बढ़ोत्तरी हो रही है।

इसके कारण आज कहीं सूखा तो कहीं बाढ़ की स्थिति है। ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। समुद्री क्षेत्र जलमग्न हो रहे हैं। स्थिति पर काबू नहीं किया गया तो समुद्र के किनारे बसे शहर पूरी तरह पानी में डूब जाएंगे। बढ़ते तापमान के कारण पिछले 50 सालों में समुद्री जीवों की संख्या लगभग 39 प्रतिशत तक गिरी है। यह स्थिति चिंता जनक है। पानी का संरक्षण पर्यावरण के संरक्षण के बिना संभव नहीं है। यह सभी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। उन्होंने इस समस्या से निपटने के लिए पर्यावरण के अनुकूल तकनीकी विकसित करने एवं अक्षय ऊर्जा स्रोतों के उपयोग को बढ़ावा देने की बात कही।

पारंपरिक भोजन होते है स्वास्थ्य के लिए लाभदायक- प्रो.सुनीता मिश्रा

प्रो.सुनीता मिश्रा ने जनजातीय लोगों के पारंपरिक खानपान और उसमें पाए जाने वाले पोषक तत्वों के विषय में जानकारी दी। उन्होंने ओड़िया के जनजातीय लोगों के खानपान पर आधारित अपनी शोध के ज़रिए बताया कि कैसे अभी भी वे लोग अपने पारंपरिक तरीकों पर ही निर्भर हैं। वहाँ की महिलाएं और बच्चे अपना पारंपरिक खाना ही खाते हैं और वे सभी स्वस्थ्य हैं। उन्होंने बताया की जनजातीय लोग ज्यादातर हरी सब्जियों और अपने विशेष मसालों का ही प्रयोग करते हैं।

वे ज्यादातर फरमेंटेड खाद्य पदार्थों का सेवन करते हैं। उनके खानपान में फरमेंटेड चावल का पीठा, फर्मेंटेड चावल से तैयार पेय कातुल और बांस के अंदर पकाया चावल और मछलियां उनके आहार का हिस्सा है। उन्होंने जनजातीय लोगों द्वारा तैयार गुर्जि के बारे में जो कि पाचक दवा के तौर पर प्रयोग की जाती है, बताया। कार्यक्रम में विभाग की शिक्षिका प्रो.यू. वी. किरण, डॉ. नीतू सिंह, डॉ.शालिनी अग्रवाल, डॉ. माधवी समेत अन्य शिक्षक, बढ़ी संख्या में विभाग के विद्यार्थी एवं शोधार्थी तथा कर्मचारी उपस्थित रहे ।

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