UP Election 2022: बांसडीह में कड़े मुकाबले में फंसे रामगोविंद चौधरी, भाजपा और बसपा ने बिगाड़े समीकरण
UP Election 2022: बलिया जिले की बांसडीह विधानसभा सीट पर समाजवादी पार्टी ने नेता प्रतिपक्ष रामगोविंद चौधरी को चुनाव मैदान में उतरा है। वहीं, इस बार भाजपा और बसपा कड़ी चुनौती दे रहे है। इसलिए चौधरी की सियासी राह आसान नहीं मानी जा रही है।
UP Election 2022: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Election 2022) में बलिया जिले (Ballia District) की बांसडीह विधानसभा सीट (Bansdih assembly seat) पर भी सबकी निगाहें लगी हुई हैं। इस सीट पर समाजवादी पार्टी (Smajawadi Party) की ओर से नेता प्रतिपक्ष रामगोविंद चौधरी (Leader of Opposition Ramgovind Chowdhury) किस्मत आजमाने के लिए चुनाव मैदान में उतरे हैं। पिछले चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चौधरी को चुनौती देने वाली केतकी सिंह इस बार भाजपा (BJP) के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरी हैं। इसलिए चौधरी की सियासी राह आसान नहीं मानी जा रही है।
क्षेत्र में राजभर मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा है और इसलिए बसपा (BSP) के टिकट पर चुनाव लड़ने वाली मानती राजभर को भी काफी मजबूत दावेदार माना जा रहा है। कड़े मुकाबले में फ॔से चौधरी (Leader of Opposition Ramgovind Chowdhury) ने आखिरी चुनाव लड़ने का पासा भी फेंका है मगर यह देखने वाली बात होगी कि क्षेत्र के मतदाताओं की सहानुभूति जीतने में वे कहां तक कामयाब हो पाते हैं।
बच्चा पाठक का गढ़ रहा है यह क्षेत्र
बांसडीह विधानसभा क्षेत्र (Bansdih Assembly Constituency) को कभी कांग्रेस नेता बच्चा पाठक (Congress leader Bachha Pathak) का गढ़ माना जाता था। बच्चा पाठक (Congress leader Bachha Pathak) ने इस सीट पर सात बार विधानसभा चुनाव जीतने में कामयाबी हासिल की थी। इस सीट पर 1967 में हुए पहले चुनाव में भारतीय जनसंघ के बैजनाथ ने जीत हासिल की थी। इसके बाद 1969 के चुनाव में कांग्रेस के बच्चा पाठक (Congress leader Bachha Pathak) इस सीट पर काबिज हो गए। बच्चा पाठक ने इस सीट पर 1969, 1974, 1977, 1980, 1991, 1993 और 1996 में जीत हासिल की।
2002 में समाजवादी जनता पार्टी (Samajwadi Janata Party) के टिकट पर उतरे रामगोविंद चौधरी ने बच्चा पाठक को चुनाव में हरा दिया था। 2007 में इस सीट पर बसपा के शिवशंकर को जीत मिली थी। 2012 में चौधरी ने फिर इस सीट पर कब्जा कर लिया था और 2017 के चुनाव में भी उन्हें इस सीट पर जीत हासिल हुई थी। अब यह देखने वाली बात होगी कि चौधरी इस बार हैट्रिक लगाने में कामयाब हो पाते हैं या नहीं।
निर्दलीय केतकी ने दी थी बड़ी चुनौती
2017 के विधानसभा चुनाव (2017 Assembly Election) में रामगोविंद चौधरी (Leader of Opposition Ramgovind Chowdhury) ने इस सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार केतकी सिंह को हराया था। 2017 में काफी कांटे का मुकाबला हुआ था और उस चुनाव में सपा के टिकट पर उतरे चौधरी 51,201 मत पाने में कामयाब हुए थे जबकि निर्दलीय केतकी सिंह ने 49,514 मत हासिल करके सभी को हैरान कर दिया था। केतकी सिंह भाजपा के टिकट के दावेदार थीं मगर 2017 में भाजपा का सुभासपा के साथ गठबंधन था।
यह सीट गठबंधन में सुभासपा को मिली थी और सुभासपा से पार्टी के मुखिया ओमप्रकाश राजभर के बेटे अरविंद राजभर चुनाव मैदान में उतरे थे। इसी कारण केतकी सिंह ने बगावत करते हुए निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में नामांकन दाखिल कर दिया था। 2017 में अरविंद राजभर को 40,234 और बसपा के शिवशंकर को 38,745 मत मिले थे।
बांसडीह का जातीय समीकरण
बांसडीह विधानसभा क्षेत्र (Bansdih Assembly Constituency) के जातीय समीकरण को देखा जाए वहां राज्य भर मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा करीब 55,000 है। इस बार सपा के साथ सुभासपा के गठबंधन को देखते हुए चौधरी को राजभर मतदाताओं पर काफी भरोसा है। हालांकि बसपा की मानती राजभर इस वोट बैंक में सेंध लगाती हुई दिख रही हैं।
क्षेत्र में 48,000 यादव, 45,000 क्षत्रिय और 40,000 ब्राह्मण मतदाता भी प्रत्याशियों की जीत-हार में बड़ी भूमिका निभाएंगे। इन जातियों के अलावा दलित, बिंद, मौर्य, मुस्लिम, बनिया और चौहान मतदाताओं को साधने की भी कोशिश की जा रही है। सभी प्रत्याशियों ने जातीय समीकरण साधने के लिए पूरी ताकत लगा रखी है और इस कारण चुनावी मुकाबला काफी दिलचस्प हो गया है।
सभी दलों ने झोंकी पूरी ताकत
इस बार के विधानसभा चुनाव में चौधरी कड़े मुकाबले में फंस गए हैं। पिछले चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में ताकत दिखाने वाली केतकी सिंह इस बार भाजपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में उतरी हैं। उन्हें क्षेत्र में अच्छा समर्थन मिलता दिख रहा है। भाजपा में उनकी वापसी से कार्यकर्ताओं में भी जोश दिख रहा है। दूसरी ओर बसपा उम्मीदवार मानती राजभर की चुनौती को भी काफी मजबूत माना जा रहा है। उन्हें चुनाव मैदान में उतारे जाने से सपा के समीकरणों पर असर पड़ने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। कांग्रेस प्रत्याशी पुनीत पाठक भी चुनाव में पूरा दम लगाने की कोशिश में जुटे हुए हैं।
माना जा रहा है कि कड़े मुकाबले में फंसने के कारण ही चौधरी की ओर से आखिरी चुनाव लड़ने का दांव भी चला गया है। इस दांव के जरिए चौधरी मतदाताओं की सहानुभूति बटोरने की कोशिश कर रहे हैं। भाजपा और सपा के दिग्गज नेताओं की ओर से क्षेत्र में चुनावी सभाएं हो चुकी हैं और अब यह देखने वाली बात होगी कि गुरुवार को मतदाताओं का समर्थन किस प्रत्याशी को हासिल होता है।
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