Gujarat Assembly Election 2022: पटेलों के साथ OBC और आदिवासियों के हाथ में होती है सत्ता की कुंजी, देखें जातिगत समीकरण
Gujarat Assembly Election: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का गृह राज्य होने के कारण गुजरात का चुनाव भाजपा के लिए प्रतिष्ठा की जंग बना हुआ है।
Gujarat Assembly Election 2022: हिमाचल प्रदेश के बाद अब गुजरात में भी विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। राज्य की 182 विधानसभा सीटों के लिए 2017 की तरह दो चरणों में चुनाव होगा। 1 और 5 दिसंबर को दो चरणों में मतदान के बाद 8 दिसंबर को हिमाचल प्रदेश के साथ ही गुजरात के भी चुनावी नतीजे घोषित किए जाएंगे। राज्य में 4.9 करोड़ मतदाता विभिन्न दलों के प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला करेंगे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का गृह राज्य होने के कारण गुजरात का चुनाव भाजपा के लिए प्रतिष्ठा की जंग बना हुआ है। राज्य में पाटीदार समुदाय का वोट हासिल करने के लिए भाजपा कांग्रेस और आप में जबर्दस्त जंग छिड़ी हुई है। वैसे गुजरात के बारे में उल्लेखनीय बात यह है कि राज्य में सत्ता की कुंजी ओबीसी और आदिवासी मतदाताओं के हाथों में है। यही कारण है कि सभी राजनीतिक दल प्रत्याशियों का फैसला करने में जातीय समीकरण का भी पूरा ध्यान रख रहे हैं।
राज्य का जातिगत समीकरण
गुजरात का जातिगत समीकरण दूसरे राज्यों से अलग है क्योंकि यहां अन्य पिछड़ा वर्ग यांनी ओबीसी मतदाताओं की संख्या करीब 52 फ़ीसदी है। यही कारण है कि गुजरात में सत्ता का फैसला करने में ओबीसी समुदाय सबसे प्रभावी भूमिका निभाता है। ओबीसी वर्ग में कुल 146 जातियां शामिल हैं और सभी राजनीतिक दलों की ओर से ओबीसी मतदाताओं को लुभाने की कोशिश की जा रही है।
राज्य के जातिगत समीकरण को देखा जाए तो आदिवासी मतदाता भी चुनाव में प्रभावी भूमिका निभाते रहे हैं। राज्य में आदिवासी मतदाताओं की संख्या करीब 11 फ़ीसदी है। यदि अन्य जातियों के वोट देखे जाएं तो राज्य में पाटीदार 16 प्रतिशत, क्षत्रिय 16 प्रतिशत, आदिवासी 11 प्रतिशत, मुस्लिम नौ प्रतिशत और दलित वर्ग के मतदाता करीब सात प्रतिशत हैं। यदि कायस्थ, बनिया और ब्राह्मण वर्ग के मतदाताओं को जोड़ दिया जाए तो करीब 5 फ़ीसदी मतदाता प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला करने में भूमिका निभाते हैं।
ओबीसी मतदाता निर्णायक
राज्य के जातिगत समीकरण का विश्लेषण किया जाए तो सबसे बड़ी भूमिका ओबीसी वर्ग के मतदाता ही निभाते हैं। ओबीसी वर्ग से जुड़े हुए 52 फ़ीसदी मतदाताओं का झुकाव जिस सियासी दल की ओर होता है, वह सत्ता की बाजी जीतने में कामयाब होता है। यदि इसके साथ आदिवासी वर्ग के मतदाताओं को जोड़ दिया जाए तो कुल प्रतिशत करीब 63 फ़ीसदी होता है। ऐसे में क्षत्रिय और पाटीदार समुदाय से जुड़े मतदाताओं से ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका ओबीसी और आदिवासी समुदाय के मतदाताओं की हो जाती है।
वैसे राज्य की सियासत में पाटीदार बिरादरी भी प्रमुख भूमिका निभाती रही है। पटेल समुदाय को राज्य की सबसे ताकतवर जाति माना जाता रहा है और पाटीदार समुदाय की 16 फ़ीसदी संख्या भी गुजरात चुनाव में प्रमुख भूमिका निभाएगी। यही कारण है कि भाजपा जहां हार्दिक पटेल के जरिए पाटीदार समुदाय को लुभाने की कोशिश में जुटी हुई है वही आप ने हाल में अल्पेश कथेरिया और धार्मिक मालवीय को तोड़कर पाटीदार समुदाय के वोट बैंक में सेंध लगाने की बड़ी कोशिश की है।
प्रत्याशियों के चयन में भाजपा सतर्क
राज्य में चुनाव की घोषणा से पहले ही सभी राजनीतिक दलों ने चुनाव प्रचार में पूरी ताकत झोंक रखी है। राज्य का सियासी समीकरण इस बार बदला हुआ नजर आ रहा है। गुजरात की सत्ता 1995 से ही भाजपा के हाथों में है। हालांकि पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा के सीटों की संख्या घट गई थी। पिछले चुनाव में भाजपा 99 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब हुई थी।
हालांकि बाद में पार्टी ने कांग्रेस के कई विधायकों को तोड़ लिया था। वैसे इस बार एंटी इनकंबेंसी की आशंका से पार्टी प्रत्याशियों के चयन को लेकर काफी सतर्क है। प्रत्याशियों के चयन में जातीय समीकरण के साथ ही क्षेत्र में निभाई गई भूमिका पर भी पूरा ध्यान दिया जा रहा है। विभिन्न जिलों में पार्टी पदाधिकारियों से भी प्रत्याशियों के बारे में राय मांगी गई है।
आप ने लगा रखी है पूरी ताकत
राज्य की सियासत में इस बार आप की धमाकेदार एंट्री हुई है। दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने हिमाचल प्रदेश की अपेक्षा गुजरात चुनाव पर विशेष फोकस कर रखा है। वे पार्टी के अन्य नेताओं के साथ लगातार राज्य का दौरा कर रहे हैं। दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह भी लगातार गुजरात का दौरा करने में जुटे हुए हैं।
दोनों नेताओं को इस बात की बखूबी जानकारी है कि गुजरात का चुनावी नतीजा बड़ा सियासी संदेश देने वाला साबित होगा। भाजपा और आप की अपेक्षा कांग्रेस का चुनाव प्रचार अभी थोड़ा धीमा नजर आ रहा है। माना जा रहा है कि चुनाव आयोग की ओर से चुनाव कार्यक्रम के ऐलान के बाद अब कांग्रेस का प्रचार भी तेजी पकड़ेगा।