लखनऊ: बाहुबली-2 की पब्लिसिटी में बस एक लाइन बाहुबली को कट्प्पा ने क्यों मारा, दर्शकों को सिनेमा हॉल तक ले जाने के लिए काफी थी। हर तरफ चर्चा हो रही है कि बाहुबली-2 ने भारतीय सिनेमा में नये आयाम बना दिए हैं। बाहुबली-2 का बजट 250 करोड़ रुपये बताया जा रहा है। अभी कुछ दिनों पहले बैटमैन वर्सेज सुपरमैन फिल्म आयी थी, जिसका बजट 250 मिलियन डॉलर था जो 16 अरब रुपए के बराबर था जिसने तकरीबन 750 मिलियन डॉलर कमाए। पश्चिमी फिल्मों का उदाहरण इसलिए दे रही हूं क्योंकि जिसने 1959 की बेन-हर्र, 2000 की ग्लैडिएटर और 2004 की लार्डस् ऑफ द रिंग जैसी फिल्में देख रखी होगी वो इस बात से सहमत होंगे कि बाहुबली और बाहुबली-2 कई मायनों में अभी भी पश्चिमी फिल्मों की औसत से भी काफी पीछे है।
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भारतीय सिनेमा बाजार दुनिया का सबसे बड़ा सिनेमा बाजार बन कर उभरने वाला है। विश्व का कोई भी देश ऐसा नहीं है जो भारत में फिल्म रिलीज नहीं करना चाहता। भारतीय दर्शक मनोरंजन के इस सबसे बड़े साधन पर दिल खोल कर पैसा खर्च करते हैं, जिसका अंदाजा हम सलमान खान, आमिर खान और शाहरुख की फिल्मों में देख सकते हैं जो कि कमजोर स्क्रिप्ट एक्टिंग होने के बावजूद 100 करोड़ रुपये 3-4 दिन में कमा लेती है।
बाहुबली और बाहुबली-2 का कुल खर्चा करीब 450 करोड़ के आस-पास आया। अगर एक फिल्म के रूप में देखे तो भारतीय इतिहास में अब तक की सबसे महंगी फिल्म है, लेकिन मेरे विचार से नहीं लगता कि ये फिल्म भारतीय सिनेमा में एक मास्टर पीस बनेगी। इसके कई कारण है। जैसे....
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औसत से भी निचले दर्जे के ग्राफिक्स
*कहानी में हीरो को भगवान की तरह दिखा देना, जो कि हर हालात में हजारों लोगों को तो मार सकता है, लेकिन तलवार के एक वार से तुरंत मर भी सकता है।
*एक ऐसी राजमाता जो कि तेज-तर्रार, शक्तिशाली दिखायी गयी है , लेकिन सिर्फ एक नौकर के कहने पर दूर देश की लड़की को अपने बेटे भल्लाल देव के लिए चुन लेती है। इससे पहले वो सैकड़ों चित्र बाहुबली के लिए देख चुकी होती है। उसको बाहुबली और देवसेना के साथ होने के बाद समझ में क्यों नहीं आता कि भल्लाल देव ने इसी लड़की से शादी करने की जिद क्यों की है। यहां राजमाता एकदम मासूम सी दिखती है।
*कट्प्पा कम, महाभारत के भीष्म पितामह ज्यादा दिखे, जो न चाहते हुए भी गलत के साथ हैं और बाहुबली को मार देते हैं। राजमाता भाग जाती है। सबकुछ हो जाता है, लेकिन भल्लाल देव इतना मूर्ख होता है कि वो कटप्पा को कुछ नहीं करता।
*इसके अलावा फिल्म को खत्म करने की इतनी जल्दबाजी है कि सारे युद्ध में कुछ नहीं होता, सिर्फ दो लोगों के मल्लयुद्ध से ही माहिष्मती का भाग्य तय हो जाता है।
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महाभारत की याद दिलाता है बाहुबली
बाहुबली-2 की कहानी पिछली ही कहानी के चरित्रों को आगे बढ़ाती है, लेकिन फिल्म को महाभारत के थीम के साथ में रख कर मनुष्य को असीम ताकत से लबरेज दिखा दिया जाता है। अभी हाल में आयी फिल्म फास्ट एंड फ्यूरियस-8 को अगर आपने देखा होगा तो फिल्म के हीरो वेन डीजल महाबाहुबली या फिर किसी देवता के अवतार से कम नहीं दिखे, जो किसी के साथ, कहीं भी, कुछ भी, कैसे भी कर सकते हैं और जब आप फिल्म के मुख्य बाहुबली है तो फिर जिन्होंने फिल्म देखी है वो समझ सकते हैं कि हीरो कुछ भी कर सकता है। एक औसत वीडियो गेम की स्टेज की तरह ही बाहुबली, फिल्म में भी सारी बाधाएं पार कर लेता है।
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भारतीय दर्शक बाहुबली से टेक्निकली कई अच्छी फिल्में देख चुके होंगे।लेकिन इस फिल्म को व्यवसायिक रुप से रिकॉर्ड तोड़ सफलता मिल रही है, लेकिन डर है कि कहीं ऐसी फिल्म को ही ध्यान में रख कर आगे फिल्में न बनाये जाई। क्योंकि फिल्म प्रोडूयसर आज भी व्यावसायिक सफल होने वाली फिल्म पर ही इन्वेसटमेंट करना पंसद करते हैं। एक बात ये भी हैं कि बाहुबली फिल्म से जुड़े लोगों को फिल्म के सफल होने की निश्चित गारंटी रही होगी, फिर भी टेक्निक्ली उन्होंने फिल्म से कोई जोखिम नहीं लेते हुए उसको दर्शकों के सामने पहले ही की तरह रखा।
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सारांश
ये भी जाहिर है कि भविष्य में भारतीय सिनेमा उत्कृष्टता की ओर बढ़ेगा, क्योंकि दर्शक यहां की फिल्मों और बाहर की फिल्मों में भेद कर लेते हैं और खुद को समझा भी लेते है कि ये भारतीय फिल्म हैं, इसलिए ऐसी है। मुझे नहीं लगता ही भविष्य में बाहुबली के बाद की फिल्मों को दर्शक इसी तरह से लेंगे। ये पहली और आखिरी फिल्म की तरह होगी जिसने मानक तो बना दिए हैं लेकिन इससे बड़े मानक अब दर्शक तय कर लेंगे।