बड़ी कंपनी की नौकरी छोड़ की UPSC की तैयारी, इंटरनेट से पढ़ाई कर हासिल किया 344वां रैंक
कानपुर: दृढ़निश्चय से अगर कोई प्रयास किए जाएं, तो सफलता मिलनी तय है। ऐसा ही दृढ़निश्चियी है कानपुर का एक सॉफ्टवयेर इंजीनियर। जिसने 8 लाख रुपए के सालाना पैकेज छोड़कर आईएएस बनने की ठानी और नौकरी छोड़कर तैयारी में जुट गया।
यूपीएससी की तैयारी के दौरान उसने कोचिंग भी नहीं ली। इंटरनेट से पढ़ाई कर एंट्रेंस टेस्ट पास किया। और जब रिजाल आया तो 344वां रैंक हासिल कर सफलता के झंडे गाड़े। उसकी इस उपलब्धि से पूरे परिवार में ख़ुशी का माहौल है। रिश्तेदारों और दोस्तों के बधाई देने का सिलसिला जारी है।
विश्वास पर पिता को पूरा 'विश्वास'
प्रदेश के इस बेटे का नाम है विश्वास। विश्वास, गोविन्द नगर थाना क्षेत्र के दबौली वेस्ट में रहने वाले देवेन्द्र कुमार शुक्ला का बीटा है। परिवार में मां ममता और एक बहन साक्षी (23 वर्ष) रहते हैं। देवेन्द्र कुमार ने बेटे का नाम विश्वास रखा था। शायद उन्हें पूरा विश्वास था कि उनका बेटा एक न एक दिन जरूर नाम रोशन करेगा। देवेंद्र का दादानगर में एक छोटा सा होटल है।
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पढ़ाई में हमेशा रहा अव्वल
विश्वास के पिता देवेंद्र शुक्ला ने बताया कि उनका बीटा बचपन से ही पढ़ाई-लिखाई में अव्वल था। विश्वास ने साल 2008 में हाईस्कूल पास किया था। इसमें उसे 84 प्रतिशत अंक आए। वहीं, इंटर की परीक्षा उसने हरमिलाप इंटर कॉलेज से 86 प्रतिशत अंकों से पास किया। इसके बाद वह बीएचयू चला गया। वहां से इलेक्ट्रॉनिक में बीटेक किया। कॉलेज से ही उसे प्लेसमेंट मिल गया। जिसके बाद वह बैंगलुरु में सैमसंग कंपनी में बतौर सॉफ्टवेयर इंजीनियर का काम करने लगा।
दक्षिण कोरिया से लौटने के बाद छोड़ दी नौकरी
अपनी कामयाबी पर विश्वास ने बताया, कि 'मैंने बैंगलुरु में 2012 से 2014 तक नौकरी की थी। उसी दौरान मुझे 70 दिनों के लिए कंपनी ने दक्षिण कोरिया भेजा था। जब मैं वहां से वापस लौटा तो मेरा मन नहीं लग रहा था। मेरा मन सामाजिक हित के काम करने को कर रहा था। मैंने अपने घरवालों को बताया, कि मैं यह नौकरी छोड़ रहा हूं और यूपीएससी की तैयारी करूंगा। मेरे इस निर्णय में मेरे परिवार ने मुझे पूरा सपोर्ट किया। इसके बाद मैं बैंगलुरु से दिल्ली शिफ्ट हो गया।'
नहीं आया कंपनी की लालच में
विश्वास ने बताया, कि मुझे 70 हजार रुपए प्रतिमाह वेतन मिलता था। जब मैंने कंपनी छोड़ने का मन बनाया तो वो मेरा पैकेज बढ़ाने को तैयार थे। लेकिन मैं नहीं माना। विश्वास कहते हैं यदि मैं कंपनी की लालच में आ जाता, तो आज इस मुकाम पर नहीं होता।
इस तरह की तैयारी
विश्वास ने बताया, कि 'सिविल सेवा की परीक्षा की तैयारी के लिए मैंने घर में ही पढाई की। इसके लिए मैंने कोई कोचिंग नहीं की। मैंने इंटरनेट से संबंधित विषयों पर जानकारी जुटाई। कुछ लेखकों की जीवनी भी पढ़ी। इससे मुझे प्रोत्साहन मिला।'
देश के लिए कुछ करने का मिला मौका
उन्होंने कहा, 'सिविल सेवा में जाने का मेरा सपना पूरा हुआ। अब देश के लिए कुछ बेहतर करने का मौका मिला है। लोगों की भलाई के लिए जो हो सकता है करूंगा।'
'मुझे अपने बेटे पर नाज है'
वहीं, विश्वास की मां ममता का कहना है, कि 'विश्वास जब छोटा था तब तक ही यह मेरे पास रहा। जब से यह पढ़ाई करने लगा मैं जी भरकर इसे देख भी नहीं पाई हूं। कभी-कभी अपने बेटे को दुलार करने का मन करता है। उससे बहुत सी बातें करने का मन करता है। लेकिन अब तो वह अपनी के लिए भी समय नहीं निकाल पाएगा।कुछ भी हो, मुझे अपने बच्चे पर नाज है।'