Satyajeet Ray: पद्म भूषण से लेकर ऑस्कर अवार्ड तक से थे सम्मानित, ऐसा था सत्यजीत रे का व्यक्तित्व

आज के दिन सन् 1921 में पद्म भूषण, पद्म विभूषण, भारत रत्न, और ऑस्कर अवॉर्ड जैसे अवार्डों से सुशोभित निर्माता, निर्देशक और लेखक Satyajit Ray का जन्म हुआ था।

Published By :  Rakesh Mishra
Update:2022-05-02 10:01 IST

Satyajeet Ray (Image Credit-Social Media)

Satyajeet Ray Life Journey: आज का दिन भारतीय इतिहास और फिल्म जगत के लिए बेहद खास है। आज ही के दिन सन् 1921 में पद्म भूषण, पद्म विभूषण, भारत रत्न, और ऑस्कर अवॉर्ड जैसे अवार्डों से सुशोभित निर्माता, निर्देशक और लेखक सत्यजीत रे (Satyajit Ray) का जन्म हुआ था।

आज 'सत्यजीत रे' की 101वीं पुण्यतिथि है। अगर बात आर्ट फिल्म्पं की आती है तो सभी के ज़ेहन में सबसे पहले जो नाम आता है वो नाम है सत्यजीत रे। साथ ही फिल्म जगत में दादा साहब फाल्के के बाद अगर कोई नाम सबसे ज़्यादा बड़े चेहरे के रूप में माना जाता है तो वो है सत्यजीत रे। सत्यजीत रे ने भारतीय सिनेमा को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। इतना ही नहीं उन्होंने भारतीय सिनेमा का परचम विदेश में भी बुलंद किया है। बहुत कम लोग जानते हैं कि सत्यजीत रे को पद्मश्री से लेकर भारत रत्न और ऑस्कर अवॉर्ड तक सम्मानित किया जा चुका है। उनका भारतीय सिनेमा को योगदान ऐसे आंका जा सकता है कि उन्होने एक या दो नहीं बल्कि 32 अलग-अलग पुरुस्कारों से सम्मानित किया गया था। उन्हें कई तरह के सभी सर्वोच्च सम्मान और कई सम्मान से भी उन्हें नवाज़ा गया। साथ ही 30 मार्च 1992 को 'ऑनररी लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड' से भी सम्मानित किया गया था। कहा जाता है कि जब सत्यजीत रे को 'ऑनररी लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड' दिया गया था तब वो काफी बीमार थे। इसलिए ऑस्कर से जुड़े पदाधिकारी उन्हें कोलकाता अवॉर्ड देने आए थे।

सत्यजित रे का जन्म कलकत्ता में 2 मई 1921 को हुआ था। इनके पिता का नाम सुकुमार राय था और माता का नाम सुप्रभा राय था। सत्यजीत रे के पिता का निधन तब हुआ था जब सत्यजित मात्र 3 साल के थे। इसके बाद उनकी माँ ने काफी संघर्षों के साथ अपने भाई के घर पर रहकर उन्हें पाला। उनकी शिक्षा की बात करें तो उन्होंने शुरूआती तौर पर घर पर ही शिक्षा ली इसके बाद आठ साल की आयु में उन्हें कलकत्ता के बालीगंज के सरकारी स्कूल में भेजा गया। इसके बाद उन्होंने हाईस्कूल की ही शिक्षा पूर्ण की।

सत्यजित रे ने ग्रेजुएशन के बाद ये तय कर लिया था कि वो आगे की शिक्षा नहीं ग्रहण करेंगे। लेकिन माँ की ज़िद ने उन्हें चित्रकारी की शिक्षा लेने के लिए शांति निकेतन में दाखिला करा दिया। इस दौरान उनका झुकाव संगीत की और हुआ। और वो ग्रामोफ़ोन पर गाने सुनने लगे। उन्हें पाश्चात्य फिल्मों और संगीत काफी पसंद था। उन्होंने हॉलीवुड फिल्मों को देखना और समझना शुरू कर दिया। उन्हें हॉलीवुड का आर्ट काफी पसंद आने लगा। उन्होंने फिल्म निर्देशन की बारीकियों को समझा और सीखा। इसके बाद सत्यजित रे ने आखिरकार सन 1952 में फिल्म को बनाने का मन बना लिया। उन्होंने विभूतिभूषण बनर्जी के उपन्यास "पथेर पांचाली" को लिया। साथ ही आठ लोगो की एक टीम बनायीं। लेकिन इसमें उन्हें कई कठनाई आई पहले तो टीम में सभी नए थे और जानकार नहीं थे साथ ही पैसों की कमी ने इस फिल्म को रोक दिया। इसके बाद 3 साल तक इसपर कोई काम नहीं हो सका और अंत में पश्चिमी बंगाल सरकार की वित्तीय सहायता से इस फिल्म को पूरा किया जा सका। साथ ही इस फिल्म ने अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर काफी नाम भी कमाया।

उन्होंने ऐसी फिल्में बनाई जिनका परचम भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में गूंजा। सत्यजित रे को ह्रदय रोग था। जिसके कारण 23 अप्रैल 1992 को उनका दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। जिसने हिंदी फिल्म जगत में एक रिक्त स्थान सदा के लिए छोड़ दिया।उनकी महान फिल्मों में शामिल है अपू ट्रायोलॉजी,महानगर,चारूलता,दयामोई,आगंतुक,शतरंज के खिलाडी।

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