Gujarat Assembly Election: ढाई दशक से ज्यादा है BJP का गुजरात पर राज, अब भी है बंगाल में CPM का रिकॉर्ड

Gujarat Assembly Election 2022: बीजेपी अगर इस बार गुजरात चुनाव जीत जाती है तो वो एक राज्य में लगातार 32 सालों तक सरकार चलाने वाली पार्टी बन जाएगी। लेकिन, एक अन्य राज्य भी है जहां एक पार्टी का 34 साल तक शासन रहा।

Written By :  aman
Update: 2022-11-03 08:48 GMT

Gujarat Election 2022 (प्रतीकात्मक चित्र)

Gujarat Assembly Election 2022: गुजरात विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो गया है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) 5 वर्ष के एक और कार्यकाल के लिए सभी गांठें बांधने में जुटी है। बीजेपी के साथ सभी पार्टियां अपने-अपने दल के लिए समीकरण बिठाने में जुटी है। लेकिन, इस बार राज्य की सत्ता में काबिज बीजेपी की सीधी टक्कर आम आदमी पार्टी (AAP) से दिख रही है। कांग्रेस हाशिये पर नजर आ रही। बीजेपी के लिए गुजरात चुनाव इसलिए भी अहम है क्योंकि वो 27 साल से वहां सरकार चला रही है। 

गुजरात विधानसभा चुनाव के मद्देनजर बीजेपी की चुनौतियां अधिक हैं। बीजेपी (BJP) राज्य में 1995 से सत्ता में है। केशुभाई पटेल के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के विकास के लिए कई कदम उठाए। जिसका उन्हें फायदा भी मिला। नरेंद्र मोदी ने तो 'गुजरात मॉडल' को खूब भुनाया। साल 2014 में जब वो केंद्र की राजनीति में आए तब भी गुजरात और 'गुजरात मॉडल' को ही जनता के समक्ष रखा। अगर, बीजेपी इस बार भी गुजरात चुनाव जीतकर सरकार बना लेती है तो वह लगातार 32 सालों तक एक राज्य में सरकार चलाने वाली पार्टी बन जाएगी। लेकिन, क्या आपको पता है, कि देश में एक पार्टी और राज्य ऐसा भी है जो 34 वर्षों तक लगातार सरकार चला चुकी है।  


गुजरात बीजेपी का 'अपराजेय किला'

गुजरात में बीजेपी ने पहले-पहल 1990 में जनता दल के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। ये वही दौर था जब देश में राम मंदिर आंदोलन चरम पर था। इस आंदोलन की वजह से बीजेपी-जनता दल गठबंधन अधिक समय नहीं चल पाया और टूट गया। इसके बाद, बीजेपी ने 1995 के गुजरात विधानसभा चुनाव में जबरदस्त वापसी की। फिर, गुजरात में बीजेपी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। नरेंद्र मोदी के लंबे शासन के बाद गुजरात एक प्रकार से बीजेपी का 'अपराजेय किला' बन गया। बीजेपी को राज्य की सत्ता से बेदखल करने की कांग्रेस पार्टी की सारी कोशिशें नाकाम हो गईं। साल 2022 में एक बार फिर बीजेपी अपने उसी किले को बचाने की कवायद में जुटी है। 


बंगाल में CPM की बादशाहत 

कमोबेश ऐसी ही स्थिति पश्चिम बंगाल में आंदोलन, अस्थिरता और जन संघर्ष से उभरी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) का रहा। CPM ने पश्चिम बंगाल में 34 वर्षों तक लगातार शासन किया। पश्चिम बंगाल में 1977 में कम्युनिस्ट पार्टी की शुरू हुई पारी पर 2011 में विराम लगा। लगातार 34 सालों के लंबे कालखंड में बंगाल में एक पार्टी सिरमौर बनकर रही। इस दौरान देश में कई परिवर्तन हुए, बंगाल उसका साक्षी भी बना, मगर CPI का विकल्प नहीं मिला। इसमें एक लंबा वो दौरा भी था जब केंद्र में कांग्रेस की बादशाहत थी। इंदिरा और राजीव का कार्यकाल था, लेकिन बंगाल एक अलग राह पर चल चुकी थी। 


हिंदुत्व और मंडल-कमंडल भी नहीं डिगा पाया CPM की सत्ता

बंगाल में कम्युनिस्ट पार्टी के इस्त्ने बड़े शासनकाल में 23 वर्षों तक ज्योति बसु मुख्यमंत्री के रूप में रहे। कहते हैं 1977 में ज्योति बसु ने बंगाल में लेफ्ट की वो नींव डाली जिसे 34 वर्षों तक कोई हिला नहीं पाया। हालांकि, इस लम्बे दौर में देश में हिन्दुत्व की राजनीति का उभार हुआ। अति पिछड़े और दलित की राजनीति हुई। धर्म और जाति के कलेवर में डूबी पार्टियों की लामबंदी हुई। मंडल-कमंडल की राजनीति हुई। लेकिन, बंगाल का राजनीतिक नेतृत्व इन तमाम उथल-पुथल और समीकरणों से ध्वस्त करता निर्बाध आगे बढ़ता रहा। 

वहीं, बीते 27 सालों से गुजरात की सत्ता में काबिज बीजेपी के लिए भी पिछला विधानसभा चुनाव बेहद खास नहीं रहा। परिणामों पर नजर डालें तो पाएंगे कि इस दौरान बीजेपी का प्रदर्शन ऊपर-नीचे होता रहा। 2017 का चुनाव एकमात्र ऐसा था जब बीजेपी दहाई अंकों में सिमटकर रह गई थी। इसी वजह से बीजेपी आलाकमान यहां पूरी ताकत लगाए हुए है। 

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