Gujarat Election 2022: गुजरात चुनाव में पाटीदार बिरादरी क्यों बनी अहम, समर्थन पाने को सभी दलों में मची हुई है होड़

Gujarat Assembly Election 2022: गुजरात के विधानसभा चुनाव में ओबीसी मतदाताओं के साथ पाटीदार बिरादरी की भूमिका भी काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही है।

Written By :  Anshuman Tiwari
Update: 2022-11-06 11:40 GMT

 गुजरात चुनाव में पाटीदार बिरादरी क्यों बनी अहम, समर्थन पाने को सभी दलों में मची हुई है होड़: Photo- Social Media

Gujarat Assembly Election 2022: गुजरात में विधानसभा चुनावों की घोषणा (Gujarat Assembly Election 2022) के साथ ही विभिन्न राजनीतिक दलों ने सक्रियता बढ़ा दी है। राज्य की 182 विधानसभा सीटों पर इस बाहर त्रिकोणीय मुकाबला दिख रहा है। भाजपा और कांग्रेस के साथ ही आम आदमी पार्टी ने भी पूरी ताकत लगा रखी है। सत्ता की जंग जीतने के लिए चुनावी वादों के साथ ही जातीय समीकरण साधने की भी पूरी कोशिश की जा रही है।

गुजरात के विधानसभा चुनाव में ओबीसी मतदाताओं के साथ पाटीदार बिरादरी (patidar fraternity) की भूमिका भी काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही है। पाटीदार बिरादरी से जुड़े मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए भाजपा,कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने भी पूरी ताकत लगा रखी है। राज्य की 70 विधानसभा सीटों पर पाटीदार बिरादरी के वोट काफी अहम माने जाते हैं। पाटीदार मतदाताओं के रुख से ही इन सीटों पर जीत-हार का फैसला होता है। इस कारण पिछले चुनावों की तरह इस बार भी पाटीदार बिरादरी के रुख को काफी अहम माना जा रहा है।

पाटीदारों पर इसलिए सभी दलों की निगाहें

वैसे तो गुजरात के लगभग हर जिले में पाटीदार बिरादरी से जुड़े मतदाता हैं मगर उत्तरी गुजरात के सौराष्ट्र में इनकी संख्या सबसे ज्यादा है। गुजरात में पाटीदार बिरादरी से जुड़े मतदाताओं की संख्या करीब 16 फ़ीसदी है और वे हर विधानसभा चुनाव में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। सौराष्ट्र के 11 जिलों के अलावा सूरत में भी पाटीदार मतदाता प्रभावी स्थिति में है।

इसी कारण भाजपा के साथ ही कांग्रेस और आप ने भी पाटीदार मतदाताओं पर नजरें गड़ा रखी हैं। भाजपा हार्दिक पटेल और खोडलधाम संस्थान के दूसरे बड़े पाटीदार नेता परेश गजेरा के जरिए पाटीदार बिरादरी में पैठ बनाने की कोशिश में जुटी हुई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी राजकोट में एक बड़े अस्पताल का उद्घाटन करके पाटीदार बिरादरी को लुभाने की कोशिश की थी। दूसरी और कांग्रेस नेता पाटीदार समाज की तीन कुलदेवियों के मंदिर की यात्रा निकाल चुके हैं।

भाजपा ने इसलिए लगाई पूरी ताकत

2012 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 50 पाटीदारों को चुनाव मैदान में उतारा था जिनमें से 36 प्रत्याशियों ने जीत हासिल की थी। 2012 के चुनाव में भाजपा को 48 फ़ीसदी वोट हासिल हुए थे और इसमें पाटीदारों की हिस्सेदारी 11 फ़ीसदी थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को पाटीदारों का करीब 60 फ़ीसदी वोट मिला था मगर 2017 के विधानसभा चुनाव में इसमें गिरावट आई और भाजपा पाटीदारों का 49.1 फीसदी वोट ही हासिल करने में कामयाब हो सकी।

2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 99 सीटों पर जीत हासिल हुई थी और पार्टी के 28 पाटीदार विधायक चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। दूसरी ओर कांग्रेस के 20 पाटीदार विधायक चुनाव जीतने में कामयाब हुए थे।

निर्णायक साबित होगा सौराष्ट्र

गुजरात में सौराष्ट्र को राजनीतिक दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। सौराष्ट्र की 48 विधानसभा सीटों पर पाटीदार समाज और कोली समाज के मतदाता ही निर्णायक माने जाते हैं। सौराष्ट्र की जिन विधानसभा सीटों पर पाटीदार समुदाय के मतदाता बहुमत में हैं वहां पाटीदार बिरादरी के अलावा अन्य उम्मीदवारों को पाटीदार वोट मिलने की संभावना नहीं है। इसी तरह गैर कोली जाति के उम्मीदवारों को कोली जाति के मत हासिल होना भी मुश्किल माना जाता है। इसी कारण भाजपा कांग्रेस और आप की ओर से जातीय समीकरण का पूरा ख्याल रखा जा रहा है।

आम आदमी पार्टी ने पिछले दिनों पाटीदार समुदाय से जुड़े दो बड़े चेहरों अल्पेश कथेरिया और धार्मिक मालवीय को तोड़कर पाटीदार बिरादरी में सेंध लगाने की पूरी तैयारी कर ली है। दूसरी ओर भाजपा और कांग्रेस की ओर से भी पाटीदार बिरादरी के ज्यादा से ज्यादा वोट हासिल करने की कोशिशें की जा रही हैं। ऐसे में गुजरात का विधानसभा चुनाव काफी दिलचस्प हो गया है।

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