UP Election 2022: सहारनपुर जनपद में भाजपा को सपा से मिल रही कड़ी चुनौती, 2017 का इतिहास दोहराना होगा मुश्किल
UP Election 2022: सोनभद्र जिले की सभी विधानसभा सीटों पर समाजवादी पार्टी बीजेपी को दे रही कड़ी टक्कर।
UP Election 2022: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की मतगणना 10 मार्च को होनी है। 10 मार्च को स्थिति साफ हो जाएगी कि प्रदेश में एक बार फिर योगी आदित्यनाथ की सरकार होगी या फिर अखिलेश यादव अपना जलवा कायम करने में सफल रहेंगे। इस बार नतीजे चौंकाने वाले भी हो सकते हैं। सहारनपुर जनपद में कुल सात विधान सभा सीटें हैं। 7 में से 5 सीटों पर गठबंधन और भाजपा उम्मीदवारों के बीच कांटे की टक्कर दिखाई दे रही है तो वहीं 2 सीटों पर त्रिकोणीय संघर्ष नजर आ रहा है।
मुस्लिमों के सपा रालोद रालोद गठबंधन के प्रति रुझान दिखाई जाने से मतदान के बाद गठबंधन के नेताओं के चेहरे खिले नजर आ रहे हैं तो वहीं भाजपा उम्मीदवार जीत का सेहरा अपने सिर ही होने का दावा कर रहे हैं। इस बार सहारनपुर जनपद में कुल मतदान 71.1 प्रतिशत रहा।
मत प्रक्रिया पूरी होने के बाद पार्टी और प्रत्याशियों को लेकर जहां कयासों का दौर शुरू हो गया है वहीं ढाबों, चाय और खाने-पीने की दुकानों पर लोग अपनी-अपनी पार्टियों को जिताने में लगे हुए हैं। लेकिन एक बात जो सभी मान रहे हैं कि जीत इस बार एक तरफा नहीं है। बल्कि मुकाबला कांटे का होगा।
सहारनपुर जनपद में जहां दो पूर्व मंत्रियों और दो पूर्व एमएलसी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है तो वहीं कई आला अधिकारी है जो इस चुनाव को अपनी प्रतिष्ठा से जोड़कर देख रहे हैं।
सहारनपुर की विधानसभा नंबर 1 बेहट विधानसभा में मुख्य तौर पर भाजपा, सपा और बसपा तीन उम्मीदवार जीत की दौड़ में शामिल है। इस दौड़ में बसपा उम्मीदवार के प्रति मतदाताओं का झुकाव सपा उम्मीदवार की जीत की नैया को संकट में डाल सकता है। तो वहीं भाजपा से कांग्रेस से विधायक रहे नरेश सैनी जो अब भाजपा उम्मीदवार के तौर पर मैदान में हैं उनकी जीत की राह भी इस बार आसान नहीं है। मुख्य रूप से इस सीट पर मुकाबला पूर्व एमएलसी तथा दिल्ली के जामा मस्जिद के शाही इमाम इमाम बुखारी के दमाद उमर अली खान और भाजपा के उम्मीदवार नरेश सैनी के बीच में माना जा रहा है।
सहारनपुर जनपद की विधानसभा नंबर दो नकुड विधानसभा जहां पूर्व मंत्री धर्म सिंह सैनी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। तो उनकी राह में सबसे बडे रोड़ा बनते दिखाई दिए बसपा उम्मीदवार साहिल खान। वैसे तो साहिल खान पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन राजनीतिक परिवार से होने के चलते वे जमीनी तौर से राजनीति से जुड़ना लोगों से जुड़ने में ज्यादा विश्वास रखते हैं। कोविड-19 के समय साहिल खान ने लोगों की बहुत ज्यादा मदद की और वह इस मदद को अपने पक्ष में वोटों के रूप में तब्दील होते हुए देखना चाहते हैं।
तो वही पूर्व मंत्री धर्म सिंह सैनी के अचानक भाजपा को बाय-बाय और साइकिल की सवारी करने के बाद भाजपा ने आनन-फानन में इस सीट पर गुर्जर समाज के चौधरी मुकेश को इस सीट पर उतारा। इस बार मुकाबला सपा उम्मीदवार डॉक्टर धर्म सिंह सैनी और भाजपा उम्मीदवार मुकेश चौधरी के मध्य देखना किसी रोमांच से कम नहीं होगा।
सहारनपुर के विधानसभा नंबर 3 सहारनपुर नगर सीट पर मुख्य मुकाबला सपा और भाजपा उम्मीदवार में माना जा रहा है। सहारनपुर नगर वासी की सबसे ज्यादा पसंद रहे पूर्व मंत्री और सपा उम्मीदवार संजय गर्ग सबसे ज्यादा बार यहां से विधायक रहे हैं। वहीं उपचुनाव में विधायक बने राजीव गुंबर 2017 का चुनाव हारने के बाद एक बार फिर चुनावी मैदान में है और संजय गर्ग को हराने के मूड में है। माना जा रहा है इस सीट पर हार जीत का आंकड़ा बेहद नजदीकी हो सकता है।
सहारनपुर जनपद की विधानसभा नंबर 4 मे भी कम रोमांचक मुकाबला देखने को नहीं मिलेगा। इस सीट पर बसपा सुप्रीमो मायावती के प्रतिनिधि रह चुके और तीन बार विधायक रह चुके जगपाल इस बार हाथी का मोह छोड़कर भाजपा उम्मीदवार के रूप में मैदान में हैं तो वहीँ उनका मुकाबला इस बार समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिंह और सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव के चहेते कहे जाने वाले आशु मलिक से हैं और इसमें कोई दो राय नहीं कि इस बार देहात विधानसभा क्षेत्र में साइकिल जबरदस्त दौडी है।
बसपा सुप्रीमो मायावती की यह विधानसभा पहले हरोड़ा विधानसभा के नाम से जानी जाती थी। मायावती स्वयं यहां से चुनाव लड़ चुकी है। अब देखना यह होगा उनकी इस विधानसभा पर भाजपा का जीत का झंडा लहराता है या सपा की साइकिल दौड़ेगी।
सहारनपुर जनपद की विधानसभा नंबर पांच देवबंद विधानसभा में इस बार मुकाबला अलग ही नजर आ रहा है। देवबंद में भाजपा के बृजेश सिंह और सपा के कार्तिकेय राणा के बीच में सीधा मुकाबला दिखाई दे रहा है। देवबंद विधानसभा पर भाजपा का कब्जा है। इस बार ठाकुर बिरादरी का रुझान भाजपा के प्रति दिखाई दिया है तो वही सपा-भाजपा दोनों प्रत्याशियों का राजपूत समाज से होने के कारण वोटरों में जबरदस्त खिचाव नजर आया है।
गुर्जर समाज के वोटरों में भी प्रत्याशियों ने सीट के हिसाब से जबरदस्त सेंधमारी की है। ऐसे में कुंवर बृजेश सिंह जो कि पूर्व विधायक हैं तो वही कार्तिकेय राणा पूर्व मंत्री स्वर्गीय राजेंद्र राणा के पुत्र हैं और पहली बार विधानसभा चुनाव में उतरे हैं। भाजपा के लिए महत्वपूर्ण माने जाने वाली यह सीट भाजपा अपने पक्ष में रखने में सफल होती है या सपा की साइकिल का वर्चस्व कायम होगा यह मुकाबला देखने लायक होगा।
सहारनपुर जनपद की विधानसभा नंबर 6 रामपुर मनिहारान विधानसभा सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है। पश्चिम उत्तर प्रदेश में एक मात्र एक ऐसी सीट है जहां पर बसपा का उम्मीदवार पूरी तरह से मुकाबले में दिखाई दे रहा है और जीत के नजदीक भी है। इस सीट पर भाजपा का कब्जा है लेकिन एक बार फिर बसपा से रविंद्र महलों और भाजपा से देवेंद्र निम इस मुकाबले में आमने-सामने हैं। तो वही गठबंधन प्रत्याशी विवेक कांत भी जबरदस्त टक्कर दे रहे हैं जिसके चलते इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला नजर आ रहा है।
सहारनपुर जनपद की विधानसभा नंबर 7 गंगोह विधानसभा सीट पर भी त्रिकोणीय मुकाबला दिखाई दे रहा है। पूर्व मंत्री और मुस्लिम राजनीति के सर्वे सर्वा कहलाए जाने वाले स्वर्गीय काजी रशीद मसूद के राजनीतिक दावेदार होने का दावा करते हुए सपा के वरिष्ठ नेता इमरान मसूद के जुड़वा भाई नोमान मसूद बसपा उम्मीदवार के रूप में झंडाबदारी कर रहे हैं। तो वही राजनीति का पितामाह कहे जाने वाले स्वर्गीय चौधरी यशपाल सिंह के बेटे चौधरी इंद्रसेन सपा उम्मीदवार के रूप में राजनीतिक विरासत का दावा करते हुए अपनी जीत सुनिश्चित बता रहे हैं। वही इस सीट से विधायक रहे चौधरी कीरत सिंह अपनी जीत एक बार फिर सुनिश्चित मानकर चल रहे हैं। इस सीट पर गुज्जर समाज के वोटों के बंटवारे के साथ-साथ मुस्लिम वोट भी विधायक के चयन में अहम भूमिका निभाएंगे इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला देखा जा रहा है।
सहारनपुर जनपद की अधिकांश सीटों पर जहां सपा और भाजपा आमने-सामने की टक्कर यह तो वही रामपुर मनिहारान एक ऐसी सीट है जहां बसपा उम्मीदवार जबरदस्त मुकाबले में नजर आ रहे हैं। वैसे तो स्थिति 10 मार्च को साफ हो जाएगी की जीत का सेहरा किसके सिर होगा और फागुनी के रंग से कौन सराबोर होगा। 2017 में सात में से 4 सीटें भाजपा के खाते में थी और 2 सीटें कांग्रेस और 1 सीट सपा के खाते में थी। लेकिन इस बार सपा का ग्राफ जहां बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है तो वहीं कांग्रेस दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही है। वहीं इस बार भाजपा के लिए अपने चार का आंकड़ा बनाए रखना किसी चुनौती से कम नहीं है।