विवादित कृषि कानूनः बजट सत्र में भी नहीं बनी बात, क्या होगा किसान आंदोलन का
संसद में बजट सत्र के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी टीम जहां किसानों के मुद्दे पर आक्रामक दिखी है वहीं विपक्ष अपनी ताकत नहीं दिखा पाया है। किसानों को भी इस बात का मलाल है। उन्होंने साफ कहा कि आंदोलन के दौरान 228 किसानों की मौत हुई है, सरकार को कितने बलिदान और चाहिए।
रामकृष्ण वाजपेयी
ये बात बिल्कुल सही है कि बजट सत्र में किसानों के पक्ष में कोई बात नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी टीम का संसद के बजट सत्र में हमलावर रुख रहा है। खास बात यह है कि विपक्ष इस दौरान लगातार कमजोर दिखा है। विवादित तीनों कानूनों के पारित होने के समय भी विपक्ष कमजोर पड़ गया था वरना ये कानून पारित ही नहीं हो पाते।
बिखरा हुआ विपक्ष, किसान पड़े कमजोर
अब जबकि किसान आंदोलित हैं और अपनी तरफ से पूरी जान लगाए हुए हैं ऐसे में बजट सत्र के दौरान एक बार फिर विपक्ष की कमजोरी सामने आयी है। इन हालात में अगर बिखरा हुआ विपक्ष किसानों की लड़ाई को परवान नहीं चढ़ा पाया तो क्या होगा। क्या किसान कमजोर पड़ जाएंगे या ये आंदोलन जारी रहेगा।
विपक्ष अपनी ताकत नहीं दिखा पाया
संसद में बजट सत्र के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी टीम जहां किसानों के मुद्दे पर आक्रामक दिखी है वहीं विपक्ष अपनी ताकत नहीं दिखा पाया है। किसानों को भी इस बात का मलाल है। उन्होंने साफ कहा कि आंदोलन के दौरान 228 किसानों की मौत हुई है, सरकार को कितने बलिदान और चाहिए। किसान नेताओं का यह भी आरोप है कि विपक्ष की कमजोरी का फायदा सतारूढ़ दल ने उठाया और इसी कारण ये बिल पारित होकर कानून बने। अब जो किसान संगठन लड़ाई लड़ रहे हैं, वह लोकतंत्र को बचाने का संघर्ष भी है। इस संघर्ष ने एकता का परिचय भी दिया है।
किसान नेताओं का आरोप
भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने किसानों की मौजूदा हालात के लिए 'कमजोर विपक्ष' को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने कहा कि अगर विपक्ष कमजोर नहीं होता तो किसानों की यह हालत नहीं होती। वो कुछ नहीं कर रहे हैं। क्या कृषि कानूनों को लेकर कोई भी विपक्षी नेता जेल में है? किसान नेताओं का आरोप है कि सरकार ने शुरू से किसानों के इस आंदोलन को गंभीरता से नहीं लिया। पहले इसे एक राज्य का आंदोलन बताया फिर दो राज्यों का फिर कहा आंदोलन अलगाववादियों से जुड़ा है। फिर विदेश से पैसा आ रहा है।
सरकार की मंशा साफ नहीं
कुल मिलाकर सरकार की मंशा साफ नहीं है। आंदोलन से जुड़े नेताओं का कहना है कि दो अक्टूबर तक हमारा कार्यक्रम तैयार है अगर तब तक सरकार कृषि कानूनों को वापस नहीं लेती है तो आगे की रणनीति बनाकर लड़ाई लड़ी जाएगी लेकिन कृषि कानूनों को लागू नहीं होने दिया जाएगा।
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