सुधा बनी IGNOU में एडमिशन लेने वाली पहली ट्रांसजेंडर

नाच-गाना उसकी मजबूरी है, वह भी आम लोगों की तरह नौकरी करके पैसे कमाना चाहती थी। शायद अब उसकी ये इच्छा भी पूरी हो सके। जी हां, सुधा इग्नू में एडमिशन लेने वाली पहली ट्रांसजेंडर बन गई हैं। इग्नू ने किन्नर समुदाय के लिए नि:शुल्क शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था की है।;

Update:2017-07-21 17:06 IST

लखनऊ : नाच-गाना उसकी मजबूरी है, वह भी आम लोगों की तरह नौकरी करके पैसे कमाना चाहती थी। शायद अब उसकी ये इच्छा भी पूरी हो सके। जी हां, सुधा इग्नू में एडमिशन लेने वाली पहली ट्रांसजेंडर बन गई हैं। इग्नू ने किन्नर समुदाय के लिए नि:शुल्क शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था की है।

दावा है कि इग्नू इस तरह की योजना शुरू करने वाला देश का पहला यूनिवर्सिटी बन गया है। इस योजना के तहत उच्च शिक्षा ग्रहण करने वाली सुधा इग्नू की पहली स्टूडेंट बन गई है। सुधा ने बताया कि उसने 18 साल पहले बिहार से इंटर पाास किया था। उच्च शिक्षा ग्रहण करने की काफी इच्छा थी लेकिन सामाजिक परिस्थितियों की वजह से आगे की पढ़ाई नहीं कर पाई।

रोजी-रोटी की तलाश में सुधा लखनऊ आ गई और किन्नर समुदाय के साथ जुड़कर नाच-गाने के कार्यक्रम के जरिए जीविका चलाने लगी। सुधा ने बताया कि वह मजबूरी में यह सब करती थी लेकिन हमेशा उसके मन में आम लोगों की तरह नौकरी करने की इच्छा थी। इसी दौरान वह इग्नू के संपर्क में आई और सोमवार को उसने इग्नू के क्षेत्रीय केंद्र में स्नातक उपाधि कार्यक्रम (बीपीपी) में अपना नामांकन कराया।

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बीपीपी में कराया नामांकन

इस बारे में इग्नू के सहायक क्षेत्रीय निदेशक डॉ. कीर्ति विक्रम सिंह ने बताया कि बिजलीपासी राजकीय महाविद्यालय में आयोजित जागरुकता शिविर में सुधा ने नामांकन कराया। यह 6 महीने का कोर्स है। जिसे पूरा करने के बाद सुधा को ग्रेजुएशन कोर्स में एडमिशन दिया जाएगा। क्योंकि सुधा के इंटर की मार्कशीट और सर्टिफिकेट नहीं था इसलिए उसका बीपीपी में नामांकन कराया गया।

31 जुलाई तक नामांकन

सुधा ने सरकार से भी अपेक्षा की है कि ऐसे समुदाय के लोगों के लिए रोजगार के अवसर मिलने चाहिए। इग्नू की क्षेत्रीय निदेशक डॉ. मनोरमा सिंह ने बताया कि इग्नू अब तक बंदियों को निशुल्क शिक्षा प्रदान कर रहा था, अब इस सत्र से यह सुविधा ट्रांसजेंडर को भी दी जाएगी। वे 31 जुलाई तक नामांकन करा सकते हैं।

क्या बताया सुधा ने?

अपना भारत से बातचीत में सुधा ने बताया , "मेरा पूरा नाम सुधा तिवारी है। मैं बिहार के सीवान की रहने वाली हूं। मेरे पापा अमरनाथ आर्मी में जनरल थे। हम पांच भाई-बहन थे। बहनों में मैं दूसरे नंबर पर थी। मां की मौत हो चुकी है। दोनों भाई दिल्ली में जॉब करते हैं और बहनें मैरिड हैं। मैं तब छठवीं में थी जब मुझे लगा कि मैं अपने क्लासमेट्स से अलग हूं। मेरा बॉडी स्ट्रक्चर देखकर लोग मजाक बनाते थे। सिर्फ मुझे ही नहीं, मेरी फैमिली को भी पब्लिकली ताने दिए जाते थे। तुम्हारी बेटी तो किन्नर जैसी है, इसे नाचने-गाने भेज दो। मैं घर आकर अकेले में घंटों रोती थी। भाई-पापा तो बाहर वालों से लड़ाई भी कर लेते थे कि हमारी बेटी को ऐसे क्यों कह रहे हो। वो मुझे सपोर्ट करते थे, कभी मुझसे कुछ नहीं कहा, लेकिन फिर भी मुझे बुरा लगता था।

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चार साल बाद छोड़ा घर

सुधा के मुताबिक, ''मैं 14 साल की उम्र में घर से भागकर लखनऊ आ गई। तब मैं 10वीं की स्टूडेंट थीं। वह बताती हैं - मैं बड़ी हो रही थी और लोगों के ताने बढ़ रहे थे। मैंने सोचा कि मेरी वजह से फैमिली क्यों परेशान हो। इसलिए 1999 में ट्रेन पकड़कर लखनऊ आ गई। मैं चारबाग स्टेशन पर खड़ी थी। कुछ समझ नहीं आ रहा था क्या करूं। मैंने एक ऑटोवाले से शहर में किन्नरों के घर के बारे में पूछा तो वो मुझे सहादतगंज छोड़ गया। मेरी जेब में कुल 100 रुपए थे। मैंने वहां पता पूछते हुए किन्नर समाज तक पहुंच गई, जहां मेरी मुलाकात अखाड़े के गुरु से हुई।

पापा नहीं करते बात

सुधा के मुताबिक़ वह किन्नर अखाड़ा में संध्या गुरु से मिली और उन्होंने खुशी-खुशी उसे अपने साथ रख लिया।

उन्होंने मुझे मां- बाप का प्यार दिया। 17 साल से उनके साथ हूं और आगे भी रहना चाहती हूं। बस, अब नाच-गाना अच्छा नहीं लगता। सुधा रेलवे में नौकरी करना चाहती हैं, जिसके लिए इग्नू में एडमिशन लिया है। सुधा जीके, हिस्ट्री आदि सब्जेक्ट्स की किताबें पढ़ती रहती हैं। वो रेलवे एग्जाम की तैयारी में जुटी हैं। क्या फैमिली से बात होती है, इस पर उन्होंने बताया, "पापा को छोड़कर सभी से बात होती है। पापा आज भी मेरे घर से भागने वाली बात से नाराज हैं।

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