मोदी गुजरात में कार्यकाल पूरा करने वाले अकेले भाजपाई CM, अपने दम पर पार्टी को दिलाई कई बार जीत
Gujarat Chief Minister: PM नरेंद्र मोदी गुजरात में BJP के अकेले ऐसे नेता हैं, जिन्होंने दो-दो कार्यकाल सफलतापूर्वक पूरे किए। 2014 में देश के प्रधानमंत्री का पद संभालने से पहले वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे। गुजरात पर उनकी जबर्दस्त पकड़ मानी जाती रही है।
Gujarat Chief Minister: गुजरात में विजय रुपाणी (Vijay Rupani) के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे (Vijay Rupani Resigns) के बाद राज्य में भाजपाई मुख्यमंत्रियों (BJP Mukhyamantri) के कार्यकाल पूरा करने का सवाल एक बार फिर खड़ा हो गया है। गुजरात में अगले साल नवंबर-दिसंबर में विधानसभा (Assembly Election 2022) का चुनाव होना है और इस्तीफे के साथ ही विजय रुपाणी का नाम भी भाजपा के उन मुख्यमंत्रियों की सूची में शामिल हो गया जो अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके।
2016 में आनंदीबेन पटेल (Anandiben Patel) के इस्तीफे के बाद रुपाणी को गुजरात का मुख्यमंत्री (Gujarat Mukhyamantri) बनाया गया था। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत के बाद वे दोबारा मुख्यमंत्री बने थे मगर अपना कार्यकाल वे नहीं पूरा कर सकें।
वैसे गुजरात में भाजपा के साथ एक दिलचस्प तथ्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) से जुड़ा हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात में भाजपा (BJP) के अकेले ऐसे नेता हैं, जिन्होंने दो-दो कार्यकाल सफलतापूर्वक पूरे किए। 2014 में देश के प्रधानमंत्री (Pradhan Mantri) का पद संभालने से पहले वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे। गुजरात पर उनकी जबर्दस्त पकड़ मानी जाती रही है। प्रधानमंत्री बनने के बाद भी यह पकड़ अभी तक कायम है। मोदी के बाद भाजपा एक बार फिर उसी पुराने रवैये पर लौटती दिख रही है।
2017 की जीत का श्रेय मोदी और शाह को
रुपाणी ने शनिवार को अचानक मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा (Vijay Rupani Ka Istifa) देने की घोषणा की। हालांकि इसकी सुगबुगाहट पार्टी के भीतर ही भीतर कुछ दिनों से महसूस की जा रही थी। भाजपा नए नेतृत्व के साथ विधानसभा चुनाव में उतरना चाहती क्योंकि रूपाणी की छवि कभी भी करिश्माई नेता की नहीं रही।
2014 में नरेंद्र मोदी के देश का प्रधानमंत्री बनने के बाद राज्य में मुख्यमंत्री पद की कमान आनंदीबेन पटेल को सौंपी गई थी। 75 वर्ष की हो जाने पर आनंदीबेन पटेल ने उम्र के आधार पर 2016 में इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद रुपाणी राज्य के मुख्यमंत्री बने थे। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को जीत दिलाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने पूरी ताकत लगाई थी।
इसी का नतीजा था कि भाजपा एक बार फिर राज्य में सरकार बनाने में कामयाब हुई। रुपाणी को एक बार फिर मुख्यमंत्री पद की कमान सौंपी गई। हालांकि रुपाणी अपना कार्यकाल नहीं पूरा कर सके और शनिवार को उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा।
वाघेला की बगावत से गिरी भाजपा सरकार
गुजरात कांग्रेस (Congress) का पुराना गढ़ रहा है। लेकिन नब्बे के दशक में भाजपा ने यहां मजबूती से उभरना शुरू किया। 1995 में पहली बार भाजपा ने कांग्रेस की किलेबंदी तोड़कर राज्य में सरकार बनाने में कामयाबी हासिल की। उस समय प्रदेश की सियासत में केशुभाई पटेल (Keshubhai Patel) का जलवा था। उम्मीद के मुताबिक, वही राज्य के मुख्यमंत्री बने मगर वे एक साल का कार्यकाल भी नहीं पूरा कर सके। करीब साढ़े सात महीने बाद ही उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटा दिया गया। उनकी जगह सुरेश मेहता की ताजपोशी हुई।
दरअसल, उस समय शंकर सिंह वाघेला ग्रुप (Shankersinh Vaghela Group) की ओर से वाघेला को मुख्यमंत्री बनाने की मांग की जा रही थी। भाजपा का शीर्ष नेतृत्व इसी कारण मुख्यमंत्री बदलने पर मजबूर हो गया मगर नेतृत्व की ओर से वाघेला को कमान न सौंपकर सुरेश मेहता को मुख्यमंत्री बना दिया गया। हालांकि मुख्यमंत्री के रूप में सुरेश मेहता अपनी छाप नहीं छोड़ सके।
खुद को मुख्यमंत्री न बनाए जाने से नाराज शंकरसिंह वाघेला ने बगावत का झंडा बुलंद कर दिया। वे अलग हो गए। वाघेला की बगावत के कारण भाजपा सरकार गिर गई। बाद में वाघेला राज्य के मुख्यमंत्री बने। मगर वे भी अपना कार्यकाल पूरा करने में कामयाब नहीं हो सके।
केशुभाई भी नहीं पूरा कर सके कार्यकाल
राज्य में सियासी समीकरणों पूरी तरह गड़बड़ हो जाने के कारण मध्यावधि चुनाव ही एक रास्ता बाकी रह गया था। राज्य में 1998 में मध्यावधि चुनाव कराए गए। भाजपा ने एक बार फिर अपनी ताकत दिखाते हुए राज्य की 182 में से 117 सीटों पर कब्जा कर लिया। इस बार फिर भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की ओर से केशुभाई पटेल के नाम पर मुहर लगाई गई । उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में गुजरात की कमान सौंप दी गई।
स्वच्छ छवि वाले केशुभाई पटेल सियासी समीकरण बिठाने के माहिर खिलाड़ी नहीं थे। उन्हें इसकी एक बार फिर कीमत चुकानी पड़ी। केशुभाई पटेल दूसरी बार भी मुख्यमंत्री के रूप में अपना कार्यकाल नहीं पूरा कर सके। मुख्यमंत्री के रूप में चार साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद 2001 में राज्य में फिर एक बार फिर नेतृत्व परिवर्तन हुआ। इस बार नरेंद्र मोदी को गुजरात की कमान सौंपी गई।
एक बार फिर 2001 जैसी परिस्थितियां
एक दिलचस्प बात और यह है कि मौजूदा समय में गुजरात में किया जा रहा नेतृत्व परिवर्तन भी ठीक वैसा ही है जैसा अक्टूबर 2001 में किया गया था। अक्टूबर 2001 में जब नरेंद्र मोदी को पहली बार गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया गया था तो उस समय केशुभाई पटेल करीब चार वर्ष का कार्यकाल पूरा कर चुके थे। अब 2021 में विजय रुपाणी को भी करीब चार साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद मुख्यमंत्री पद से हटाया गया है और नए मुख्यमंत्री को ताज सौंपने की तैयारी है।
मोदी ने गुजरात में दिखाई ताकत
गुजरात का मुख्यमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने 2002 के चुनाव में भाजपा को जीत दिलाने में कामयाबी हासिल की थी। वे राज्य के करिश्माई नेता साबित हुए और 2007 के चुनाव में भी उन्होंने अपने दम पर भाजपा को जीत दिलाई। कांग्रेस 2012 के चुनाव में भी मोदी की किलेबंदी को नहीं भेद पाई। इस बार फिर मोदी भाजपा को जीत दिलाने में कामयाब रहे।
मोदी ने मुख्यमंत्री के रूप में विकास का ऐसा मॉडल सबके सामने पेश किया जिसे गुजरात मॉडल के नाम से जाना जाने लगा। गुजरात में मोदी की ओर से दिखाई गई ताकत उनके सियासी भविष्य को मजबूत करने वाली साबित हुई। 2014 के चुनाव के लिए भाजपा ने उन्हें प्रधानमंत्री पद का चेहरा भी बनाया। मोदी ने अपनी अगुवाई में 2014 और 2019 के चुनाव में भाजपा को जीत दिलाकर एक बार फिर अपने नेतृत्व कौशल का परिचय दिया।
मोदी के बाद भाजपा फिर पुराने पैटर्न पर
मोदी के गुजरात छोड़ने के बाद भाजपा एक बार फिर पुराने पैटर्न पर लौटती दिख रही है। मोदी के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद राज्य की कमान आनंदीबेन पटेल के हाथों में आई मगर बाद में उन्होंने 75 साल की उम्र पूरी हो जाने के आधार पर इस्तीफा दे दिया। बाद में उन्हें मध्यप्रदेश, इसके बाद उत्तर प्रदेश के राज्यपाल की कमान सौंपी गई।
आनंदीबेन पटेल के बाद 2016 में विजय रुपाणी राज्य के मुख्यमंत्री बने। गुजरात में 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री पद पर रूपाणी तो ज़रूर थे। मगर इस चुनाव में भाजपा को जीत दिलाने का श्रेय पूरी तरह पीएम मोदी और अमित शाह को ही दिया गया।
भाजपा को राज्य की सत्ता में वापस लाने के लिए इन दोनों नेताओं ने 2017 के चुनाव में काफी मेहनत की थी। मुख्यमंत्री रुपाणी जरूर थे मगर भाजपा ने मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़कर ही कामयाबी हासिल की। अब चार साल बाद राज्य में एक बार फिर नेतृत्व परिवर्तन हो रहा है। रूपाणी के कार्यकाल पूरा न कर पाने की कई वजहें मानी जा रहे हैं। आने वाले मुख्यमंत्री को राज्य में कई चुनौतियों से जूझना होगा। राज्य में अगले साल नवंबर में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित है। यही कारण है कि भाजपा ने समय रहते मुख्यमंत्री का चेहरा बदलने का फैसला किया है। इसे सत्ता विरोधी रुझान को कम करने का प्रयास भी माना जा रहा है।
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