Mohammed Rafi : मोहम्मद रफी का ये गीत उनके मृत्यु के 6 साल बाद रिलीज हुआ और सभी गानों पर भारी पड़ा, आइए जानते हैं इस गीत के बारे में

महान गायक मोहम्मद रफी ने हिंदी सिनेमा को एक से बढ़कर एक गीत दिए हैं। उनके कुछ गाने ऐसे भी हैं, जो उनके स्वर्गवास के बाद रिलीज हुए और पूरी दुनिया में छा गए।

Written By :  Priya Singh
Update:2021-12-12 13:31 IST

फोटो साभार : सोशल मीडिया

Legend Singer Mohammed Rafi : मोहम्मद रफी (Mohammed Rafi) के गीतों में वो क्षमता है, जो सुननेवाले को उस गाने का अहम किरदार बना देता है। उनके गीतों को सुननेवाला हर इंसान खुद को उस गाने से जोड़ पाता है। आज भी जब 'ये रेशमी जुल्फें, ये शरबती आंखें' (Yeh Reshmi Zulfein) गाना कहीं बजता है, तो इसे सुनने वाला पुरुष अपनी प्रियता के बारे में सोचने लगता है। वहीं अगर इसे कोई महिला सुन रही होती है, तो वो अपेक्षा करती है कि उसकी जुल्फों और आंखों के बारे में कोई ऐसी ही बात कहे। गाना 'ये चांद - सा रौशन चेहरा, जुल्फों का रंग सुनहरा' (Yeh Chand Sa Raushan Chehra) समाज में पुरुषों को अपनी प्रियता की तारीफ करने का एक माध्यम बनता है। वहीं गाना 'बदन पर सितारे लपेटे हुए' की बात करें, तो यह वो रोमांटिक गाना है जो वर्तमान में सभी को झुमने पर मजबूर कर देता है।

रफी साहब के गीतों में दुनिया की सबसे नैसर्गिक प्रक्रिया 'प्रेम' की झलक मिलती है

मोहम्मद रफी का गाना 'झिलमिल सितारों का आंगन होगा' (Jhilmil sitaron ka aangan hoga) श्रोताओं को एक अच्छे जीवन और घर की कल्पना के भाव से भर देता है। यह वो गाना है,जिसे हर प्रेमी युगल अपने विवाहित जीवन के शुरुआत में सुनता है और कल्पना करता है कि वो अपने जीवनसाथी के साथ एक ऐसा ही सुंदर घर बनाएगा। दुनिया के बेहतरीन गायकों के श्रेणी में आने वाले गायक मोहम्मद रफी का गाना ' आने से उसके आए बहार, (Aane Se Uske Aaye Bahaar) जाने से उसके जाए बहार' में उन्होंने प्रेमिका के किरदार को इस प्रकार से प्रकृति से जोड़ा है कि हर कोई प्रकृति में अपनी प्रमिका को पाता है। मोहम्मद रफी के गीतों में दुनिया की सबसे नैसर्गिक प्रक्रिया 'प्रेम' की झलक मिलती है।

1986 में आई फिल्म 'कांच की दिवार ' में रफी साहब का गीत

किसी को नहीं मालूम था कि इतने खूबसूरत गीतों को लिखने वाला इंसान एक दिन अचानक इस दुनिया को अलविदा कह देगा। 31 जुलाई, 1980 को रफी साहब ने अतिम सांस ली और वो पंच तत्व में विलीन हो गएं। उस दौरान रफी साहब के कुछ ऐसे भी गाने थें, जो रिलीज होते - होते रह गए। इन गीतों को उनके स्वर्गवास के वर्षों बाद रिलीज किया गया। वर्ष 1986 में एक फिल्म 'कांच की दिवार ' (Kaanch Ki Deewar) आई थी। एम एन यासीन के निर्देशन में बनी इस फिल्म में संजीव कुमार, स्मिता पाटिल, शक्ति कपूर, अमरीश पुरी, ओम प्रकाश, जगदीप इत्यादी महत्तवपूर्ण भूमिका में नजर आए थें। इस फिल्म में कुल 6 गीत थें। उन्हीं मे से एक गीत को रफी साहब ने गाया था।

रफी साहब के स्वर्गवास के 6 वर्ष बाद रिलीज हुआ उनका गाना

इस गीत को गाने में उनका साथ आशा भोसले जी ने दिया था। गीत के बोल थें 'बातों में न टालो जी।' इस गीत को लिखा था श्यामलाल बाबू राय,जिन्हें पेशेवर रुप से इन्दीवर के नाम से जाना जाता है। यह फिल्म 1979 - 80 के बीच बनी थी, लेकिन किसी वजह से यह उस वक्त रिलीज नहीं हो पाई और उसी दौरान रफी साहब चल बसें। अंतत: रफी साहब के स्वर्गवास के 6 वर्ष बाद 1986 में यह फिल्म रिलीज हुई। फिल्म के गाना 'बातों में न टालो जी'(Baaton Mein Na Talo Ji) को दर्शकों ने खूब पसंद किया। बता दें कि इस फिल्म के रिलीज होने से 2 महीने पहले ही अभिनेता संजीव कपूर का भी निधन हो गया था, जिसके बाद इसे बनाने वाले फिल्म निर्माता का हाल बहुत बुरा हो गया था। वो शोक ग्रसित हो गए थें।

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