Ganesh Chaturthi 2021: क्या आप करते हैं भगवान गणेश के सही मूर्ति की पूजा? जानें कैसी हो प्रतिमा  

Ganesh chaturthi 2021: भगवान गणेश की चारों भुजाओं को सर्वव्यापकता का प्रतीक माना गया है...

Newstrack :  Network
Published By :  Ragini Sinha
Update:2021-09-10 16:41 IST

भगवान गणेश के मूर्ति की पूजा  (Social media)

Ganesh Chaturthi 2021 : भगवान गणेश को आदिदेव भी कहा जाता है। इन्होंने हर युग में अलग-अलग अवतार लिया और दुष्टों का संहार किया। इनकी शारीरिक संरचना अन्य देवताओं से विशिष्ट है। शिवमानस पूजा में भगवान गणेश को 'प्रणव' अर्थात ओम (ॐ) कहा गया है। इस एक अक्षर में ही गणपति की संरचना का वर्णन है। ॐ में ऊपर वाला भाग भगवान श्री गणेश का मस्तक, नीचे का भाग उदर और चंद्रबिंदु वाला हिस्सा लड्डू और मात्रा सूंड है।


भगवान गणेश की चारों भुजाओं को सर्वव्यापकता का प्रतीक माना गया है। गणपति लंबोदर हैं। किंवदंती है कि इनके उदर में ही समस्त सृष्टि विचरन करती है। महादेव पुत्र के बड़े कान अधिक ग्राह्यशक्ति को दर्शाती है। साथ ही उनकी छोटी आंखें सूक्ष्म और तीक्ष्ण दृष्टि की सूचक हैं। इसके अलावा उनकी लंबी सूंड महा बुद्धि का प्रतीक है।

शास्त्रों में जैसा वर्णन, वैसी खरीदें मूर्ति  

मान्यता है कि गजानन की ऐसी मूर्ति घर लानी चाहिए जो शास्त्रों के अनुरूप हो। अर्थात ग्रंथों में जैसा गणेश के स्वरूप का वर्णन किया गया है, मूर्ति भी वैसी ही होनी चाहिए। ध्यान देने की बात है कि गणेश जी की मूर्ति में जनेऊ, सूंड, शस्त्र, वाहन और हाथों की संख्या तथा आकृति आदि के सही दिशा में होने की तरफ मुख्य ध्यान देना चाहिए। अगर कोई मूर्ति इन बातों से मेल नहीं खाती हो तो उसे घर तक लाने से बचना चाहिए। 


बाईं तरफ हो गणेशजी की सूंड

गणेश जी की मूर्ति खरीदते वक्त सबसे पहले आपकी नजर उनकी सूंड की तरफ जाना चाहिए। गणेश प्रतिमा में सूंड हमेशा बायीं तरफ होनी चाहिए। ऐसी प्रतिमा को ही वक्रतुंड माना जाता है। दायीं तरफ मुड़ी सूंड वाली मूर्ति की पूजा से मनोकामना सिद्धी में देर लगती है। 

प्लास्टर ऑफ पेरिस वाली मूर्तियों से बचें 

बाजार में प्लास्टर ऑफ पेरिस वाली मूर्तियों की भरमार रहती है। अक्सर आप जानकारी के आभाव में उन्हीं मूर्तियों को अपने घर ले आते हैं। लेकिन ऐसा करने से बचना चाहिए। आजकल बाजार में केमिकल्स युक्त मूर्तियों भी मौजूद है। भक्तों को ऐसी मूर्ति की पूजा नहीं करनी चाहिए। 


ऐसी मूर्तियां लाएंगी धन-धान्य   

अब आपके मन में यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर गणपति की मूर्ति हो कैसी। मूर्ति का चयन करते वक्त ध्यान दें कि अगर सफेद मदार की जड़ से बनी गणेश प्रतिमा मिले तो उसे तुरंत घर ले आएं। ऐसी मूर्ति की पूजा करना बहुत शुभ माना गया है। साथ ही, धातुओं जैसे- सोना, चांदी या तांबे की मूर्तियों की भी पूजा की जा सकती है। बैठे हुए गणेश प्रतिमा को ही शुभ माना गया है। शास्त्रों में भगवान गणेश का उल्लेख धूम्रवर्ण के रूप में है। इसका मतलब है कि यदि गणेश जी की मूर्ति रंग धुएं के समान हो तो उसकी स्थापना जरूर करनी चाहिए।

इन बातों का भी रखें ख्याल 

गजानन महाराज को भालचंद्र भी कहा जाता है। भालचंद्र का अर्थ होता है जिसके ललाट पर चांद हो। अर्थात गणेश जी की उस मूर्ति की पूजा करनी चाहिए जिसके ललाट पर चंद्रमा बना हो। साथ ही यह भी ध्यान देने योग्य है कि भगवान के एक हाथ में पाश और दूसरे में अंकुश हों। शास्त्रों में गणेश जी के ऐसे रूप का ही वर्णन है। ऐसी मूर्तियों की पूजा से आपके ऊपर धन-धान्य और ईश्वर की कृपा बनी रहेगी। 

मोदक के विशेष अर्थ को जानें 

शास्त्रों की मानें तो गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए मोदक का भोग लगाना चाहिए। मोदक गणेश जी को बेहद प्रिय है। गणेश के मोदक प्रेम को भी उनकी बुद्धिमानी का परिचय ही माना गया है। मोदक खाते वक्त जिस प्रकार उसका आनंद धीरे-धीरे आता है।.उदर में जाने पर आनंद दोगुना हो जाता है ठीक वैसे ही भगवान के आशीर्वाद से ज्ञानमोदक आरंभ में थोड़ा ज्ञान देता प्रतीत होता है परंतु अभ्यास से उसके अथाह को समझा जा सकता है। 

मूषक ही क्यों है सवारी 

गणेश की सवारी मूषक है। सहज ये सवाल उठना लाजिमी है कि जब सृष्टि में इतने जीव हैं तो इन्होने मूषक को ही अपनी सवारी के तौर पर क्यों चुना। इसके पीछे तर्क यह हो सकता है कि चूहे को धरती पर निकृष्ट जीव के नजरिए से देखा जाता है। चूहा या मूषक किसी भी वस्तु को बिना सोचे कुतर देता है। वैसे ही जैसे भगवान गणेश अपने तर्कों से किसी बात को करते रहे हैं। साथ ही उनकी सवारी के रूप में मूषक के होने से भक्त उसे भी सम्मान देंगे।

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