नई दिल्ली: आज के इस भौतिकवादी युग में जहां थोड़े से पैसे के लालच में भाई अपने सगे भाई का गला काटने में गुरेज नहीं करता है। वहीं समाज में कुछ ऐसे भी लोग है जो अपने कमाई का हिस्सा दूसरों का जीवन संवारने में खर्च कर देते है। ऐसे ही लोगों में से एक डॉ. अजय कुमार भी है। वह न केवल गरीब बच्चों को मुफ्त में पढ़ाते है बल्कि अपनी कमाई का एक हिस्सा उनकी पढ़ाई पर भी खर्च करते है।
2006 में काम की तलाश में आये थे दिल्ली
डॉ. अजय कुमार एमसीडी (म्यूनीसिपल कॉर्पोरेशन ऑफ दिल्ली) में जन्म एवं मृत्यु पंजीकरण के कर्ताधर्ता है। वह एक मिडिल क्लास परिवार से ताल्लुक रखते हैं। वे काम की तलाश में 2006 में दिल्ली आये थे और यही के नंद नगरी में रहने लगे। शुरुआत में वे एक चेरिटेबल ओपीडी में काम करते थे। बाद में एक सोसायटी अस्पताल में बच्चों के डॉक्टर के तौर पर काम किया।
2008 में वे लखनऊ जाकर रहने का मन बना रहे थे कि उन्हें एमसीडी में स्कूल हेल्थ स्कीम में नौकरी मिल गई। यहां भी उन्हें बच्चों के इलाज का जिम्मा मिला। जिसमें पिछड़े और गरीब परिवार के बच्चे आते थे। कुछ समय बाद उन्होंने घर पर भी बच्चों का मुफ्त इलाज शुरू कर दिया।
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ऐसे आया बच्चों को साक्षर बनाने का आइडिया
डॉ. अजय ने जब घर पर बच्चों का इलाज करना शुरू किया तो धीरे –धीरे गली –मुहल्लों के बच्चों का वहां पर आना जाना शुरू हो गया। बच्चे के साथ उनका लगाव बढ़ने लगा। उन्होंने देखा कि बच्चे स्कूल नहीं जाते है और आपस में गाली गलौज में बात करते है। खाली वक्त में केवल खेलकूद और मारपीट करते है। डॉ. अजय ने सोचा की इस तरह से तो इन बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा। वहीं से उन्हें बच्चों को साक्षर बनाने का आइडिया आया।
2012- 13 में शुरू किया पढ़ाने का काम
डॉ. अजय ने नंद नगरी में ही एक कमरा किराया पर लिया और बच्चों को इकट्ठा कर पढ़ाना शुरू कर दिया। शुरू में 50-60 बच्चों को पढ़ाते थे। उन्होंने जगह की कमी के कारण कुछ बच्चों को पढ़ने के लिए स्कूल में दाखिला करा दिया। लेकिन बच्चों की संख्या में लगातार बढ़ती ही रही थी। जिसके बाद उन्होंने गली –मुहल्ले के बच्चों को पढ़ाने के लिए अलग से एक बड़ा कमरा लेने का फैसला किया।
डॉक्टर-इंजीनियर बनने की करते है बात
डॉ. अजय के पास पहले जब कोई बच्चा पढ़ने के लिए आता था। उससे जब ये पूछा जाता था कि आगे क्या बनना चाहते हो तब वे ड्राइवर-मैकेनिक बनने की बात करते थे लेकिन आज वहीं बच्चे अब डॉक्टर-इंजीनियर बनना चाहते हैं। उनके पास अभी 7 से 15 साल तक के 20 बच्चे पढ़ने के लिए आ रहे है। 3 बच्चे 10वीं की परीक्षा देंगे। फिर इन्हें हटा दिया जाएगा, वे चाहे तो गेस्ट के तौर पर आगे भी पढ़ाई के लिए आ सकते है।
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खुद की सैलरी से करते हैं किराया और बिजली बिल का पेमेंट
डॉ. अजय ने जो कमरा लिया है उसका किराया और बिजली का बिल 6 हजार रु. महीना आता है, जिसका पेमेंट वे सैलरी से करते हैं। वे बताते हैं कि ऑफिस में जन्म-मृत्यु पंजीकरण में हेड की जिम्मेदारी है। शाम साढ़े 5 बजे छुट्टी होती है और 6 से 8 बजे तक नंद नगरी में पढ़ाते हैं। रात नौ बजे घर पहुंचते हैं। बेटी कॉलेज में है और बेटा 8वीं में है। बेटे को बेटी पढ़ाती है। घर से 13 घंटे बाहर रहता हूं, लेकिन पत्नी और बच्चों का पूरा सहयोग मिलता है।
बच्चों को नंबर मशीन बनाने की बजाय नैतिकता पर जोर
डॉ. अजय बताते हैं कि बच्चों को अंग्रेजी की बेसिक ग्रामर और बेसिक मैथ्स पढ़ाने से उनका आत्मविश्वास बढ़ता है। अंग्रेजी मीनिंग, इडियम्स के अलावा थोड़ी-थोड़ी अंग्रेजी ये बच्चे नंद नगरी के सरकार स्कूल में पढ़कर और यहां के माहौल में रहकर बोलने लगे हैं। हर चीज में आगे बढ़कर भागीदारी निभाते हैं। बच्चा कितना इंटेलिजेंट है, ये नंबर से तय नहीं करना चाहिए।
होली, दीवाली के साथ ईद भी मनाते हैं
डॉ. कुमार बताते हैं कि 20 बच्चे रेगुलर आते हैं। सभी बच्चे मंगलवार और गुरुवार को गुल्लक में दो-दो रु. डालते हैं। इससे जिस बच्चे का बर्थडे होता है उसके लिए गिफ्ट आता है। केक डॉ. अजय खुद लाते हैं। होली, दीवाली के साथ ईद भी मनाई जाती है।