Gujarat Assembly Election 2022: यूं ही नहीं है गुजरात भाजपा का 'अभेद्य किला', मोदी के इन तीरों का विपक्ष के पास क्या है जवाब?
Gujarat Election 2022: गुजरात को बीजेपी और नरेंद्र मोदी ने 'अभेद्य किला' बना रखा है। जिसे भेदना विपक्षी पार्टियों लिए नामुमकिन रहा है। जानें बीजेपी की तरकश में वो कौन से तीर हैं।
Gujarat Assembly Election 2022 : गुजरात को 'हिंदुत्व की प्रयोगशाला' कहा जाता रहा है। राम मंदिर आंदोलन का सबसे ज्यादा फायदा अगर किसी दल को और कहीं मिला, तो वो है भारतीय जनता पार्टी (BJP) और गुजरात। गुजरात में 1995 से बीजेपी 'अजेय' बढ़त बनाए हुए है। केशुभाई पटेल को हटाकर जब नरेंद्र मोदी के हाथों गुजरात की कमान सौंपी गई थी, तब शायद बीजेपी आलाकमान ने भी नहीं सोचा होगा कि ये राज्य आने वाले समय में उनके लिए 'अभेद्य किला' हो जाएगा। और नरेंद्र मोदी वहां के पोस्टर बॉय।
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में गुजरात में एक तरफ जहां आर्थिक तरक्की हुई, वहीं मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी 'हिंदूवादी नेता' के रूप में स्थापित हुए। हालांकि, इसी दौर में गुजरात ने गोधरा दंगा (Godhra Kand 2002), विनाशकारी भूकंप (Gujarat Earthquake 2001) सहित अन्य त्रासदियां झेली। बावजूद मोदी एक सख्त और कुशल प्रशासक के तौर पर स्थापित होते चले गए। बीजेपी ने उन 15 वर्षों में जो उभार पाया, उस दौरान कांग्रेस के पास मोदी का कोई विकल्प नहीं था। कहने का मतलब, कांग्रेस पार्टी बीजेपी के सामने कोई ऐसा चेहरा नहीं उतार पाई जो उन्हें टक्कर दे सके।
गुजरात में बीजेपी के 'अजेय' होने की बातें तो होती है, मगर उसके पीछे चार कारक प्रमुख थे- हिंदुत्व, औद्योगिकीकरण, राष्ट्रवाद और गुजराती अस्मिता।
मोदी और 'हिंदुत्व'
गुजरात के सीएम रहे हों या देश के प्रधानमंत्री। नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में उनकी हिंदुत्ववादी वाली छवि का अहम योगदान रहा है। देश की बहुसंख्यक आबादी में नरेंद्र मोदी हिन्दू के वाहक के रूप में स्थापित हो चुके हैं। गोधरा दंगे के बाद जब बीजेपी और मुख्यमंत्री मोदी की तरफ उंगलियां उठने लगी थी। तो कई ऐसे भी थे जिन्होंने उनकी धार्मिक पहचान को नया आयाम भी दिया। मोदी की इस छवि को आज भी बीजेपी भुनाने की कोशिश करती रहती है। खासकर, राम मंदिर निर्माण हो हो या काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण। गुजरात के बाद केंद्र में भी मोदी हिंदुत्व के ब्रांड एम्बेस्डर के तौर पर स्थापित होते चले गए। पीएम मोदी एक तरफ जहां कभी अपनी धार्मिक पहचान छुपाते नहीं हैं वहीं तुष्टिकरण की राजनीति से भी दूर रहते हैं। यही वजह है कि, कई राज्यों में जब सीएम फेस न प्रस्तुत कर मोदी के चेहरे को हो आगे बढ़ाया जाता है। गुजरात भी इससे अछूता नहीं है।
सतत औद्योगीकरण
गुजरात की गिनती संभवतः एकलौता ऐसे राज्य में होती है जो पिछले 20 वर्षों से लगातार विकास कर रही है। इस विकास को आगे बढ़ाने में नरेंद्र मोदी का अहम योगदान रहा है। गोधरा दंगे और विनाशकारी भूकंप के बावजूद गुजरात में औद्योगीकरण लगातार होता रहा। इसे राजनीतिक दूरदर्शिता कहिये या निरंतर कठिन परिश्रम या बिजनेसमैन का भरोसा जीतने में सफल होना कि, गुजरात नित नई बुलंदियों को छूता गया। इसका फायदा बीजेपी को हर विधानसभा चुनाव में मिलता रहा। उस वक्त को याद कीजिये जब बंगाल के सिंगूर में टाटा से नैनो (Singur Tata Nano) कारखाने के लिए आवंटित जमीन रातों-रात ले ली गई। तब गुजरात के सीएम रहते मोदी ने टाटा को न सिर्फ अपने यहां उद्योग ;लगाने की जगह दी बल्कि अन्य सुविधाएं और रियायतें भी। ऐसे कई कदमों ने उद्योगपतियों के अंदर गुजरात और मोदी के प्रति भरोसा जगाया। नतीजतन आज गुजरात 'इंडस्ट्रियल हब' के रूप में जाना जाता है। मोदी ने 'वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल समिट' कर दुनिया का ध्यान भी अपनी ओर आकृष्ट किया।
गुजराती अस्मिता और बीजेपी
गुजरात में बीजेपी 'गुजराती अस्मिता' को सर्वोपरि रखती रही है। नरेंद्र मोदी के भाषण को आप गौर से सुनें तो वो बार-बार कहते नजर आते हैं, कि 'गुजरात ने मुझे बड़ा किया है। गुजरात मेरी मां है...'आदि-आदि। मोदी कांग्रेस को जवाब देने में भी इन जुमलों का इस्तेमाल करते रहे हैं। जैसे-;..गुजराती कभी अपमान सहन नहीं करेगा।' ऐसे संबोधन में मोदी खुद को गुजराती अस्मिता के पैरोकार के रूप में प्रस्तुत कर देते हैं जिसका, जवाब कांग्रेस या आम आदमी पार्टी के पास नहीं होता है। मोदी को आप कई मौकों पर 'गुजरात के बेटे पर हमले को यहां के लोग माफ नहीं करेंगे' जैसी बातें बोलते सुने होंगे। बीजेपी और मोदी के इस वार का विपक्ष के पास कोई जवाब नहीं होता। देश ही नहीं बल्कि विदेश में बैठे गुजरती भी इसे अस्मिता से जोड़कर देखते हैं।
नरेंद्र मोदी अक्सर सरदार वल्लभ भाई पटेल और मोरारजी देसाई का नाम लेते रहते हैं। साथ ही, इन्हें सम्मान न देने का आरोप भी विपक्षी कांग्रेस पर लगाने से नहीं चूकते। गौर करें तो नरेंद्र मोदी ही नहीं, बीजेपी का कोई नेता इन दिनों आपको 'गुजराती अस्मिता' से इतर बातें करता नजर नहीं आएगा। चुनावी रैलियों में इसे जोर-शोर से उठाया जाता है। हाल की जनसभा में भी मोदी और अमित शाह के अलावा गुजरात के नेता दोहराते दिखे।
गुजरात चुनाव और 'राष्ट्रवाद'
बीजेपी इस बार भी गुजरात चुनाव में राष्ट्रवाद के मुद्दे को थामे हुए है। बीजेपी के लिए राष्ट्रवाद अचूक हथियार साबित होता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्रवाद के मुद्दे को किसी भी मंच से भुनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते। आप पिछली विधानसभा या लोकसभा चुनाव पर नजर डालें तो आपको कई उदाहरण बिखरे पड़े मिलेंगे। चाहे वो दोनों बार का सर्जिकल स्ट्राइक हो या पुलवामा हमला या कोई अन्य त्रासदी। विपक्षियों का आरोप है कि मोदी कई गंभीर बातों को भी राष्ट्रवाद जोड़कर अपनी तरफ कर लेते हैं। बीजेपी के राष्ट्रवाद रूपी 'हथियार' का भी अन्य पार्टियों के पास कोई जवाब नहीं है।
गुजरात विधानसभा चुनाव 2022 के लिए गुरुवार को जब तारीखों का ऐलान हुआ तो बीजेपी भी कमर कसती नजर आ रही है। इस चुनाव में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी मोदी या बीजेपी को घेरने के लिए क्या करती है, ये बाद की बात है। लेकिन, बीजेपी की तरकश में हिंदुत्व, विकास,, राष्ट्रवाद और गुजराती अस्मिता तो स्थायी तीर हैं, जिसका काट क्या होगा, ये आने वाला समय ही बताएगा।