RSS की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में दत्तात्रेय होसबोले का आह्वान- 'आत्मनिर्भर भारत और विश्व गुरु पर रहे जोर'
RSS All India Pratinidhi Sabha: RSS की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक गुजरात के कर्णावती में चल रही है। यह बैठक 11 मार्च से 13 मार्च तक चलेगी।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की हर साल होने वाली अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक गुजरात के कर्णावती में चल रही है। यह बैठक 11 मार्च से शुरू हुई, जो 13 मार्च तक चलेगी। संघ की इस बैठक में क्या बड़े फैसले लिए जाएंगे इस ओर सबकी नजर है। बैठक में सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने अपना संबोधन दिया। उनके वक्तव्य को भविष्य की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
गुजरात में जारी इस तीन दिवसीय बैठक में अगले साल तक की रूपरेखा तैयार की जाएगी। गौरतलब है, कि बीते साल कोरोना महामारी की वजह से अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक को काफी छोटी रही थी। तब अधिकतर कार्यकर्ता अपने प्रांतों से वर्चुअली बैठक में शामिल हुए थे। लेकिन, इस बार बड़ी संख्या में संघ से जुड़े लोग शामिल हुए हैं।
'अमृत महोत्सव' की प्रासंगिकता
इस दौरान बैठक में सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने महत्वपूर्ण बातें की। उन्होंने संबोधन की शुरुआत ही 'अमृत महोत्सव' से की। सरकार्यवाह होसबोले ने कहा, 'भारत इस वर्ष स्वाधीनता का अमृत महोत्सव मना रहा है। यह अवसर शताब्दियों से चले ऐतिहासिक स्वतंत्रता संग्राम का प्रतिफल और हमारे वीर सेनानियों के त्याग एवं समर्पण का उज्ज्वल प्रतीक है। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की सबसे बड़ी विशेषता थी, कि यह केवल राजनैतिक नहीं, बल्कि राष्ट्रजीवन के सभी आयामों तथा समाज के सभी वर्गों के सहभाग से हुआ सामाजिक-सांस्कृतिक आन्दोलन था। इस स्वतंत्रता आंदोलन को राष्ट्र के मूल अधिष्ठान यानि राष्ट्रीय 'स्व' को उजागर करने के निरंतर प्रयास के रूप में देखना प्रासंगिक होगा।'
उपनिवेशवाद और उसके पीछे का षड्यंत्र
सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले आगे उपनिवेशवाद और उसके पीछे के षड्यंत्र पर कहा, 'इस उपनिवेशवादी आक्रमण का व्यापारिक हितों के साथ भारत को राजनैतिक-साम्राज्यवादी और धार्मिक रूप से गुलाम बनाने का निश्चित उद्देश्य था। अंग्रेजों ने भारतीयों के एकत्व की मूल भावना पर आघात करके मातृभूमि के साथ उनके भावनात्मक एवं आध्यात्मिक संबंधों को दुर्बल करने का षड्यंत्र किया। उन्होंने हमारी स्वदेशी अर्थव्यवस्था, राजनीतिक व्यवस्था, आस्था-विश्वास और शिक्षा प्रणाली पर प्रहार कर स्व-आधारित तंत्र को सदा के लिए विनष्ट करने का भी प्रयास किया।'
आध्यात्मिक नेतृत्व और हेडगेवार पर ये बोले सरकार्यवाह
सरकार्यवाह ने अपने संबोधन में कहा, 'यह राष्ट्रीय आंदोलन सार्वदेशिक और सर्वसमावेशी था। स्वामी दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविंद आदि आध्यात्मिक नेतृत्व ने देश के जन और जन नायकों को ब्रिटिश अधिसत्ता के खिलाफ विरोध के लिए प्रेरित किया। इस आंदोलन से महिलाओं, जनजातीय समाज तथा कला, संस्कृति, साहित्य, विज्ञान सहित राष्ट्र जीवन के सभी आयामों में स्वाधीनता की चेतना जागृत हुई। लाल-बाल-पाल, महात्मा गांधी, वीर सावरकर, नेताजी-सुभाषचंद्र बोस, चंद्रशेखर आज़ाद, भगतसिंह, वेळू नाचियार, रानी गाईदिन्ल्यू आदि ज्ञात-अज्ञात स्वतंत्रता सेनानियों ने आत्म-सम्मान और राष्ट्र-भाव की भावना को और प्रबल किया। प्रखर देशभक्त डॉ. हेडगेवार के नेतृत्व में स्वयंसेवकों ने भी अपनी भूमिका का निर्वहन किया।'
'स्व' की भावना के आकलन का यही समय
सरकार्यवाह आगे कहते हैं, 'भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में किन्हीं कारणों से 'स्व' की प्रेरणा क्रमशः क्षीण होते जाने से देश को विभाजन की विभीषिका झेलनी पड़ी। स्वतंत्रता के बाद इस 'स्व' की भावना को राष्ट्र-जीवन के सभी क्षेत्रों में अभिव्यक्त करने का हमें मिला हुआ सुअवसर कितना साध्य हो पाया, इसका आकलन करने का भी यह उचित समय है।' होसबोले कहते हैं, 'भारतीय समाज को एक राष्ट्र के रूप में सूत्रबद्ध रखने और राष्ट्र को भविष्य के संकटों से सुरक्षित रखने के लिए 'स्व' पर आधारित जीवनदृष्टि को ढृढ़ संकल्प के साथ पुनः स्थापित करना आवश्यक है। स्वाधीनता की 75वीं वर्षगांठ हमें इस दिशा में पूर्ण प्रतिबद्ध होने का अवसर उपलब्ध कराती है।'
'आत्मनिर्भर भारत' और 'विश्व गुरु' पर जोर
अपने सम्बोधन के अंत में सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने संतोष जाहिर करते हुए कहा, 'अनेक अवरोधों के रहते हुए भी भारत ने विभिन्न क्षेत्रों में सराहनीय प्रगति की है। लेकिन, यह भी सच है, कि भारत को पूर्ण रूप सेआत्मनिर्भर बनाने का लक्ष्य अभी शेष है। अब एक दूरदर्शी सोच के साथ 'आत्मनिर्भर भारत' का संकल्प लेकर देश एक सही दिशा में बढ़ने के लिए तत्पर हो रहा है।' उन्होंने कहा, यह आवश्यक है कि छात्रों और युवाओं को इस 'महाप्रयास' में जोड़ते हुए, भारत-केन्द्रित शिक्षा नीति का प्रभावी क्रियान्वयन करते हुए भारत को एक ज्ञान संपन्न समाज के रूप में विकसित और स्थापित किया जाए। साथ ही, भारत को 'विश्वगुरु' की भूमिका निभाने के लिए समर्थ बनाया जाए। स्वाधीनता के अमृत महोत्सव के अवसर पर हमें अपने 'स्व' के पुनरानुसंधान का संकल्प लेना चाहिए, जो हमें अपनी जड़ों से जुड़ने और राष्ट्रीय एकता की भावना को मजबूत करने का अवसर उपलब्ध कराता है।'