Gujarat Assembly Election 2022: मोदी ने क्यों चुना मोढेरा गांव ? वीडियो में देखें यहां का पूरा इतिहास

Gujarat Assembly Election 2022: जब भी कोई सियासत दां किसी भी राज्य में जाता है तो उसका कोई न कोई एक अलग मतलब भी होता है।

Written By :  Yogesh Mishra
Written By :  Yogesh Mishra
Update:2022-11-15 06:21 IST

Gujarat Assembly Election 2022: इन दिनों गुजरात समेत कई राज्यों में चुनाव है। जब भी कोई सियासत दां किसी भी राज्य में जाता है तो उसका कोई न कोई एक अलग मतलब भी होता है। बीते दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मोढेरा गाँव में गये। उन्होंने उस गाँव को पूरी तरह से सौर्य ऊर्जा से संचालित गाँव के रूप में देश को, देश की जनता को अर्पित किया।

ऐसे में हमें यह समझना ज़रूरी हो जाता है कि आख़िर क्या वजह कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मोढेरा गाँव को ही चुना। मोढेरा गाँव की ऐसी क्या विशेषता है। यह विशेषता ऐतिहासिक हैं। या अक्षांश-देशांतर रेखाओं को लेकर के कुछ ऐसा विशेषता है कि सूर्य की किरणें यहाँ ज़्यादा से ज़्यादा समय तक होंगी। हम आज इसी पर चर्चा करेंगे।

सूर्य मंदिर

उड़ीसा में कोणार्क के सूर्य मंदिर के बारे में सब लोग जानते होंगे। लेकिन गुजरात के सूर्य मंदिर के बारे में शायद बहुत कम लोग जानते हों। गुजरात के सूर्य मंदिर से मोढेरा गाँव का रिश्ता है। अहमदाबाद से 100 किलोमीटर दूर मेहसाणा जिले के मोढेरा गांव में शानदार और विशाल सूर्य मंदिर है, जो पुष्पावती नदी के किनारे स्थित है। इसे सोलंकी अथवा चालुक्य वंश के राजा भीम प्रथम ने 1026-27 में बनवाया था।

मंदिर परिसर को 3 प्रमुख घटकों में विभाजित किया गया है : गुडमंडप (तीर्थ हॉल), सभामंडप (असेंबली हॉल), और कुंड (जलाशय)। कुंड की सीढ़ियों पर 108 मंदिर बने हुए हैं। कुंड सभामंडप की ओर जाता है।

जिसका उपयोग धार्मिक सभाओं के आयोजन के लिए किया जाता था। यह अपने 52 उत्कृष्ट स्तंभों के लिए प्रसिद्ध है, जिस पर छत टिकी हुई है। 52 स्तंभों का रिश्ता एक वर्ष के 52 सप्ताहों से है। इन स्तंभों पर रामायण, महाभारत काल के तमाम चित्र अंकित हैं। कृष्ण लीलाएँ भी अंकित की गई हैं।

मंदिर की वास्तुकला बहुत जटिल और विस्तृत है। यह मारू-चालुक्य वास्तुकला की शैली को दर्शाती है। वर्तमान में मंदिर में सभी गतिविधियों को बंद कर दिया गया है, क्योंकि अब यह राष्ट्रीय स्तर का एक संरक्षित स्मारक बन गया है। सूर्य मंदिर स्वर्ण युग की उत्कृष्ट शिल्प कौशल का एक अनुकरणीय स्थल है।

दूसरी विशेषता इस गाँव की है मोढेश्वरी माता का मंदिर। इस गाँव में मोढेश्वरी माता के मंदिर को देवी पार्वती का अवतार कहा जाता है। वह मोध समुदाय की कुलदेवी हैं। मंदिर की किंवदंती है कि एक राक्षस इस क्षेत्र में सब कुछ नष्ट कर रहा था।

उससे भयभीत संत देवी पार्वती के पास गए। देवी अन्याय सुनकर क्रोधित हो गईं। उनके मुंह से आग निकलनी शुरू हो गई जिससे उनके अवतार मोढेश्वरी देवी का जन्म हुआ। मंदिर में देवी की 18 भुजाएँ है। हर भुजा में कोई न कोई हथियार है।

इस गाँव का रिश्ता भगवान राम से जुड़ा हुआ भी लोग यहाँ के बताते है। गाँव के पास का क्षेत्र पहले धर्मरण्य के नाम से जाना जाता था। गाँव की लोककथाओं में कहा गया है कि भगवान राम, ब्रह्महत्या से खुद को शुद्ध करने के लिए ऋषि वशिष्ठ की सलाह पर धर्मरायण आए थे। भगवान राम ने धर्मरायण के मोढेरक नामक गाँव में निवास किया था। यहाँ एक यज्ञ किया था, बाद में इसका नाम सीतापुर रखा गया। यह गांव कालांतर में अपने नाम मोढेरा के नाम से जाना जाने लगा।

इस गाँव के सूर्य मंदिर का इतिहास भी कम रोचक नहीं है। सोलंकी को सूर्यवंशी, या सूर्य देव के वंशज माना जाता था। इसलिए यह मंदिर उनके वंश के कुलदेवता को समर्पित है। मोढेरा का सूर्य मंदिर दक्षिण भारत में स्थित चोल मंदिरों और उत्तर भारत के चंदेला मंदिरों के समकालीन है।

यह एक ऐसे समय में बनाया गया था जब भारत में मंदिर की वास्तुकला अपने चरम पर थी। सही मायने में मोढेरा सूर्य मंदिर मध्यकालीन भारत के मंदिर वास्तुकला के बेहतरीन उदाहरणों में से एक है। सूर्य मंदिर मोढेरा का उल्लेख स्कंद पुराण और ब्रह्म पुराण के प्राचीन हिंदू ग्रंथों में मिलता है।

मंदिर की पिछली दीवार पर एक उल्टा शिलालेख है जिस पर लिखा है "विक्रम संवत 1083"। यह मोटे तौर पर 1026-27 की अवधि को दर्शाता है। मुख्य गर्भगृह के अंदर, वह स्थान खाली है जहाँ सूर्य देवता हुआ करते थे। ऐसा माना जाता है कि भगवान सूर्य की प्रतिमा शुद्ध सोने से बनी थी। और इसी वजह से इस पर आक्रमणकारियों की नज़र पड़ी।

7 घोड़ों के साथ वह एक रथ पर बैठे कर रथ को चला रहे थे, उनके सारथी को चित्रित किया गया था। मूर्ति गर्भगृह या मुख्य गर्भगृह के अंदर एक जगह स्थापित थी। यह भी कहा जाता है कि मूर्ति हीरे से जड़ी थी, जो पूरे मंदिर को रोशन कर सकती थी। मूर्ति के नीचे एक कक्ष था जो हीरे जवाहरातों और सोने से भरा हुआ था।

अब गर्भगृह के अंदर सिर्फ एक गड्ढा है। यह मंदिर से लूट की कहानी को दर्शाता है। मंदिर पर सबसे पहले महमूद गजनी ने हमला किया। राजा भीमदेव इस हमले को रोकने में असफल रहे । इस आक्रमण और लूट के बाद मंदिर को फिर से बनाया गया।

बाद में अलाउद्दीन खिलजी द्वारा सूर्य मंदिर पर हमला किया गया और सूर्य मंदिर को लूटा गया। स्थानीय किंवदंती यह भी है कि इस हमले के समय कुछ स्थानीय ब्राह्मणों ने मंदिर की मूर्ति को अपने साथ छुपा कर रख लिया। ताकि इस मूर्ति को बचाया जा सके, लेकिन अब मूर्ति का कुछ भी अता पता नहीं है।

ऐसे में दोनों बातें चलती हैं ऐसी भी मान्यता है कि मंदिर से एक भूमिगत रास्ता सोलंकी की राजधानी पाटन तक जाता है। मुख्य सूर्य मंदिर ऐसे बेस पर बनाया गया है, जो एक उल्टे कमल की तरह दिखता है। कमल की पंखुड़ियों के ऊपर हाथियों से बना एक पैनल है। इसे गज-पेटिका के नाम से जाना जाता है। गज-पेटिका के ऊपर, संपूर्ण मानव जीवन को गर्भ धारण करने से लेकर उसकी मृत्यु के समय तक उकेरा गया है।

मोढेरा की खास बातें

- मोढेरा सूर्य मंदिर कर्क रेखा के पास 23.5835 डिग्री उत्तर, 72.1330 डिग्री पूर्व के अक्षांश पर पूर्व की ओर स्थित है। कर्क रेखा के निर्देशांक 23.4999 डिग्री उत्तर, 85.4866 डिग्री पूर्व है।

- प्रत्येक वर्ष केवल दो मौके ऐसे होते हैं, जब कोई ध्रुव सूर्य की ओर नहीं होता है और सूर्य पृथ्वी के भूमध्य रेखा से सीधे ऊपर होता है। इसे इक्विनॉक्स या विषुव कहते हैं। इसमें दिन और रात बराबर होते हैं। सौर विषुवों के दौरान, सूर्य की पहली किरण सीधे मंदिर पर पड़ती है, जो उसके भीतरी सूर्य देव की मूर्ति को रोशन करती है। हालांकि मूर्ति अब मौजूद नहीं है।

- ग्रीष्म संक्रांति के दौरान सूर्य बिना किसी छाया के मंदिर के शीर्ष पर चमकता है।

- ऐसा कहा जाता है कि मंदिर को बनाने के लिए किसी भी तरह के सीमेंट या प्लास्टर का इस्तेमाल नहीं किया गया है। पत्थरों को ऐसे ही संयोजन के तौर पर रखा गया है कि मंदिर की आधारशिला अपने आप बिना किसी जोड़ के खड़ी रह सके।

- माना जाता है कि रावण का वध करके राम और सीता यहां आए थे। इसलिए यहाँ के सूर्य कुंड को राम कुंड भी कहा जाता है।

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