Naseeruddin Shah: एक ऐसी शख्सियत जिसपर हर किरदार बैठता है फिट
Naseeruddin Shah birthday special: नसीरुद्दीन शाह एक असाधारण अभिनेता और स्टार हैं और उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि उनकी बहुमुखी प्रतिभा है जो फिल्म निर्माण के दायरे से परे आकर्षक है।
Naseeruddin Shah Birthday Special: स्वीडिश फिल्म-निर्माता इंगमार बर्गमैन ने एक बार कहा था, 'कला का कोई भी रूप सामान्य चेतना से परे नहीं जाता है, जैसा कि फिल्म करती है, वह सीधे हमारी भावनाओं और आत्मा की गहराई में जाती हैं। आलोचकों में से तमाम लोगों ने नसीरुद्दीन शाह (Naseeruddin Shah) को कलात्मकता की इसी कसौटी पर देखा है। नसीरुद्दीन शाह एक असाधारण अभिनेता और स्टार हैं और उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि उनकी बहुमुखी प्रतिभा है जो फिल्म निर्माण के दायरे से परे आकर्षक है।
एक फिल्म में, वह हमारे मानस को इस कदर झकझोर देते हैं कि लगता है वह अपनी परेशान करने वाली खोजों से आपके दिल को चीर देगा वहीं दूसरी फिल्म में वह उन्हीं आदर्शों का उपहास करते हैं और तीसरी में, वह बिल्कुल अलग अंदाज में दिखायी देते हैं। कह सकते हैं कि उनके चेहरे की हर रेखा एक कहानी है, उनकी हर मुस्कान एक अध्याय लेकर आती है। देश के सर्वश्रेष्ठ अभिनेताओं में से एक नसीर के जादू और स्टाइल की प्रशंसा करने का कोई अंत नहीं है। नसीरुद्दीन शाह 20 जुलाई को अपने जन्मदिन का जश्न मनाएंगे। लेकिन सबसे खास बात यह है कि वह उत्तर प्रदेश के हैं उनका जन्म बाराबंकी में हुआ था जहां उनका परिवार मेरठ से आकर बसा था। उनकी स्कूली शिक्षा अजमेर और नैनीताल में हुई और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से उन्होंने स्नातक किया। उनके भाई जमीरउददीन शाह सेना में लेफ्टिनेंट जनरल और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के 38वें कुलपति रहे।
इस अभिनेता की पहली पत्नी परवीन मुराद इनसे 15 साल बड़ी थीं। अब वह इस संसार में नहीं है। इनकी दूसरी शादी रत्ना पाठक शाह से 1982 में हुई। नसीरुद्दीन शाह ने हालीवुड और पाकिस्तानी फिल्मों में भी काम किया है। उन्होने तमाम नाटकों में भी काम किया है।
इस फिल्म से की करियर की शुरुआत
1975 में फिल्म निशांत से अपने करियर की शुरुआत करने वाले नसीर ने श्याम बेनेगल के सामंती अत्याचार के परेशान करने वाले दृश्यों में अपनी एक अलग छाप छोड़ी। तो जुनून में उनका अलग ही अंदाज दिखा। जिसमें, 'हम दिल्ली हार गए है' उनकी सबसे यादगार लाइन बनी। आक्रोश के असंतुष्ट वकील को कौन भूल सकता है। 1980 के दशक में एक विधवा और एक दिव्यांग प्रधानाचार्य के प्रेम की कहानी उनके अभिनय की ऊंचाइयों में मील का पत्थर है। कोई एक नहीं ऐस अनगिनत फिलमें हैं जैसे अलबर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है, जाने भी दो यारों, मासूम, मंडी, पार, मोहन जोशी हाजिर हो, मिर्च मसाला, जलवा, इजाजत, मिर्जा गालिब, पेस्टनजी, हीरो हीरालाल, बाम्बे ब्वायज, मकबूल, ए वेडनसडे, फिराक, जाने तू या जाने ना, इश्किंयां, द डर्टी पिक्चर, फाइंडिंग फेन्नी, डेढ़ इश्कियां आदि अपनी हर फिल्म में वह एक अलग अंदाज में अलग छाप छोड़ते नजर आते हैं।
जीते कई पुरस्कार
उन्होंने अपने करियर में तीन राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, तीन फिल्मफेयर पुरस्कार और वेनिस फिल्म समारोह में एक पुरस्कार सहित कई पुरस्कार जीते हैं। भारतीय सिनेमा में उनके योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें पद्म श्री और पद्म भूषण पुरस्कारों से सम्मानित किया है।